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स्मृति शेष: बेनेगल ने धामोनी के पास कुल्ल गांव में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म समर को किया था शूट

सागर। समानांतर सिनेमा के महत्वपूर्ण स्तंभ श्याम बेनेगल का 90 वर्ष की आयु में मुंबई में निधन हो गया। दादा साहब फाल्के अवार्डी इस महान फिल्मकार का सागर से भी सरोकार है। दरअसल वर्ष 1998-1999 में उन्होंने शहर से करीब 25-30 किमी दूर बसे धामोनी रोड पर बसे कुल्ल गांव में समर फिल्म को शूट किया था। इस फिल्म की कहानी इसी कुल्ल गांव में घटी एक सच्ची घटना पर आधारित थी। फिल्म में इंस्पेक्टर का किरदार निभाने वाले डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि के ईएमआरसी विभाग के निदेशक डॉ. पंकज तिवारी ने सागरवणी  से इस फिल्म और श्याम बेनेगल से जुड़ी कुछ यादें साझा की।

स्व. श्याम बेनेगल                                                       उन्होंने बताया कि फिल्म की कहानी गांवों में व्याप्त जातिवाद की थीम पर आधारित थी। जिसमें एससी-एसटी वर्ग और सर्वणों के बीच एक हैंडपंप से पानी भरने को लेकर हुए विवाद को केंद्र में रखा गया था। खास बात ये थी कि बेनेगल साहब ने इस फिल्म को गांव की वास्तविक लोकेशन पर फिल्माया था। उन्होंने इस फिल्म में उपरोक्त घटनाक्रम को एक फिल्म यूनिट द्वारा शूट करते हुए फिल्माया था। यानी फिल्म के भीतर यह फिल्म शूटिंग चलती रहती है। डॉ. तिवारी के अनुसार फिल्म इतनी बेहतर बन पड़ी थी कि वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में इसे भारत सरकार ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया था। डॉ. तिवारी ने बताया कि फिल्म के मुख्य किरदारों में रघुवीर यादव, दिव्या दत्ता, राजेश्वरी सचदेव, रजत कपूर, सीमा बिस्वास, यशपाल शर्मा, रवि झंकार शामिल थे। जबकि सागर से मैं और एड. नीरज जैन, जगदीश शर्मा, श्याम मनोहर मिश्रा समेत अन्य कुछ थियेटर कलाकारों ने इसमें काम किया था। मैंने इस फिल्म में इंस्पेक्टर का रोल किया था। डॉ. तिवारी ने बताया कि फिल्म में एक किरदार तत्कालीन संभागीय कमिश्नर पुखराज मारू ने भी निभाया था। फिल्म में भी उन्होंने कमिश्नर का ही रोल किया था। श्याम बेनेगल के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि वह भारत ही नहीं दुनिया के एक बड़े फिल्म मेकर थे। महान कलाकार और निर्देशक गुरुदत्त के चचेरे भाई, बेनेगल के फिल्म निर्माण का अपना एक तरीका था। जैसे इस फिल्म समर की ही बात करें तो उन्होंने बगैर डबिंग के यह फिल्म ओरिजनल साउंड के साथ फिल्माई थी। वे इस फिल्म के जरिए देश में जातिप्रथा के हालात को दिखाना चाहते थे और उसमें वह कामयाब भी रहे। डॉ. तिवारी ने बताया कि वे और उनकी यूनिट सिविल लाइंस स्थित वरदान होटल में रुकी थी। जहां से वह सीधे कुल्ल गांव स्थित लोकेशन पर जाया करते थे। वे कलाकारों से काम लेना बहुत बेहतर जानते थे। जहां तक मैं व्यक्तिगत रूप से कहूं तो उन्हें पात्र के अनुसार कलाकार चयनित करने की बड़ी समझ थी। इसलिए उनकी फिल्मों के अधिकांश पात्र वास्तविक से लगते हैं। उनकी कहानियों में मौलिकता और सम-सामयिक मुद्दे व समस्याएं रहतीं थीं। मंडी से लेकर वेलडन अब्बा इसके उदाहरण हैं। समर फिल्म की ही दोबारा बात करें तो इसके जरिए उन्होंने भारत के ग्रामीण इलाकों में जातिवाद के कारण उपजी समस्याओं को बड़े रोचक ढंग से चित्रित किया था। 23/12/2024

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