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विवि: प्लैगरिज्म पर हावर्ड  ने प्रोफेसर को बर्खास्त किया, सागर में चुप्पी?

यहां तो संदेही को डोफा और डीन जैसे महत्वपूर्ण पद देकर उपकृत किया जा रहा है

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सागर। हाल ही में दुनिया के जाने-माने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने अपनी एक प्रोफेसर फ्रांसेस्का गीनो पर शोध में डेटा में हेराफेरी और प्लैगरिज्म के आरोप लगने पर उन्हें बिना वेतन छुट्टी पर भेज दिया। उनकी स्थाई नियुक्ति भी समाप्त कर दी। कुछ इसी तरह का मामला डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) के मानव विज्ञान विभाग का भी है। यहां के एचओडी प्रो. अजीत जायसवाल पर साहित्यिक चोरी जालसाजी, धोखाधड़ी और कॉपीराइट उल्लंघन जैसे गंभीर शैक्षणिक अपराधों के आरोप बीते एक साल से लगातार लगाए जा रहे हैं। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। उलटा उन्हें लगातार प्रश्रय दिया जा रहा है। डीन, डोफा जैसे पदों से नवाजा जा रहा है।

दूसरे मानवशास्त्री के शोध कार्य को चुराने का आरोप

15 दिन पहले ही मानव शास्त्र विभाग के एक अन्य प्रो. राजेश गौतम ने कुलपति समेत शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रपति समेत अन्य को प्रो. जायसवाल के संबंध में एक लंबी-चौड़ी शिकायत की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रो. जायसवाल ने प्रसिद्ध लेखक पी. नाथ की पुस्तक से सामग्री चुराकर उसे अपने नाम से विदेशी जर्नल में प्रकाशित किया। उन्होंने एक ही शोधपत्र को दो अलग-अलग जर्नलों में मात्र शीर्षक बदलकर प्रकाशित कर दिया। ऐसा उन्होंने एक बार नहीं परन्तु दो बार किया 2015 एवं 2018 में, एवं 2023 एवं 2024 में किया। जो न केवल शोध की नैतिकता का घोर उल्लंघन है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन मानकों के तहत गंभीर शैक्षणिक अपराध भी है। जो कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 336(1) (जालसाजी) धारा 336(2) धारा 336(3), धारा 338, धारा 318(4)के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। इसके अतिरिक्त मौलिक शैक्षणिक सामग्री का बिना अनुमति पुनरुत्पादन कर कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 51 का उल्लंघन है। इस अपराध के लिए धारा 63 के तहत दंड एवं जुर्माने का प्रावधान है।

कुलपति और कुलसचिव की भूमिका पर उठे सवाल

ऐसे मामलों में कार्रवाई की प्राथमिक और कानूनी जिम्मेदारी कुलपति और कुलसचिव की होती है। लेकिन कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता की भूमिका इस पूरे मामले में गंभीर रूप से संदिग्ध हो चुकी है। एक वर्ष की चुप्पी और कोई भी निर्णायक कदम ना उठाना यह सवाल खड़ा करता है कि प्रो. जायसवाल को वे क्यों संरक्षण दे रही हैं। अगर कुलपति और कुलसचिव जानबूझकर दे संदेही को बचाते हैं या कार्रवाई में देरी करते हैं, तो उनके खिलाफ भी लोक सेवक के रूप में कर्तव्यों के उल्लंघन और पद के दुरुपयोग की धाराओं में संवैधानिक और कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए। विवि से जुड़े लोगों का दबी जुबान में कहना है कि इस मामले से विश्वविद्यालय की न केवल साख धूमिल हो रही है, बल्कि यह यूजीसी के दिशा-निर्देशों और आयोग की नैतिक संहिता का खुला उल्लंघन भी हो रहा है। यह सरकार को गुमराह करने और अकादमिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के अपराध जैसा है।

01/06/2025

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