चुनाव चर्चा

सेल्फ लोडेड अमेरिकन बंदूक रखने वाले डाकू मलखानसिंह अब कहलाएंगे कांग्रेसी

सागर। देहात-बीहड़ क्षेत्र में पायी जाने वाली डकैत प्रजाति लुप्तप्राय: है। अब जो हैं, वह शहर में हम और आप के बीच में ही रहते हैं। वारदात कर देते हैं तब पता चलता है कि अरे वह तो डकैत था ! बहरहाल आज फिर एक डकैत चर्चा में हैं। चंबल के कुख्यात डकैत रहे डाकू मलखानसिंह ने बुधवार को राजधानी भोपाल में कांग्रेस पार्टी में दाखिला ले लिया। इसके पहले वह स्व. मुलायमसिंह क भाई शिवपालसिंह यादव की पार्टी में रहे और उसके पहले भारतीय जनता पार्टी में भी रहे। लेकिन वर्ष 2019 के आम चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण नाराज हो गए।चूंकि जिंदगी का अधिकांश हिस्सा, संगठन और गिरोहों में गुजरा सो चार साल में ही ऊब गए। इसलिए उन्होंने देश के दूसरे नंबर के सबसे बड़े राजनैतिक गिरोह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का हाथ थामने का निर्णय लिया। यह भी गजब इत्तेफाक है कि जिस कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुनसिंह ने वर्ष 1982 में डाकू मलखान सिंह से सशस्त्र समर्पण कराया था। उसी पार्टी की उन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में सदस्यता ली। यहां-वहां से मिली जानकारी के अनुसार मलखानसिंह 80 साल से ज्यादा के हो चुके हैं। लेकिन टीला-बीहड़ों में 10  साल से ज्यादा की भाग-दौड़ के चलते वह अभी भी काफी चुस्त-दुरुस्त हैं। देश का सबसे बड़ा डकैगिरोह चलाते थे मलखानसिंह
बीबीसी की न्यूज वेबसाइट से डाकू मलखानसिंह के बारे में काफी विश्वसनीय ब्योरा मिलता है। इसके अनुसार 80 के दशक में मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले की चंबल घाटी में डाकू मलखान सिंह एक दुर्दांत नाम था। ख्यात फोटोग्राफर प्रशांत पंजियार ने कई महीनों कोशिशें की। तब जाकर 1982 में डकैतों के सरदार मलखान सिंह से मुलाक़ात हुई। पंजियार ने एक किताब भी लिखी है। जिसका टाइटल देट विच इज  है। उसमें लिखा है कि, चंबल में सबसे अधिक डर डाकू मलखान सिंह और उनके गिरोह का था। वे पैदल ही चला करते थे और ऊंचे किनारों वाली गहरी संकरी घाटियों में अस्थायी कैंप लगा कर रहा करते थे। बताया जाता है कि 13 साल के लंबे राज के दौरान मलखान सिंह के गिरोह में क़रीब 100 लोगों ने काम किया। इसलिए उस समय यह देश भर में सबसे बड़ा दस्यु डकैत गिरोह माना जाता था। इसलिए भी उन्हें  राजा नाम दिया गया। 
आज के हिसाब से सिर पर 6 लाख रुपए का इनाम था 
 डकैत मलखानसिंह वर्ष 1970 के शुरुआत में बीहड़ों में कूदे। बताया जाता है कि गांव के मंदिर की जमीन पर किसी पंडा-पुजारी ने कब्जा कर लिया था। यहीं से विवाद की शुरुआत हुई। करीब 13 साल के डकैती करियर में मलखानसिंह के खिलाफ 94 केस दर्ज हुए। जिसमें डकैती, हत्या, अपहरण जैसे संगीन अपराध शामिल थे। मलखानसिंह के मप्र और उप्र में बढ़ते आपराधिक खौफ को देखते हुए तत्कालीन राज्य सरकार ने 70 हजार रुपए का इनाम रखा था। जो आज के हिसाब से करीब 6 लाख रुपए होता है। फोटोग्राफर पंजियार लिखते हैं कि मलखानसिंह के पास अमेरिकन मेड सेल्फ लोडेड बंदूक हुआ करती थी। जबकि दूसरे साथियों के पास एके-47 और कार्बाइन सरीखे के ऑटोमेटिक हथियार थे। जब उनकी चर्चा डाकू मलखानसिंह ने हुई तो उन्होंने हथियार उठाने का कारण ऊंची जाति के लोगों का नीची जाति पर अत्याचार करना बताया। आखिर में उन्होंने इस शर्त पर सरेंडर किया कि किसी भी साथी को फांसी की सजा नहीं दी जाएगी। खुली जेल में रखा जाएगा। आखिर में जब सभी केसों का निपटारा हुआ तो मलखानसिंह को न्यायालयों ने बरी घोषित कर दिया। वर्तमान में उनकी पत्नी ललिता राजपूत गुना पुरा सिनगयाई गांव की सरपंच है।

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