
सागर। यह मामला तकलीफ की इंतहा से परे जा चुके एक बीमार युवक और मानवता के सर्वोच्च शिखर की तरफ जाते कुछ युवाओं के बीच का है। जिसमें फिलहाल इंसानियत आगे निकलती दिख रही है। घटनाक्रम शहर के संत रविदास वार्ड के एक अतिगरीब युवक पंकज अहिरवार (23) का है। जो आर्थराइटिस (गठियावात) के कारण चलना-फिरना तो दूर करवट लेने तक को मोहताज था। तीन साल से बिस्तर पर पड़े-पड़े उसके शरीर के पिछले हिस्से में जख्म हो गए थे।
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सही तरीके से साफ-सफाई नहीं होने से इन जख्मों में कीड़े पड़ चुके थे। करीब 10 दिन पहले इस युवक ने किसी माध्यम से शहर की पशु सेवा समिति से जुड़े समाजसेवी युवक पारंग शुक्ला और वासु चौबे को कॉल किया और अपनी वेदना बताई। पारंग और वासु तुरंत सक्रिय हुए और जद्दोजहद के बाद उसे शनिवार को बुंदेलखंड कॉलेज में भर्ती कराकर ही दम लिया। हालांकि इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक एप्रोच लगाना पड़ी।
24 घंटे के भीतर पटवारी-डॉक्टर घर पहुंचे, प्राइवेट एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचाया
पारंग ने बताया कि पंकज की तकलीफ के बारे में मय फोटोग्राफ के हम लोगों ने एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को उनके सागर दौरे के वक्त बता दिया था। उन्होंने इसे गंभीरता से लिया और देरशाम को ही जिला प्रशासन के प्रतिनिधियों ने हम लोगों से संपर्क किया। पारंग के अनुसार शनिवार दोपहर करीब 12 बजे जिला अस्पताल के दो डॉक्टर, दो वार्ड बाय व पटवारी शिवजीत कंग इस युवक के घर पहुंच गए। डॉक्टर्स ने उसे शरीर सुन्न करने का इंजेक्शन लगा दिया था।
इसके बाद करीब 125 किलोग्राम वजनी इस युवक पंकज को जैसे-तैसे घर से निकाला। अस्पताल से कोई एम्बुलेंस वगैरह नहीं आई थी, इसलिए हम लोगों ने भाग्योदय अस्पताल से गाड़ी बुलवाई और उसे बीएमसी ले गए।
बदबू इतनी थी कि अस्पताल स्टाफ को उल्टियां हो गईं
पारंग के अनुसार, पंकज के जख्म इस कदर सड़ चुके थे कि उनसे उठने वाली बदबू करीब 30 मीटर दूर तक आ रही थी। हालात ऐसे समझे जा सकते हैं कि जब उसे बीएमसी के इमरजेंसी वार्ड में लाया गया तो वहां मौजूद नर्सिंग समेत अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को उल्टियां हो गईं। फिर उन्हीं लोगों ने जैसे-तैसे उसकी साफ-सफाई की और उपचार शुरु किया।
पारंग ने बताया कि इस मरीज के उपचार के लिए पूर्व में श्री भाग्योदय तीर्थ अस्पताल के डॉ. प्रशील गुप्ता समेत अन्य ने भी सहमति दी थी। लेकिन मेडिकोलीगल एक्ट की वजह से अस्पताल प्रबंधन व हम लोग उसे वहां शिफ्ट नहीं कर पाए। दूसरी ओर शहर के कुछ जागरुक नागरिकों ने वार्ड स्तर के जनप्रतिनिधियों से लेकर स्वाथ्यकर्मियों की भूमिका पर भी सवाल खड़ा किया है कि उन्होंने इस युवक के लिए क्यों ठोस प्रयास नहीं किए। सीएम डॉ. यादव के दखल के बाद ऐसा क्या हो गया कि वही जनप्रतिनिधि, प्रशासन और स्वास्थ्य अमला उसके उपचार के लिए तैयार हो गए ?
एक कमरे के घर में कर रहा था मौत का इंतजार
जिस स्थान से पंकज को रेस्क्यू किया गया है। वह मात्र एक कमरे का घर था। पंकज की मां बीड़ी बनाती है। बुजुर्ग पिता मंडी में कुछ घंटे काम करते हैं। जिससे इन तीनों प्राणियों का जीवन-यापन होता है। माता-पिता का कहना है कि पंकज को 8 साल की उम्र में गठियावात की बीमारी हुई। जैसे-तैसे उसका उपचार कराने दिल्ली के एम्स अस्पताल ले गए। लेकिन वहां कोई खास इलाज नहीं किया। एक गोली देकर वापस कर दिया गया।
हालत बिगड़ने पर साल 2021 में मकरोनिया स्थित तत्कालीन सागरश्री अस्पताल में उसका एक ऑपरेशन कराया गया। जिसमें परिवार की कुल जमा पूंजी जो करीब 2- 2.50 लाख रु. थी, वह खर्च हो गई। ऑपरेशन असफल रहा। इसके बाद से पंकज का वजन तेजी से बढ़ने लगा। हालात इस कदर बिगड़ते गए कि पहले उसके हाथ-पैर हिलना-डुलना बंद हुए। इसके बाद वह करवट लेने तक को मोहताज हो गया। पीठ, नितंब, मलद्वार के आसपास के जख्मों सड़न पैदा होने लगी। कीड़े पनपने लगे। भिनभिनाती मक्खियों के बीच करीब चार साल से नारकीय यातनाएं भोग रहे इस युवक की तकलीफ देख कुछ दिन पहले ही इन अभागे मां-बाप ने कलेक्टर संदीप जीआर को एक आवेदन दिया था। जिसमें उन्होंने पंकज के लिए इच्छा मृत्यु की मांग की थी। इधर इस मामले में वरिष्ठ विधायक जैन का कहना है कि मुझे युवक के बारे में जानकारी मिली है। मैंने कलेक्टर व बीएमसी के डीन को निर्देशित किया है कि वह उसके उपचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ें। मैं भी इस युवक का हाल-चाल जानने बीएमसी जा रहा हूं।
01/03/2025



