“बड़ों” को खींचतान पड़ी भारी, इसलिए संगठन ने श्याम को बनाया सिरमौर

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सागर। भारतीय जनता पार्टी के जिला स्तरीय संगठन के चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। श्याम तिवारी अध्यक्ष तय पाए गए हैं। बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो उनके निर्वाचन में जितना उनका बतौर ठेठ कार्यकर्ता वाला बैकग्राउंड काम कर गया। उससे कहीं अधिक रोल ”बड़ों-बड़ों” की खींचतान ने निभाया। जहां एक ओर पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ विधायक भूपेंद्रसिंह वाला धड़ा, पूर्व सांसद राजबहादुरसिंह के लिए सक्रिय था। वहीं दूसरी ओर केबिनेट मंत्री गोविंदसिंह राजपूत-वरिष्ठ विधायक शैलेंद्र जैन का गुट निवर्तमान अध्यक्ष गौरव सिरोठिया को रिपीट कराना चाहता था।
दोनों ही गुटों में इस कदर खींचतान थी कि संगठन खुद भी निर्णय नहीं ले पा रहा था कि करें तो क्या करें। इसी बीच एक बड़ा और सर्वमान्य चेहरा पूर्व विधायक बंडा हरवंशसिंह राठौर के रूप में सामने आया। लगा अध्यक्ष का नाम तय करने में दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन छोटे भाई के व्यवसाय पर आईटी के छापे से राठौर की दावेदारी खटाई में पड़ गई। बात घूम फिरकर गौरव सिरोठिया, राजबहादुरसिंह और बहुत हद तक पूर्व विधायक विनोद पंथी पर आ गई। अजा वर्ग की महिला होने के नाते विनोद एक बेहतर विकल्प थीं लेकिन पार्टी ने जैसे ही दो जिलाध्यक्ष वाला कॉन्सेप्ट तय किया तो पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव इस चुनावी पटल पर नमूदार हो गए।
उन्होंने जिला पंचायत सदस्य रानी कुशवाहा का नाम आगे बढ़ा दिया। भार्गव के आगे किसी ने कुछ नहीं बोला और रानी को ग्रामीण अध्यक्ष के रूप में अवसर मिलना तय हो गया। कुशवाहा के पास बतौर अध्यक्ष देवरी, रहली और बंडा विस क्षेत्र की सांगठनिक गतिविधियों की जिम्मेदारी रहेगी।
बात लौटकर श्याम तिवारी की करें तो श्याम की नियुक्ति ने बड़े नेताओं को यह मैसेज दिया है कि अगर सर्वसम्मति ने नाम नहीं लाओगो तो यही होगा। हालांकि श्याम तिवारी इस पद के लिए पांच साल पहले भी दावेदार थे। लेकिन प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से करीबी के चलते कहीं जूनियर गौरव सिरोठिया को अवसर मिल गया। दो-ढाई साल पहले जब नगरीय निकाय के चुनाव हुए थे। तब श्याम तिवारी ने पत्नी के लिए महापौर के टिकट की जुगत लगाई थी। लेकिन उन्हें, उन्हीं लोगों का सपोर्ट नहीं मिला। जिनके लिए वे चुनावों में एड़ी-चोटी लगाते रहते थे।
अध्यक्ष के चुनावों में भी श्याम तिवारी के साथ यही होने जा रहा था। बताते हैं कि गुट विशेष को इस बात का खुटका रहता है कि अगर श्याम को बड़ा मौका मिला तो भविष्य में स्थानीय विस क्षेत्र से टिकट का दावेदार भी बन सकता है। इधर गौरव सिरोठिया के कार्यकाल के उत्तरार्ध की भी कई कहानियां थीं। शायद जो उनके खिलाफ गईं। जैसे कि बीते बीना विस क्षेत्र के चुनाव की पराजय के बाद भाजपा के हारे हुए प्रत्याशी पूर्व विधायक महेश राय द्वारा उन पर चुनाव हरवाने के खुल्ले आरोप। इससे पहले वे अपने करीबी और ननि अध्यक्ष वृंदावन अहिरवार को नरयावली विस क्षेत्र में घुसपैठ कराने को लेकर वरिष्ठ विधायक प्रदीप लारिया की नजर में चढ़ चुके थे। माने लारिया भी किसी भी स्थिति में नहीं चाहते थे कि गौरव को फिर मौका मिले और देर-सबेर वृंदावन नरयावली में घूमते दिखने लगें।
बीते एक साल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मंचों पर वरिष्ठ पार्टीजनों के सिटिंग अरेंजमेंट से लेकर आमंत्रण पत्रों में नाम, फ्लेक्स – फोटो वगैरह में हेरा-फेरी भी किसी से छिपी नहीं है। जो गौरव की अध्यक्षीय जिम्मेदारी व क्षमताओं पर सवालिया निशान लगाता है। जैसा कि पहले ही कहा चुका है कि गौरव आखिर-आखिर में जिला के बजाए कबीलाई अध्यक्ष नजर आने लगे थे। इधर विधायक,मंत्री और पूर्व मंत्री के बेजा दखल ने उनके रिपीट होने के चांस और कम कर दिए। परिणामत: श्याम तिवारी के अध्यक्ष बनने का रास्ता स्वमेव साफ हो गया। बीते साल 50 के हुए श्याम तिवारी, 20 साल की उम्र में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। खूब छात्र आंदोलन में शामिल हुए। वर्ष 2006 में पहली बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष बनाए गए। उन्हें वर्ष 2009 में दोबारा इसी पद पर मनोनीत किया गया। इसके बाद साल 2012 में भारतीय जनता पार्टी के जिला महामंत्री बने। 2014 में जिला उपाध्यक्ष भी रहे। साल 2008, 2013 और 2018 में विस चुनावों में सागर के प्रभारी रहे। 2021 में एक बार फिर श्याम को जिला महामंत्री बनाया गया। तब से वह इसी पद पर काम कर रहे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि श्याम का चयन यह भी बताता है कि पार्टी-संगठन में कार्यकर्ताओं का मूल्यांकन हो रहा है। तिवारी का चयन इसका प्रमाण है। इससे पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता-पदाधिकारियों को संबल मिलेगा। उनमें ऊर्जा का संचार होगा। श्याम तिवारी का महामंत्री के पद पर रहते हुए जिलेे में नेटवर्क तैयार हो चुका है। इसलिए उन्हें काम करने में विशेष अड़चन नहीं आनी चाहिए। रही बात इन “बड़ों” की खींचतान तो उससे भी पार पाने में उन्हें कठिनाई नहीं आएगी। इसके पीछे मुख्य वजह ये है कि तिवारी किसी गुट विशेष के एकदम से सगे नहीं हैं। बीते चुनावों में वह सभी के रंग और क्षमताएं देख चुके हैं। साथ ही उनके सामने अध्यक्ष की गद्दी से उतर रहे सिरोठिया का उदाहरण भी है कि अगर चुनावी राजनीति माहिर खिलाड़ियों के बीच जरूरत से ज्यादा उठोगे-बैठोगे तो संगठन भी कोई नया श्याम तिवारी ढूंढने में देरी नहीं करेगा।
14/01/2025



