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गौर साहित्य प्रदर्शनी: पुस्तकों के कव्हर पेज पर दिखी क्रेडिट लेने की लूट-खसोट

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सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विवि के मानवशास्त्र विभाग के अध्यक्ष और डायरेक्टर ऑफ फेकल्टी अफेयर्स (डोफा) प्रो. अजीत जायसवाल, जो पहले ही प्लेजरिज्म (साहित्यिक चोरी) के आरोपों में घिरे रहे हैं, एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं। उन पर और तत्कालीन कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर प्रकाशित किताबों में प्रकाशन की स्थापित परंपराओं का उल्लंघन करते हुए स्वयं को ”साहित्यिक” और ‘शिक्षाविद् साबित करने के लिए पद का दुरुपयोग करते प्रतीत हो रहे हैं।
पद बड़ा या पांडित्य? कवर पर हास्यास्पद ”हथकंडा”
दरअसल, हाल ही में ‘गौर साहित्य प्रदर्शनी’ में रखी गईं 12 किताबों के कवर पेज को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इन किताबों में तत्कालीन कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता का नाम सबसे ऊपर ‘मुख्य संपादक’ के तौर पर और उनके ठीक नीचे प्रो. अजीत जायसवाल का नाम ”प्रबंध संपादक”  के तौर पर प्रिंट कराया गया है। सबसे हास्यास्पद बात यह है कि जिन शिक्षकों ने वास्तव में इन किताबों के लिए शोध किया और आलेख दिए, उनके नाम बतौर ‘संपादक’ सबसे नीचे छाप दिए गए। साहित्यिक जगत का कहना है कि यह भारतीय पुस्तक प्रकाशन परंपरा के बिलकुल विपरीत है। पुस्तकों में केवल लेखक और संपादक का उल्लेख होता है। पुस्तकों के मामले में ‘मुख्य संपादक’ और ‘प्रबंध संपादक’ जैसे पदनाम अनावश्यक हैं, क्योंकि ये पदनाम आमतौर पर अखबारों, साप्ताहिक, मासिक या त्रैमासिक पत्रिकाओं में उपयोग किए जाते हैं, जहाँ नियमित प्रकाशन, तकनीकी प्रबंधन और वित्तीय जिम्मेदारी के पैटर्न पर काम होता है। चूंकि ये 12 पुस्तकें न तो अखबार हैं और न ही पत्रिका, तो इनमें मुख्य संपादक और प्रबंध संपादक का पदनाम किस आधार पर तय किया गया? विवि के गलियारों में चर्चा गर्म है कि यह सब ”खुद का नाम चमकाने” और “क्रेडिट लेने की होड़” का परिणाम है, जहाँ कथित विद्वानों ने अपने उच्च पद और रसूख का उपयोग कर इस अजीबो-गरीब और हास्यास्पद हथकंडे को अपनाया।
लाइब्रेरी की लाखों किताबों में नहीं दिखता ”पद” का प्रदर्शन
विवि के कतिपय जिम्मेदारों की इस मनमानी और शर्मनाक आचरण का सबसे बड़ा विरोधाभास वहीं सामने आता है, जहां इन किताबों की प्रदर्शनी (विवि की सेंट्रल लाइब्रेरी) में लगी है। लेकिन यहां मौजूद लाखों किताबों में से किसी के भी कवर पर “मुख्य संपादक” या “प्रबंध संपादक” का उल्लेख नहीं है। खैर, मंगलवार को कला संकाय के कुछ शिक्षकों ने इन कवरों को देखकर व्यंग्यात्मक ढंग से कहा कि ‘जब कव्हर पर ही क्रेडिट लेने की इतनी लूट-खसोट मची है, तो उसके भीतर के पृष्ठों पर कितनी ईमानदारी से काम (विषय चयन, आलेख, नॉलेज, संदेश) हुआ होगा?
उनका कहना है कि दिल्ली के नामचीन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इन महंगी पुस्तकों (800 से 1200 रु.+) के कवर पेज पर हुई यह क्रेडिटबाजी, विवि के कुछ जिम्मेदारों की मनमानी का दस्तावेजी सुबूत है। जो विवि के शैक्षिक जगत में उच्च पदों पर बैठे लोगों के पांडित्य व उनकी ईमानदारी पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। सागरवाणी ने पुस्तकें व उनकी के्रडिट लाइन के बारे में चर्चा करने के लिए गौर ज्ञान श्रृंखला के प्रभारी प्रो. जायसवाल से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
25/11/2025

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