सुभाग्योदय जमीन मामले में हाईकोर्ट ने खत्री परिवार से कहा, भूमि स्वामित्व के दस्तावेज पेश करें, फाइनल बहस 14 को
1925 में कृषि हेतु सागर के मुस्लिम परिवार को लीज पर दी गई 30 एकड़ जमीन के राजस्व दस्तावेजो मे हेराफेरी कर विक्रय किए जाने के मामले की हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच द्वारा की गई अहम सुनवाई

जबलपुर। सुभाग्योदय जमीन मामले में मप्र हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुरेशकुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेककुमार जैन ने सुनवाई की। उन्होंने स्वयं को भूमि स्वामी बताने वाले सागर के खत्री परिवार को उक्त 30 एकड़ जमीन के स्वामित्व संबंधी दस्तावेज पेश करने के लिए कहा है। यही निर्देश कलेक्टर संदीप जीआर को भी दिए गए हैं। इस मामले में अब अंतिम बहस होगी। जिसके लिए 14 मई नियत की गई है। सुनवाई के दौरान इस मामले के इंटरवीनर एड. जगदेवसिंह ठाकुर की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वरसिंह ठाकुर, शिवांशु कोल, श्याम यादव व शासन की ओर से एडिशनल एडव्होकेट जनरल जान्हवी पंडित, विक्रेता खत्री परिवार की ओर से सीनियर एडव्होकेट संजय अग्रवाल और खरीदार फर्म सुभाग्योदय डेवलपर्स की तरफ से सीनियर एडव्होकेट नमन नागरथ मौजूद रहे।
400 करोड़ रुपए की सरकारी जमीन महज 33 करोड़ रुपए में बेची थी
एड. रामेश्वरसिंह ने बताया कि भाग्योदय अस्पताल के ठीक सामने 30 एकड़ बेशकीमती सरकारी जमीन है। जिसे शहर के खत्री परिवार को वर्ष 1925 में कृषि के लिए तत्कालीन जिला प्रशासन ने लीज पर दिया था। लेकिन करीब 40 साल बाद के दस्तावेजों में खत्री परिवार ने इस भूमि पर निजी स्वामित्व बताना शुरु कर दिया। इसी आधार पर इस परिवार ने इस भूमि में से 27.82 एकड़ सुभाग्योदय डेवलपर्स नाम की रियल एस्टेट फर्म को बेच दी गई। इस सौदे के पहले राजस्व मंडल ग्वालियर ने बगैर किसी कानूनी अधिकार के खत्री परिवार को जून 2016 में विक्रय की अवैधानिक अनुमति जारी कर दी थी। बताया जाता है कि इस प्रकरण के उजागर होने के बाद राजस्व मंडल के सदस्य एमके सिंह को अपना पद छोड़ना पड़ा था। यह मामला तत्कालीन विधानसभा सत्र में भी जोर-शोर से गूंजा था। जिसके बाद तत्कालीन कलेक्टर ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर राजस्व मंडल के उक्त आदेश को चुनौती दी। बाद में हाईकोर्ट के अलग-अलग आदेशों को ठाकुर लॉ एसोसिएट की तरफ से चुनौती दी गई। कोर्ट को बताया गया कि उक्त जमीन की 2017 की कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार 33 करोड़ रुपए कीमत थी। जबकि इस जमीन की बाजारू कीमत 400 करोड़ है। 
अगर भूमिस्वामी थे तो फिर शासन से बेचने की अनुमति क्यों ली?
हाईकोर्ट को एड. रामेश्वर सिंह ठाकुर, श्याम यादव तथा शिवांशु कोल ने बताया कि विके्रता पक्ष यानी खत्री परिवार को उक्त विवादित जमीन के कभी भी स्वामित्व संबंधी राइट्स नहीं मिले। एक ओर विक्रेता पक्ष बताता है कि उन्हें 1963 में इस भूमि का स्वामित्व मिल गया था। अगर ऐसा था तो फिर इन्होंने जमीन बेचने की अनुमति शासन से क्यों ली। सबसे बड़ा पाइंट ये है कि विक्रेता पक्ष राजस्व मंडल के 6जून 2016 के जिस आदेश क्रमांक में भूमि विक्रय करने की अनुमति देना बता रहा है। वह राजस्व मंडल से कभी पारित हुआ ही नहीं था। न ही मंडल के प्राधिकृत अधिकारियों को मप्र भू-राजस्व संहिता 1959 में इस तरह की अनुमति देने के अधिकार दिए गए हैं।
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विधि में भी लीज पर दी गई भूमियों का स्वामित्व संबंधितों को दिए जाने का भी कोई प्रावधान नहीं है। इसी बीच शासन की ओर एडिशनल एडव्होकेट जनरल श्रीमती पंडित ने कोर्ट के समक्ष वर्ष 1963 का असल दायरा पंजी पेश किया।
जिसका हाईकोर्ट की इस डिविजनल बेंच ने गहनता से अध्ययन किया और पाया कि उक्त पंजी में भूमि स्वामी वाले कॉलम में खत्री परिवार का नाम ही दर्ज नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर खत्री परिवार इस भूमि का स्वामी है तो इसे सिद्ध करने की जवाबदेही भी उन्हीं की है। अगर उन्हें भूमि स्वामी का दर्जा मिलने संबंधी कोई राजस्व आदेश पारित हुआ था तो उसे अगली सुनवाई दिनांक के पूर्व पेश करें। कलेक्टर सागर से भी कहा गया है कि अगर कोई आदेश पारित हुआ तो वह भी पेश करें। 
08/05/2025



