चुनाव चर्चा
टिकट में देरी: कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेन्स या दौलतमंद प्रत्याशियों का संकट !
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सागर। कांग्रेस के टिकट वितरण में हो रही देरी में सागर विस क्षेत्र को एक सेम्पिल की तरह लीजिए। जहां सुनील निधि जैन एक भरोसेमंद प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के पास है लेकिन चिंतन-मनन के नाम पर हुई देरी के चलते यहां मामला फंस गया। बीजेपी ने यहां निवर्तमान विधायक और तीन बार के विजेता शैलेंद्र जैन को टिकट देकर कांग्रेस नेतृत्व को चैलेंज कर दिया है कि या तो आप भी इसी घराने में टिकट वरना नया प्रत्याशी खोजो। यह समझ से परे है कि कांग्रेस टिकट वितरण को लेकर ये लंबे वाले वेट एंड वॉच की रणनीति क्यों अपना रही है। भारत निर्वाचन आयोग के चुनाव कार्यक्रम के हिसाब से भी चलें तो कांग्रेस मप्र के विस चुनाव की तैयारियों में कुछ हद तक पिछड़ सकती है। वोटिंग की तारीख को बेस बनाकर चलें तो कांग्रेसी प्रत्याशी के पास बमुश्किल 30-31 दिन रहेंगे। वह भी तब जब कांग्रेस कल गुरुवार को टिकट घोषित कर दे। इधर कांग्रेस से टिकट की रेस में शामिल धड़ों का कहना है कि कहीं, ओवर कॉन्फिडेंस ? पार्टी की हवा खराब न कर दे। दूसरी ओर बीजेपी, कांग्रेस की इस रणनीति को प्रत्याशियों का संकट बता रही है। राजनैतिक पंडाओं के अनुसार यह शुरुआत वर्ष 2019 में तब ही हो गई थी, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया विधायकों की एक बड़ी संख्या लेकर बीजेपी में शामिल हो गए थे। उस डमा से कांग्रेस अब तक नहीं उबर पाई है। कई जगह तो स्थिति ये हो गई है कि उनके पास विशुद्ध कांग्रेसी प्रत्याशी ही नहीं बचे हैं। सुरखी इसका सबसे बेहतर उदाहरण हैं। जहां कांग्रेस को जो भी प्रत्याशी नजर आ रहे हैं, वे मूलत: भाजपाई हैं। खुरई में अरुणोदय चौबे से हालात कुछ बदले हैं। वरना यहां तो एमपी-यूपी भर में प्रत्याशी खोजा रहा था। रहली में ज्योति पटेल व कमलेश साहू सरीखे चेहरे हैं लेकिन कांग्रेस को इन से विशेष करिश्में की उम्मीद नहीं है। इसलिए वहां बाहर से दूसरा प्रत्याशी लाने जैसा प्रयोग भी नहीं किया जा रहा। अब बात रिजर्व सीटों की। इसमें बीना सीट कांग्रेस के एक नए क्राइटेरिया का संकेत दे रही है। यहां कांग्रेस एक दम नए चेहरे पर निगाह रखे है। ये शख्स रत्नेश भदौरिया है जो सागर में रजिस्ट्रार रह चुके हैं। आरटीओ के गुरुभाई विभाग, रजिस्ट्री एवं मुद्रांक शुल्क के बारे में यहां ज्यादा कुछ लिखना बेमानी है। इसलिए रत्नेश का असल “बैक-अप” कितना होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। यही बैक-अप कांग्रेस का नया क्राइटेरिया है। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अरुण यादव सरीखे नेताओं के जिले के दौरे के समय सर्किट हाउस के रूम के बाहर पहरा देने वाले नेता कैडर का कहना है कि, ऐसा लगता है कि टिकट के लिए दौलतमंद होना, एक क्राइटेरिया की तरह है! यही वजह है कि खुरई, सुरखी और रहली में मजबूत फाइनेेंसियल बैक-अप वालों को खोजा रहा है। रिजर्वेशन व पहले से विधायक वाली सीट्स में इस फार्मूला के पालन पर रिलेक्सेशन है। सामान्य सीटों में सुरखी से न्यु कांग्रेसी नीरज शर्मा की तुलाई जारी है। वे बस ऑपरेटर हैं। जनपद अध्यक्ष भी रहे हैं सो कांग्रेस उन्हें अवसर दे भी दे। यहीं से आबकारी ठेकेदार पूर्व विधायक संतोष साहू की पुत्री और पूर्व विधायक पारुल साहू भी कोशिश कर रही हैं। खुरई में दौलतमंद अरुणोदय चौबे लगभग नक्की हैं। वे न हुए तो उनकी तरह कोई दूसरा धन्ना सेठ जैसे गुड्डू राजा बुंदेला को सामने लाया जाएगा। सागर में अगर निधि सुनील जैन धर्मसंकट में फंसे तो उनकी जगह बीड़ी फर्म के संचालक और बस ऑपरेटर परिवार के अमित रामजी दुबे, श्रीमंत बीएस जैन परिवार से अनंतिम कांग्रेसी स्वदेश जैन गुड्डू जैसे लोग प्रत्याशी हो सकते हैं। दरवाजे पर खड़े रहने वाले इस कैडर का कहना है कि इसमें भी हमारी पार्टी का कम, बीजेपी का ज्यादा दोष है। उन्होंने डेढ़ दशक तक सत्ता सुख भोगा। जब जिस टाइप के चुनाव आए तो खर्च में कतई कोताही बरती। नतीजतन अब कांग्रेस को भी उन्हीं की टक्कर से धन खरचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
11/10/2023



