साक्षात्कार में श्री दादा गुरु बोले, नदी नहीं लोगों का मन मैला है इसलिए केवल सरकारें दोषी नहीं…. खुरई में हुआ 61 हजार वृक्ष का पौधरोपण
विद्यार्थी 10 मिनट वृक्षों के साथ बिताएं, इससे स्मरण शक्ति बढ़ेगी

सागर। खुरई में जीवंत और प्रत्यक्ष रूप में सहस्रकोटि यज्ञ हुआ है। श्रावण मास शिव शक्ति के आराधना का पवित्र मास है। जिसमें खुरई विधानसभा क्षेत्र में 51000 देव वृक्ष प्रतिमाओं की स्थापना का संकल्प पूरा हुआ। प्रकृति में एक मात्र वृक्ष ही हैं जिनके पास जीवन के लिए अनिवार्य माटी, वायु, जल तीनों के संरक्षण का समाधान है। यह उद्गार नर्मदापुत्र, प्रकृति के उपासक पूज्य श्री समर्थ गुरु दादा गुरु ने खुरई के माडल स्कूल प्रांगण में में पूर्व गृहमंत्री, खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह द्वारा एक पेड़ मां के नाम के तहत एकदिन में 50 हजार वृक्ष लगाने के महा अभियान के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पूर्व गृहमंत्री, खुरई विधायक भूपेंद्रसिंह ने इस अवसर पर मंच से बताया कि खुरई विधानसभा क्षेत्र में 61700 वृक्षों का पौधा रोपण किया जा चुका है।
कार्यक्रम में अपने आशीष वचनों में पूज्य श्री दादा गुरु ने कहा कि जहां स्वच्छता होगी, पवित्रता होगी वहीं विकास, सफलता और प्रसन्नता होगी। जब हम बुंदेली माटी का शौर्य,धैर्य, बलिदान की भूमि है जिसे स्पर्श करने पर धैर्य के साथ शौर्य और पराक्रम का अनुभव होता है। ऐसी माटी से आज खुरई को हरा भरा करने में नंबर वन बनाने की शुरुआत भूपेंद्र सिंह के द्वारा हुई है। इससे पहले कार्यक्रम में उपस्थित स्कूली विद्यार्थियों से पूज्य श्री दादा गुरु ने कहा कि आज आप सभी ने जिन वृक्षों को पौधों के रूप में लगाया है उन वृक्षों में,पहाड़ों में परम सत्ता,शक्ति, प्रकृति की जीवंत साकार उपस्थिति है। वृक्ष के समीप रहें, प्रतिदिन पांच मिनट वृक्षों के पास बैठैं तो आपकी स्मरण शक्ति प्रखर हो जाएगी और इससे अध्ययन में बहुत आगे जा सकेंगे। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी सुदृढ़ होगी। अपनी माटी, प्रकृति से जो जुड़ा है वह सुरक्षित है और किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति इनके समीप रह कर कर सकता है। उन्होंने बताया कि एक पेड़ मां के नाम ही क्यों, इसलिए कि मां जीवन का आधार है। मां जो घर परिवार में जननी के रूप में है, इस धरा के रूप में है। हम खुरई में आज इसे सहस्रकोटि प्रकट यज्ञ के रूप में देख रहे हैं। यहां आज हजारों देववृक्ष प्रतिमाओं की स्थापना का सहस्रकोटि यज्ञ हो रहा है जिसके मूल में शुद्धिकरण, सिद्धियां, निधियां, संवर्धन,संरक्षण और संपन्नता है। उन्होंने कहा कि पेड़ का संबंध हमारे चित्त, चेतना,प्राण से संबंध है क्योंकि मिट्टी, हवा और पानी ही जीवन का आधार हैं जिनके बिना जीवन संभव नहीं। पृथ्वी पर सिर्फ वृक्ष ही ऐसी शक्ति है जिससे प्राणवायु,जलसंरक्षण और माटी का संरक्षण होता है। और यह भी सत्य है कि वैज्ञानिकों को अभी तक पृथ्वी के अलावा अन्य किसी गृह पर वृक्षों की उपस्थिति नहीं मिली है। हम हर परिवार को बोलते हैं कि आपको वृक्ष लगाने की प्रतिज्ञा लेना होगी। उन्होंने कहा कि गुरु दिशा और विचार देते हैं। जो भी धर्म को अपनी सामर्थ्य से निष्काम सेवा भाव धारण करता है जैसी कि भूपेंद्र सिंह कर रहे हैं, गुरु गोविंद दोनों उसका साथ नहीं छोड़ते। भूपेंद्र सिंह के रूप में ऐसी निष्काम भाव की मूर्ति को खुरई और सागर ने पाया है जो गांव को तीर्थ बना देते हैं।
विधायक श्री सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि ऐसा वृक्षारोपण अभियान प्रतिवर्ष होगा और खुरई में अब प्रतिवर्ष 50 हजार वृक्ष लगाने का रिकार्ड बनेगा। खुरई विकास, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे अनेक क्षेत्रों में नंबर वन है और अब इसे पर्यावरण संरक्षण का माडल भी हम बनाएंगे। उन्होंने कहा कि खुरई के लिए हमारे तीन लक्ष्य हैं, पहला खुरई को शिक्षा के क्षेत्र में नंबर वन बनाना, दूसरा यहां के हर युवा को रोजगार उपलब्ध कराना और तीसरा खुरई में मेडीकल कालेज की स्थापना कराना। उन्होंने बताया कि खुरई में तीन बांध बीना नदी, हनौता व उल्दन बांधों से खुरई में सौ प्रतिशत सिंचाई का लक्ष्य अगले वर्ष हासिल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि बीना, धसान और बेतवा नदियों का संगम खुरई विधानसभा क्षेत्र में होता है। वृक्ष और नदियों से हमें देने की प्रेरणा मिलती है। वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाता सब दूसरों को देता है, नदियां अपना जल स्वयं नहीं पीतीं दूसरों की प्यास बुझातीं हैं
साक्षात्कार: नदी नहीं लोगों का मन मैला है इसलिए केवल सरकारें दोषी नहीं….
सागर। नदियां नहीं लोगों का मन मैला है। जो उन्हें संरक्षित करने आगे नहीं आ रहे। इसके लिए हम सभी दोषी हैं। इसे समाज की विसंगति कहना ठीक होगा। इसके लिए हम सरकारों को दोषी नहीं ठहरा सकते। नदियों का प्रदूषण हो या फिर रेत का वैध-अवैध उत्खनन यह सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। यह बात चार बार नर्मदा परिक्रमा चुके मां नर्मदा के उपासक पूज्य श्री दादा गुरु ने सागरवाणी से विशेष चर्चा में कही। नर्मदा के अलावा अन्य नदियों के संरक्षण व शुद्धिकरण में स्वयं की भूमिका को लेकर श्री दादा गुरु ने जवाब दिया कि गंगा हो गोदावरी या अन्य कोई नदी, सभी पर काम करने की आवश्यकता है। मैं नर्मदा के अलावा धसान, बेतवा समेत बुंदेलखंड रीजन में बहने वाली छोटी बड़ी नदियों के लिए काम कर रहा हूं।
नर्मदा पहली नदी, जिसके जीवनदायिनी होने पर शोध हुआ
श्री दादा गुरु ने कहा कि मप्र, देश-दुनिया का पहला राज्य है। जहां से बहने वाली नर्मदा नदी में जीवनदायी तत्वों के होने के बारे में शोध हुआ है। मैं इस शोध का जीता-जागता सब्जेक्ट हूं। ये परिक्रमाएं केवल नर्मदा जल और उसके तटों की वायु को ग्रहण कर पूरी की।
मेरा मंच नर्मदा तट , वे भी सनातन का काम कर रहे
श्री दादा गुरु से पूछा गया कि देश में अन्य कथाकार, प्रवचन देने वाले संत भव्य मंच से अपनी बात रखते हैं, क्योंकि वह लोगों को ईश्वरवादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। चमत्कार दिखाते हैं। लेकिन आप लोगों को सीधे प्रकृति से जुड़कर ईश्वर पाने की बात करते हैं। क्या इसलिए आप के मंच उतने भव्य व ताम-झाम वाले नहीं होते। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि धरा,धेनु ( गाय), पेड़, पर्वत और नदियां सनातन का ही हिस्सा हैं। इसलिए मैं उनके बारे में बात करता हूं। क्या सनातन से गंगा-नर्मदा, विंध्याचल, गोवर्धन, कामदगिरी पर्वत को निकालकर बात की जा सकती है। अन्य लोग सनातन का दूसरे तरीके से काम कर रहे हैं। इसलिए उनका अपना मंच है और नर्मदा तट मेरा मंच है।
माटी, वृक्ष, नदी से मुझे शक्ति मिलती है, इसलिए कृषकाय नहीं
पूज्य श्री दादा गुरु से सवाल किया कि साधारणतः अन्न-जल त्याग कर साधना करने वाले संत- तपस्वी कृषकाय हो जाते हैं लेकिन आपका शरीर सदैव ऊर्जावान, चेहरा कांतिमय रहता है, इसकी क्या वजह है ? जवाब में श्री दादा गुरु ने कहा कि, मेरा व्रत धरा- माटी, पहाड़, वृक्ष व नदियों को मानने का है। और ये सभी शक्ति के स्रोत हैं। और इन्हीं शक्तियों पर केंद्रित मेरा जीवन है। इसलिए मैं बोलता हूं कि हम प्रकृति के जितने निकट जाएंगे, खुद उतना ज्यादा बेहतर पाएंगे। इधर पूर्व गृह मंत्री एवं खुरई से वरिष्ठ विधायक भूपेंद्रसिंह ने बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के टैक्सास राज्य की टेक यूनिवर्सिटी ने केंद्र सरकार से दादा गुरु पर शोध करने की अनुमति मांगी है। विवि यह जानना चाहता है कि केवल नर्मदा जल और फिर केवल वायु पर कैसे जीवित रहा जा सकता है।
नर्मदा पहली नदी, जिसके जीवनदायिनी होने पर शोध हुआ
श्री दादा गुरु ने कहा कि मप्र, देश-दुनिया का पहला राज्य है। जहां से बहने वाली नर्मदा नदी में जीवनदायी तत्वों के होने के बारे में शोध हुआ है। मैं इस शोध का जीता-जागता सब्जेक्ट हूं। ये परिक्रमाएं केवल नर्मदा जल और उसके तटों की वायु को ग्रहण कर पूरी की।
18/07/2025



