पहले खुद जेबकट बन पीएचडी की, अब जेबकटों की दुनिया पर लिख रहे किताब
सागर निवासी रिटा. डीआईजी(जेल)डॉ. गुप्ता बोले, अपराध जगत का दरवाजा है जेबकतरी

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सागर। छत्तीसगढ़ में बतौर जेल सुपरिटेंडेन्ट और फिर डीआईजी सेवाएं दे चुके डॉ. कृष्णकुमार गुप्ता, देश-दुनिया में अपने अनूठे टॉपिक जेबकतरी और उसके मैदानी रिसर्च वर्क के लिए जाने जाते हैं। रिटायरमेंट के बाद वह अपना अधिकांश समय सागर में ही गुजार रहे हैं। हालिया मुलाकात में उन्होंने बताया कि, मैं पिक पॉकिटिंग यानी जेब कतरी पर एक किताब लिख रहूं। जो मेरे अंग्रेजी में लिखे गए शोध ग्रंथ ”पिक पॉकेट्स दी मिस्टीरियस स्पिशीज” का हिंदी और व्यापक जानकारी वाला रूपांतरण होगा। इस किताब में जेबकतरों के संगठित कामकाज से लेकर देशभर में उनके कोड वर्ड्स समेत अन्य ऐसे कई तथ्यों का जिक्र रहेगा। जिनके बारे में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं है। बता दें कि डॉ. गुप्ता वर्ष 1980 के दशक में डॉ. हरीसिंह गौर विवि के अपराध शास्त्र विभाग से डॉक्टरेट हैं। उन्होंने स्वयं जेबकतरा बन इस अपराध को अंजाम देने वाले लोगों और उनकी कार्यप्रणाली पर पीएचडी की थी। करीब 7 साल के इस रिसर्च वर्क के बाद उन्हें 1991 में पीएचडी अवार्ड हुई थी।
यह किताब जेबकतरों की एक अलग दुनिया में ले जाएगी
डॉ. गुप्ता ने बताया कि यह किताब, मेरी पूर्व में प्रकाशित पुस्तक ”पिक पॉकेट्स दी मिस्टीरियस स्पिशीज” का संशोधित संस्करण होगी। जिसे पढ़ने के बाद आप जेबकटों की एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाएंगे। इसमें मैं बताऊंगा कि, जेबकट कैसे संगठित होकर काम करते हैं। उनके अपराध का तरीका क्या होता। वे आपस में संवाद कैसे करते हैं। वह कैसे यह जान लेते हैं कि अमुक व्यक्ति जेब में पैसे रखे है या बैग-सूटकेस में हैं। इस पुस्तक में पॉकेटमारों के उन कोर्डवर्ड का खुलासा किया जाएगा। जिसे जानने के बाद जागरुक व्यक्ति अपनी जेब कटवाने से बच सकते हैं। डॉ. गुप्ता ने बताया कि डकैतों पर भी एक पुस्तक ”डकैत:आधी हकीकत, आधा फसाना” लिख चुके हैं। जबकि वर्तमान में मादक द्रव्यों की दुनिया पर शोधकार्य कर रहे हैं।
सागर से लेकर तब की बंबई तक जाकर जेब काटीं
पीएचडी के इस अपने अनूठे टॉपिक को लेकर डॉ. गुप्ता ने बताया कि मैं 1980 के दशक की शुुरुआत में विवि के अपराध शास्त्र विभाग से एमए कर रहा था। तभी जानकारी मिली कि मेरे विभागाध्यक्ष डॉ.डीपी जठार की किसी ने जेब काट ली। चूंकि डॉ. जठार, अपराध शास्त्र के विद्वानों में शुमार होते थे। इसलिए इस जेब कटी की बहुत चर्चा हुई। मेरे मन में विचार आया कि, क्यों न इस अपराध और इसे अंजाम देने वालों की जानकारी हासिल की जाए। लाइब्रेरी में गया था तो मालूम चला कि इस विषय पर तो कभी काम नहीं हुआ। इसके बाद मैंने ठान लिया कि मैं, अब जेबकतरों पर पीएचडी करूंगा। ताकि दुनिया के सामने इस अपराध को बारीकी से सामने ला सकूं। चर्चा के दौरान डॉ. गुप्ता ने बताया कि भारतीय दंड संहिता में जेबकतरी के लिए कोई अलग से धारा नहीं है। शोध के दौरान उनका एक निचोड़ यह भी रहा कि जेब कतरी अपराध की दुनिया का दरवाजा सरीखा है। मुंबई अंडर वर्ल्ड में 80-90 के दशक में जितने भी चर्चित अपराधी हुए। उनका अतीत कहीं न कहीं जेब कतरी से जुड़ा रहा। इनमें करीम लाला, हाजी मस्तान, युसुफ पटेल, वरदराजन और दाऊद इब्राहिम का नाम आसानी से लिया जा सकता है।
6 महीने तक उस्ताद की चिरौरी की, तब कहीं शोध कार्य शुरु हुआ
डॉ. गुप्ता ने बताया कि, जेबकतरों पर शोध का मेरा टॉपिक तो मंजूर हो गया था। लेकिन अब आवश्यकता थी कि इसे समझा कैसे जाए। तब मेरी जानकारी में उस समय के एक कु-ख्यात जेबकट मनोहर उस्ताद का नाम आया।

मैं, उनके आगे-पीछे घूमने लगा। खुद को परिवार का बिगड़ैल लड़का बताकर अपने गिरोह में शामिल करने की बात रखी। लेकिन मनोहर उस्ताद तैयार नहीं हुआ। धीरे-धीरे मित्रता-परिचय बढ़ा तो वह मुझे अपने साथ ले जाने लगा। लेकिन वह अभी भी वे मुझे जेब कतरी सिखाने तैयार नहीं था।
हालांकि इसके लिए उसकी एक शर्त थी कि जिस दिन मुझे जेब काटते देख लोगे, उसी दिन तुम्हें शार्गिद बना लूंगा। एक दफा मैंने उसे जेब काटते देख लिया। इसके बाद वह मुझे काम सिखाने लगा। फिर मैं इस कुख्यात काम की बारीकियां समझने देशभर में घूमने लगा। चूंकि शोध कार्य के लिए मुझे जेबकतरी करने के साथ उनके ग्रुप में रहना भी पड़ता था। जो गैर-कानूनी था। इसके लिए मैंने अपने विभागाध्यक्ष से एक पत्र जारी कराया। जिसमें मेरे इस शोध कार्य का जिक्र था। मैं जिस शहर में जाता वहां के नजदीकी थाना क्षेत्र में यह पत्र सौंपता था। पुलिस की तरफ से मुझे पाबंद किया गया था कि जेबकतरी के बाद पर्स, नकदी वगैरह पुलिस थाने में जमा कर दूं और एक ही स्थान पर ज्यादा दिन तक अपना यह ”शोध कार्य” नहीं करूं।
रेलवे टीसी को मामा और पुलिस को मक्खी बोलते हैं
डॉ. गुप्ता ने बताया कि मेरी इस किताब में अलग-अलग टाइप से जेबकतरे जैसे केवल अंगुलियों से पर्स या नकदी उड़ाने वाले, ब्लेड के टुकड़े से जेब काटने वाले, पॉकेट मारने में असफल रहने पर उसे दूसरे जेबकट को बेचने वाले आदि का जिक्र रहेगा। इसके साथ उनके कोडवर्ड्स जैसे पुलिस को मक्खी बोलना, रेलवे टीसी को मामा, ट्रेन को चरखी, बस को चक्का बोलने या जिस व्यक्ति की जेब काटी जानी है, उसके बारे में जेबकट कैसे संवाद करते हैं, इस सब का भी जिक्र रहेगा।
16/08/2025



