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विधायक के बंगले तक कांग्रेस विरोध की राजनीति के मायने

महापौर को दरकिनार कर विधायक को घेरना, परिपक्वता का संकेत!

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सागर। गुजरे शनिवार को भाजपा विधायक शैलेंद्रकमार जैन के बंगले तक शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेश जाटव का घेराव करने पहुंचना, महज़ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि शहर की दशकों पुरानी ‘विरोध-की-औपचारिकता’ को तोड़ने जैसा है। यह एक ऐसा राजनीतिक ‘ब्रेकिंग पॉइंट’ है, जिसने यह साबित किया कि कांग्रेस अब केवल नगर निगम या कलेक्टोरेट के गेट पर प्रदर्शन कर खानापूर्ति करने के मूड में नहीं है। कांग्रेस शहर अध्यक्ष महेश जाटव टीम ने वह कर दिखाया, जो पिछले 15-20 वर्षों में कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं कर पाया। उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ विधायक को उनकी व्यक्तिगत जवाबदेही बता कटघरे में खड़ा कर दिया! अतिक्रमण, खराब सड़क, या बिजली-पानी का संकट, ये मुद्दे सीधे तौर पर जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होते हैं। लेकिन अब तक की राजनीति इन मामलों को सिर्फ सरकारी कार्यालयों के पाले में धकेलती रही थी। जाटव के इस कदम ने इस परंपरा को तोड़ा है।
​’हंसते-हंसते’ विरोध: क्या यह अनुभव की कमी या सोची-समझी रणनीति?
​हालांकि, अखबारी और सोशल मीडिया की खबरों में कांग्रेसियों के हंस-हंसकर बात करने और मिठाई खाकर लौटने का उल्लेख कर उनका मखौल उड़ाया गया, लेकिन इस पहलू को भी समझना होगा। पहली बार भाजपा के इस वरिष्ठ विधायक का सीधा सामना करते समय, कांग्रेस के एक युवा अध्यक्ष की बॉडी लैंग्वेज में सहज अंतर आना स्वाभाविक है। ​यह बेहतर है कि वे उन पूर्व अध्यक्षों की तरह ‘टेलीफोनिक विरोध’ तक सीमित नहीं रहे, जो सत्ताधारियों  के सामने सीधे खड़े होने से कतराते थे। यदि विधायक ने उन्हें ‘आश्वासन’ दिया है, तो यह कांग्रेस के दबाव की ही जीत है।
महापौर को दरकिनार कर विधायक को घेरना, परिपक्वता का संकेत!
​इस पूरे घटनाक्रम में जाटव और कांग्रेसियों की राजनीतिक सोच की परिपक्वता भी झलकती है। वे यह भली-भांति जानते थे कि शहर सरकार (महापौर एंड कंपनी) की स्थिति क्या है। शहर के सौंदर्यीकरण के ‘नायक’ आयुक्त राजकुमार खत्री उनकी कितनी सुन रहे हैं। बावजूद कांग्रेसी,  महापौर के पास जाते तो शायद उन्हें वही घिसा-पिटा जवाब मिलता कि “मेरी ही सुनवाई नहीं हो रही….।” मैं आपकी क्या सुनूं।
ऐसे में तो कांग्रेस औपचारिकता के लिए प्रदेश आलाकमान को दिखाने महापौर का घेराव भी कर सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सीधे उस जनप्रतिनिधि का रुख किया। जो शहर से लेकर प्रदेश सरकार तक दखल रखता है। यह विरोध की एक चुनी हुई दिशा है। जिसने यह संदेश दिया है कि सत्तापक्ष का जनप्रतिनिधि असुरक्षित है क्योंकि अब
​विधायक के घर तक विरोध-प्रदर्शन की गूंज पहुंचाई जाएगी। जो न सिर्फ कांग्रेसियों को बल देगा, बल्कि अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए भी एक चेतावनी है कि अब जनता या विपक्ष  अपने कष्टों को लेकर सिर्फ सरकारी दफ्तर नहीं, बल्कि सीधे उनके दरवाज़े पर दस्तक देगी।     ब्लॉक अध्यक्षों का इस्तीफा            राजनीतिक मजबूरी या                 संगठनात्मक बदलाव?
​इस पूरे घटनाक्रम को जिसने हवा दी, वह था ब्लॉक-3 के अध्यक्ष प्रेम नारायण विश्वकर्मा और ब्लॉक-1 के अध्यक्ष योगराज कोरी का इस्तीफा। हालांकि, इन इस्तीफों को लेकर यह बताया जा रहा कि वे कांग्रेस से समर्थन न मिलने पर क्षुब्ध थे, पर इसके पीछे एक संगठनात्मक पहलू भी है। असल में, ये दोनों ब्लॉक अध्यक्ष पूर्व शहर अध्यक्ष की कार्यकारिणी के सदस्य थे। चूंकि महेश जाटव कुछ ही दिनों में अपनी नई कार्यकारिणी की घोषणा करने वाले हैं, इसलिए इन पूर्व अध्यक्षों का हटना लगभग तय था। ऐसे में इन इस्तीफों को जाटव को कमजोर करने का एक स्टंट मात्र माना जाना चाहिए। इस मामले में महेश का कहना है कि दोनों ब्लॉक अध्यक्षों ने अतिक्रमण से हुए उनके व्यक्तिगत नुकसान की कोई जानकारी नहीं दी। वे आगे आकर बताते तो अन्य की तरह उनकी बात भी पुरजोर तरीके सत्तापक्ष के सामने रखते। यूं इस्तीफा देना, उनकी परेशानी का हल नहीं माना जा सकता।

02/11/2025

 

 

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