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नाश्ते पर राजनीति: महापौर ने जिलाध्यक्ष को घर नहीं बुलाया तो प्रभारी मंत्री भी नहीं गए

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सागर। महापौर संगीता तिवारी और भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम तिवारी के बीच तल्खी कम नहीं हुई है। दो दिन पहले जिले के प्रभारी व उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के दौरे के बीच का एक घटनाक्रम इसका उदाहरण है। हुआ ये कि महापौर संगीता तिवारी ने सर्किट हाउस में रुके प्रभारी मंत्री शुक्ल को गुरुवार सुबह अपने निवास पर चाय-नाश्ते के लिए आमंत्रित किया। लेकिन वे नहीं गए।इसके पीछे की कहानी ये है कि प्रभारी मंत्री ने सर्किट हाउस में ही मौजूद जिलाध्यक्ष तिवारी से सौजन्यतावश कहा कि आप भी महापौर के निवास पर चलें। जवाब में तिवारी ने तपाक से बोल दिया कि माननीय… मुझे निमंत्रण नहीं है, इसलिए मैं नहीं जा सकता। प्रभारी मंत्री चूंकि पहले से जिलाध्यक्ष की महापौर की शिकायती चिट्ठी व उसमें हुई शाब्दिक चूक के बाद उठे विवाद से परिचित थे। इसलिए उन्होंने वहां मौजूद महापौर प्रतिनिधि रिशांक तिवारी ने से पूछा कि क्या आपने श्याम को आमंत्रित नहीं किया। जवाब में रिशांक ने कहा कि, बीते दिनों हुए घटनाक्रम के बाद हम लोगों को ऐसा नहीं लगा कि उन्हें बुलाया जाए। फिर प्रभारी मंत्री ने पूछा कि अगर श्याम चलते हैं तो आपको कोई आपत्ति है। जवाब में रिशांक ने कहा कि कोई समस्या नहीं है, मैं यहीं उन्हें आमंत्रित कर लेता हूं। लेकिन इधर श्याम जाने को तैयार नहीं हुए। उनकी शर्त थी कि मुझे कम से कम वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील तिवारी या स्वयं उनकी पत्नी यानी महापौर संगीता तिवारी आमंत्रित करेंं। इस दौरान जिलाध्यक्ष तिवारी ने मौजूदा लोगों के सामने यह भी बखान किया कि जब मैं जिलाध्यक्ष बनकर आया तो महापौर ने मेरा कोई स्वागत-सम्मान नहीं किया। आखिर में प्रभारी मंत्री ने संगठन के व्यक्ति को तरजीह देते हुए महापौर के घर जाने का कार्यक्रम कैंसिल कर दिया। बताया जाता है कि इस संबंध में प्रभारी मंत्री और सुशील तिवारी के बीच कुछ टेलीफोनिक चर्चा भी हुई थी।

झगड़ा चालू आहे…..और बड़े-बड़े नेता चुप्प!

महापौर के एमआईसी में फेरबदल और उनकी भोपाल में हुई हाजिरी वाले एपिसोड को 15 दिन हो गए हैं। इसके बाद से प्रदेश संगठन तो शांति की मुद्रा में है लेकिन शहर की भाजपा में यह मामला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। गजब बात तो ये है कि एक तरफ जिलाध्यक्ष तिवारी, महापौर के प्रति अपनी वर्डिंग यानी शब्दावली पर कोई सुलह-सफाई नहीं दे रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ महापौर का खेमा, जिलाध्यक्ष को घेरने की राजनीतिक कोशिशें कम नहीं कर रहा। इस सब में सबसे ज्यादा चिंताजनक, जिले के उन पांच-सात दिग्गज नेताओं की चुप्पी है। जो विपक्षी दलों को मंचों से अपने पार्टी-संगठन की रीति- नीति की दुहाई देते रहते हैं लेकिन अपने ही संगठन में चल रहे इस द्वंद के बारे में कुछ नहीं बोल रहे। इनमें पूर्व मंत्री और सीनियर विधायक गोपाल भार्गव, भूपेंद्रसिंह, वरिष्ठ विधायक शैलेंद्र जैन व प्रदीप लारिया के नाम प्रमुख हैं। सरकार में यहां से इकलौते प्रतिनिधि केबिनेट मंत्री गोविंदसिंह राजपूत भी इस मामले से दूरी बनाए हैं। ये लोग अंदर ही अंदर कुछ कर रहे हों तो बात अलग है, वरना अभी की स्थिति में ये सब तमाशबीन की भूमिका में हैं। इस फेहरिस्त में एक और नाम सांसद डॉ. लता वानखेड़े का भी है। जो पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं, उन्होंने भी एक महिला होने के नाते महापौर तिवारी की नाराजगी दूर करने या जिलाध्यक्ष तिवारी से सफाई दिलाने का प्रयास नहीं किया।

और आखिर में……… प्रभारी मंत्री ने जिले के एक सीनियर विधायक से इस बारे में चर्चा की तो वे बड़ी सफाई से बोले, वे तो मेरी बहन जैसी हैं। मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं। बताया जा रहा है कि प्रभारी मंत्री ने इन विधायकजी से इस अंदाज में बात की थी कि ये सारा रायता आपका फैलाया हुआ है इसलिए आप को ही समेटवाना चाहिए।

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