विवि: प्रभारी कुलपति और डोफा पर एमबीए के प्रोफेसर ने लगाए पद के दुरुपयोग के आरोप

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सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि के प्रभारी कुलपति प्रो.यशवंतसिंह ठाकुर और डोफा प्रो. अजीत जायसवाल निरंतर अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस आशय का आरोप कॉमर्स डीन एवं एमबीए विभाग के प्रो. श्री भागवत ने लगाए हैं। इस संबंध में उन्होंने एक पत्र पदेन विजिटर एवं महमहिम राष्ट्रपति भारत को लिखा है। जिसकी प्रतिलिपियां उन्होंने प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री, कमिश्नर सीवीसी, राज्य के मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक समेत जिला व संभाग में पदस्थ पुलिस-प्रशासन के अहम अधिकारियों को भी मेल की है। प्रो. भागवत का कहना है कि प्रभारी कुलपति होने के नाते प्रो. ठाकुर और डोफा प्रो. जायसवाल के पास विवि के शिक्षकों के व्यक्गित मामलों से जुड़ी फाइलें उनके अधीन हैं। यह दोनों प्राधिकारी जिन शिक्षकों को पसंद नहीं करते हैं। उनके बारे में इन फाइलों से जानकारी निकालकर झूठी व निराधार शिकायतें करा रहे हैं। बार-बार नोटिस जारी कर परेशान कर रहे हैं। यहां बता दें कि हाल ही में विवि के रजिस्ट्रार डॉ. सत्यप्रकाश उपाध्याय ने तीन दिन पहले ही प्रो. भागवत को उनकी दूसरी शादी के संबंध में स्पष्टीकरण देेने संबंधी एक नोटिस दिया है। माना जा रहा है कि प्रो. भागवत ने इसी तारतम्य में यह शिकायती पत्र महामहिम राष्ट्रपति समेत अन्य को लिखा है।
प्रो. भागवत का आरोप है कि इन दोनों व्यक्तियों ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक वातावरण एवं प्रशासन को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है।। प्रो. ठाकुर अपनी पदीय दायित्वों को निभाने के बजाए वीसी ऑफिस में इस तरह के बेमतलब कामों में समय खर्च कर रहे हैं।दोनों मिलकर विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर रहे हैं। आगे प्रो. भागवत ने प्रो. ठाकुर पर भ्रष्टाचार के आरोप में संलिप्त होने की बात भी कही है। उनका कहना है कि इन्हीं के साथी प्रो. जायसवाल न केवल भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, बल्कि के उनके खिलाफ साहित्यिक चोरी के गंभीर आरोप लंबित हैं। जिनकी जांच के लिए विश्वविद्यालय द्वारा गठित एक समिति ने स्पष्ट रूप से साहित्यिक चोरी पाई और अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया। लेकिन तत्कालीन कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने मामले को दबा दिया और ईसी में यह प्रस्ताव पारित करा दिया कि डॉ. जायसवाल की प्रोफेसर पद पर पदोन्नति में चोरी के आरोप वाले शोध पत्रों को शामिल नहीं किया गया।
प्रो. भागवत का कहना है कि प्रो. जायसवाल के खिलाफ कभी भी यह शिकायत नहीं की गई कि उन्हें चोरी के शोध-पत्रों के आधार पर प्रमोशन दिया गया। शिकायत का मूल बिंदु यह था कि उन्होंने साहित्यिक चोरी की है, और समिति ने इसे सही भी पाया। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन इस सत्य को छिपा रहा है तथा प्रो. अजीत जायसवाल के विरुद्ध कार्यवाही करने से बच रहा है। ये दोनों व्यक्ति इस प्रकार षड्यंत्र रच रहे हैं कि संबंधित शिक्षकों के परिवारों को कष्ट पहुँचा रहे हैं और लोगों की नौकरियाँ छीनने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों का उच्च प्रशासनिक पदों पर बने रहना विश्वविद्यालय की छवि को गंभीर रूप से धूमिल कर रहा है तथा समाज में अराजकता का संदेश प्रसारित कर रहा है। दोनों ही बदले की भावना से कार्य कर रहे हैं तथा अपने व्यक्तिगत द्वेष निकालने हेतु अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं। प्रो. भागवत ने महामहिम राष्ट्रपति समेत अन्य से मांग की है कि प्रो. ठाकुर व प्रो. जायसवाल को तत्काल उनके पदों से हटाकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
29/09/2025



