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कार्ड पॉलिटिक्स: महापौर को कमतर दिखाने की कोशिशें निगम के सदन से दशहरा मैदान तक जारी !

हाल ही में सदन में महापौर और एमआईसी के निर्णयों पर भी सवाल खड़े किए गए 

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सागर। नगर निगम में महापौर संगीता डॉ. सुशील तिवारी को कमतर दिखाने के लिए उनकी पार्टीजन लगातार हमले कर रहे हैं। कभी इन हमलों को नगर निगम अध्यक्ष वृंदावन अहिरवार लीड करते दिखते हैं तो कभी आयुक्त नगर निगम को आगे कर दिया जाता है। कुल मिलाकर महापौर तिवारी को कमजोर दिखाकर स्वयं का वर्चस्व दिखाने वाली कतिपय भाजपाइयों की यह राजनीति अब नगर निगम के सदन से बाहर निकलकर आगामी दशहरा आयोजन के मैदान तक पहुंच गई है। हुआ यह है कि हाल ही में आयुक्त राजकुमार खत्री की तरफ से एक आमंत्रण-पत्र पार्षद दल समेत शहर के गणमान्य नागरिकों को वितरित किया गया है। प्रदेश सरकार में बुंदेेलखंड से इकलौते केबिनेट मंत्री गोविंदसिंह राजपूत बतौर मुख्य अतिथि हैं। इस आमंत्रण-पत्र में अन्य नाम भी हैं, जिनमें महापौर तिवारी को लेकर नगर निगम में चल रही खेमा विशेष की राजनीति जाहिर हो रही है। आमंत्रण-पत्र में तिवारी को तीसरे स्थान पर रखा गया है। उनके ऊपर, भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम तिवारी और उसके भी ऊपर शहर से वरिष्ठ विधायक शैलेंद्रकुमार जैन का नाम है। महापौर के नाम के नीचे नगर निगम अध्यक्ष वृंदावन अहिरवार का नाम प्रिंट किया गया है। इस स्थिति को लेकर महापौर समर्थक पार्षदों का कहना है कि ऐसा लगता है कि भाजपा के ही कतिपय वरिष्ठ नेता व जनप्रतिनिधि, श्रीमती तिवारी को गैर-दल से चुना हुआ मान चुके हैं। क्योंकि जैसा यहां हो रहा है, ठीक वैसा ही ग्वालियर की कांग्रेसी महापौर शोभासिंह सिकरवार के साथ हो रहा है। हाल ही में वहां बहुमतधारी भाजपाई पार्षदों ने साधारण सम्मेलन में पार्षदों की निधि को बढ़ाने के प्रस्ताव को तो मंजूरी दे दी लेकिन महापौर की निधि बढ़ाने से इनकार कर दिया। हालांकि वहां की महापौर के साथ विपक्षी दल के पार्षद व निगम अध्यक्ष सौतेला व्यवहार कर रहे हैं लेकिन यहां की महापौर तिवारी के साथ उनकी ही पार्टी के लोग कर रहे हैं।

आपत्ति ली तो तुरंत ही दूसरा कार्ड छपवा दिया गया

बहरहाल जैसे ही यह कार्ड एमआईसी सदस्यों के मार्फत महापौर संगीता सुशील तिवारी तक पहुंचा तो उनके खेमे के पार्षद-समर्थक नाराज हो गए। तत्काल आयुक्त कार्यालय से जानकारी ली गई। जवाब मिला कि हम लोगों को ”ऊपर” से ही कार्ड का मसौदा दिया गया था। जिसके अनुसार कार्ड में नाम प्रिंट कराए गए। इसके बाद अन्य पार्षदों ने कार्ड को लेकर विरोध जताया। जिसके बाद आनन-फानन में कार्ड को बदलवा दिया गया। दूसरी बार छपवाए गए कार्ड में महापौर तिवारी का नाम एक पायदान ऊपर करते हुए उनका नाम विधायक जैन के नीचे कर दिया गया। जबकि पहले यह जिलाध्यक्ष तिवारी के नीचे था। बता दें कि नगर निगम की आमंत्रण-पत्र की राजनीति का यह पहला मामला नहीं है। इसके पूर्व जून में मोदी सरकार के 11 साल पूर्ण होने पर प्रोफेशनल मीट का एक कार्ड वितरित किया गया था। जिसमें महापौर का के नाम के आगे माननीय नहीं लगाया गया था। जबकि कार्ड में मंत्री, पूर्व मंत्री, सांसद विधायक, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष एवं भाजपा जिलाध्यक्ष के नाम के आगे माननीय लिखा गया था। यह आयोजन भाजपा द्वारा जिला कार्यालय में किया गया था। ताजा घटनाक्रम को लेकर महापौर खेमे के पार्षदों का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि महापौर के साथ पार्टी के ही कतिपय लोग राजनीति कर रहे हैं। जिसमें आयुक्त मोहरा बने हुए हैं। उन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि मेजबान संस्था या कार्यालय का सर्वोच्च प्रतिनिधि, आयोजन की अध्यक्षता करता है। लेकिन महापौर को ये सम्मान देने से भी बचा गया। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता आशीष ज्योतिषी का कहना है नगर निगम का कार्यक्रम सरकारी है। जिसमें कांग्रेस के पदाधिकारी खास कर नेता प्रतिपक्ष को भी ससम्मान स्थान दिया जाना चाहिए। लेकिन भाजपाई, कांग्रेस तो दूर स्वयं अपनी ही पार्टी की महिला महापौर का बार- बार अपमान कर रही है 

सदन में एमआईसी के निर्णयों पर भी सवाल खड़े किए गए

ताजा हालात में महापौर के खिलाफ चल रही मुहिम की शुरुआत नगर निगम के साधारण सम्मेलन से मानी जा सकती है। चार दिन पहले ही जब महापौर की परिषद (एमआईसी)के निर्णय सम्मेलन में सदन के पटल पर रखे गए तो नगर निगम अध्यक्ष ने उन्हें लागू करने पहले कमेटी बनाने की घोषणा कर दी। उदाहरण के लिए एमआईसी ने सिटी स्टेडियम के सामने शूरवीर महाराणा प्रताप की प्रतिमा स्थापित करने, स्टेडियम का नामकरण करने का प्रस्ताव पटल पर रखा। इसके साथ ही सिविल लाइंस वार्ड, नरयावाली नाका वार्ड का नाम बदलने, जिला पंचायत चौराहा पर महाराजा अग्रसेन, जैन हाई स्कूल, बस स्टैंड के पास संत सेन महाराज की प्रतिमा स्थापित करने संबंधी प्रस्ताव रखे। जिसे साधारण परिषद ने मंजूरी भी दे दी लेकिन नगर निगम अध्यक्ष वृंदावन अहिरवार ने इसमें दखल देते हुए पार्षदों की कमेटी बनाने का ऐलान कर दिया। जिसके लिए उन्होंने तर्क दिया कि इन निर्णयों के लिए नागरिकों के दावे-आपत्ति भी लिए जाना चाहिए। जबकि नगर निगम एक्ट 1956 के जानकारों के अनुसार साधारण सम्मेलन में पास हुए निर्णयों पर केवल शासन स्तर पर आपत्ति ली जा सकती है। अध्यक्ष अहिरवार ने  दावे-आपत्ति के बहाने एमआईसी के निर्णयों को उलझाने की कोशिश की है।

महापौर के आयोजन में शामिल होने पर संशय

कार्ड में नाम ऊपर नीचे किए जाने के मामले में महापौर श्रीमती तिवारी का कहना है कि मुझे इस तरह की हरकतों से कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन इस सब से पार्टी के पार्षद समेत पदाधिकारी- कार्यकर्ताओं में रोष है। इस आयोजन में शामिल होने के संबंध में MIC सदस्यों समेत पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों से मशविरा लेने के बाद निर्णय लूंगी।

30/09/2025

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