शख्सियत
….. और ये रहा सबका परचा लिखने वाले बाबा जी का परचा
जब तक वे किंगमेकर हैं तब तक उनकी टीआरपी मेंटेन रहेगी। किंग बनने या अपनी पसंद के क्षत्रप स्थापित करने का कोई भी मंसूबा उनकी ख्याति को रसातल में ले जाएगा। नीति कहती है कि बाबा को राजनैतिक, आर्थिक, शारीरिक, वाचिक संयमों का पालन करना होगा।
सागर । वे एक तरह से निर्मल बाबा ही हैं, बल्कि कहा जाए तो उनका संशोधित वर्जन हैं। निर्मल बाबा डायरेक्ट खाते में कमाई का दस परसेंट डलवाने के शिकार ढूंढ़ते थे। हॉल बुक करा कर भक्तों को टिकट बेच कर बुलाया जाता था।टीवी चैनलों से टाई-अप होने से उन पर टेलीकास्ट होता था। चैनल वाले भी अपना हिस्सा पा कर प्रसन्न। न कथा का स्वांग, न विशालकाय पंडाल, न पूजा और न भंडारा। निर्मल बाबा के अपने प्रशिक्षित बांउसर और सेवादार होते थे। इसलिए जिला प्रशासन और नेता जमात का कोई आब्लिगेशन नहीं होता था। अलग से अपाइंटमेंट के लिए फीस और फिर उपाय के नाम पर बहुत कुछ…! तात्कालिक उपाय के रूप में भक्त के आसपास के तीर्थ या सिद्ध क्षेत्र में भेजना। इसलिए सभी धर्मस्थलों के कमेटी वाले भी प्रसन्न रहते। अंत में आय का दस प्रतिशत खाते में दान करने को बोलते थे। ज्यादातर अमाउंट खातों में डलवाते थे। जनता की निगाह में पारदर्शिता का आडंबर बना रहता और आयकर चुकाने से एक हिस्सा सरकार को भी मिलता रहता। खुद का न कोई पूजास्थल न धाम । बड़ा निरापद काम था निर्मल बाबा का। बड़े जतन से ऐसा मैकेनिज्म बनाया था उन्होंने कि किसी को एतराज़ न हो। यहां ध्यान दीजिए कि निर्मल बाबा के पास भी लगभग वही विद्या थी जो बागेश्वर धाम वालों के पास है। इसे कर्ण पिशाचनी कह लें या कुछ और। वस्तुस्थिति में है यह ध्यान आधारित तंत्र विद्या का ही एक स्वरूप।
वे देश भर में मत्था टिकवाते थे, ये मुल्जिम बनाकर तारीख पर तारीख लगवाते हैं
बागेश्वर वाली पद्धति भले अलग हो उद्देश्य लगभग वही है। मिलने के नाम पर कोई शुल्क नहीं लेकिन उपाय करने धाम बुलाना। वह भी एकाध बार नहीं बल्कि 21या और अधिक पेशियां कराना। वे इसे पेशी कहते हैं गोया कि धाम अदालत है और भक्त मुल्जिम… अर्जी लगाने वाले फरियादियों को वे दिव्य दरबार में चुनते हैं। दिव्य दरबार कथा पंडाल में ही एक दिन होता है। जाहिर है कि इसके लिए 5 या 7 दिन की कथा का श्रमसाध्य, खर्चीला और वृहद आयोजन करना पड़ता है। सभी आयोजन जनसहयोग से दान दक्षिणा से ही होते हैं। जैसा कि उनको सूक्ष्मता से देखने सुनने से पता लगा कि वे मिलने के नाम पर पैसा किसी को नहीं देने के लिए बार बार कहते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि धाम पर आओ वहां आपको स्वेच्छा से जो धन संपदा दान करना हो कर सकते हैं। कथा पंडाल में भी उपहार, दान दक्षिणा स्वीकार होती है। बागेश्वर वाले बाबा की विद्या भी लगभग वही है जो निर्मल बाबा की है। ये पहले से पर्चा लिख कर साक्ष्य देते हुए अपने चमत्कार की घोषणा दलांक कर,पूरी चुनौती और घमंड भरे दावे के साथ करते हैं। युवावस्था का खिलंदड़ापन है सो लोग मासूमियत का टच देख लेते हैं, गंभीरता की अपेक्षा उतनी नहीं करते
कोई दावा सच नहीं हुआ तो बताने को संकल्प की क्षीणता तो है ही
बुंदेलखंड बोली वाणी में भदेस, लट्ठ छाप वार्तालाप वाला कम प्रचारित इलाका है। यदि वक्ता सुग्राही हो तो बुंदेली टोन में खड़ी बोली बहुत सहज व सुंदरता से उतरती है। अत: बेबूझ इलाके के इन चमत्कारी युवक, जिनका मुखमंडल सौंदर्य और ब्रह्मचर्य से कांतिमान है, उसकी टीआरपी मिलना स्वाभाविक है। तरुणियों में उन्हें कन्हैया सदृश्य स्वीकार्यता मिल रही है। चक्र भले हाथ में न हो। स्वयं ही सुदर्शन हैं और बैठते भी पवित्र व्यासपीठ पर हैं। जब वे आपका कोई गोपनीय रहस्य बता कर आपको चकित करते हैं तो दिव्यता की तकरीबन पुष्टि मान ली जाती है। कुल मिला कर सावधानी से बुना गया दिव्यता का आभा लोक भक्तों के मानस पटल पर बनता चला जाता है और यह मानस संक्रमण की तरह द्विगुणित होता चला जाता है। यहां कोई इस पश्चातवर्ती अन्वेषण की आवश्यकता महसूस नहीं करता कि आंशिक अतीत या वर्तमान बताने में सक्षम दिव्य पुरुष भविष्य के, असाध्य रोगों के, बड़ी-बड़ी घरेलू, प्रशासनिक, भ्रष्टाचार से जुड़ी व्यक्तिगत समस्याओं के जो उपाय बता कर दावे के साथ निराकरण की बात कह रहे हैं , उनकी बातें कहीं उतर भी रही हैं अथवा नहीं। भक्त बन चुकी मन:स्थिति आस्था में प्रमाण और परीक्षाएं नहीं मांगती बल्कि स्वयं के समर्पण के प्रति जवाबदेही मान लेती है। इसीलिए जब बागेश्वर वाले बाबा हर एक से मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन छुड़वाते हैं तो वे इस निषेध को एक काट की तरह इस्तेमाल करते हैं। यदि उनका कोई दावा सच नहीं हुआ तो यह संकल्प की क्षीणता के कारण हुआ होगा। पीड़ित संतोष करने बाध्य रहेगा कि मेरे संकल्प में कभी यह चूक हो गई होगी। और यह कमी स्वाभाविक है… कभी भी किसी खाद्य पदार्थ में जाने-अनजाने प्याज लहसुन खाने जाने की संभावना बनी ही रहती है।
जब तक किंगमेकर हैं तब तक टीआरपी मेंटेन रहेगी
जो लोग बागेश्वर वाले बाबा के आभामंडल में राजनीतिक आकांक्षाओं और संदेशों को ढूंढ़ रहे हैं वे गलत नहीं हैं। सनातन और हिंदुत्व एक ध्रुव सत्य की तरह सकल राजनीति का केंद्र बन ही चुके हैं। परिस्थितियां यह हैं कि 80 प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी को विस्मृत कर 16 प्रतिशत को लाक करके भेद विभेद,उठा पटक से दो पांच परसेंट बढ़ाते हुए सत्ता हेतु अनिवार्य वोट परसेंट तक पहुंचने की कोशिश करने वाले सदैव पीछे रहेंगे। बाबा का एजेंडा सब को दिख रहा है लेकिन कांग्रेस और यहां तक आप पार्टी तक उनकी पादुकाओं में बिछे हुए हैं। सागर की कथा के प्रथम दिवस आम-आदमी पार्टी के सागर प्रभारी धर्णेंद्र जैन अपने साथियों के साथ धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री जी के पोस्टर शहर में लगा रहे थे। फेसबुक वाल पर उन्होंने खुद इसकी तस्वीरें शेयर की हैं। बाबा किसी राजनैतिक दल की तरफदारी नहीं करने की बात आहिस्ता से करते हैं लेकिन दल विशेष के सभी मुद्दे उनके संदेशों में जोरदार ढंग से उठाए जा रहे हैं। भोपाल के एक पत्रकार ने उन्हें बुंदेलखंड में उमाभारती का विकल्प बता दिया। वे भूल गए कि उमाभारती का आरंभ सकल हिंदू समाज में लोकप्रियता से हुआ था। उनकी जिव्हा पर बैठी सरस्वती ने वाचाल हो कर उनके आध्यात्मिक और राजनीतिक आभामंडलों को एक उपजाति के सीमित दायरे में कैद कर दिया है। धरातल पर देखें तो धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री की बुद्धिलब्धि, वक्तृत्व प्रतिभा उमाभारती जैसी ओजपूर्ण नहीं है। धीरेंद्र कृष्ण के उदयकाल में वे सर्वमान्य आध्यात्मिक गुरु की तरह उदित हुए हैं। उन पर आस्था करने वालों का कोर बेस आज सभी जातिवर्गों में है लेकिन उनके इर्द-गिर्द के कोर एरिया में सिर्फ ब्राह्मण वर्ग का प्रभुत्व है। बाबा की वाचालता में यदि राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं का घालमेल होता है तो देर सबेर वे एक क्षेत्रीय ब्राह्मण नेता के रूप में सीमित हो कर रह जाएंगे। अपनी राजनैतिक पसंद नापसंद को गुप्त रख पाने की सर्वग्राहणी, सर्वसुपाचनी विद्या को वे नहीं सीख पाए हैं। साथ यह कि जब तक वे किंगमेकर हैं तब तक उनकी टीआरपी मेंटेन रहेगी। किंग बनने या अपनी पसंद के क्षत्रप स्थापित करने का कोई भी मंसूबा उनकी ख्याति को रसातल में ले जाएगा। नीति कहती है कि बाबा को राजनैतिक, आर्थिक, शारीरिक, वाचिक संयमों का पालन करना होगा। इसलिए क्योंकि अभी तक कांग्रेस और उसके सेडो जातिगत संगठनों को बाबा का तोड़ पूरी बुद्धि बल लगाने पर भी नहीं मिल पा रहा लेकिन उनके प्रयास लगातार इस दिशा में जारी रहेंगे। हमारी तो उन्हें शुभकामनाएं हैं। बुंदेलखंड का एक युवा ख्याति के शिखर पर पहुंचता है तो समूचे बुंदेलखंड का मान बढ़ता है।
– गुमनाम बाबा की कलम से



