चौबेजी की पॉकेट उगलती है केवल नए-करारे नोट …… नए नोटों के अनूठे प्रेमी की कहानी

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सागर। पाइंट ये है कि जेब में बस नोट हों। वे नए-पुराने हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन चौबे जी को बहुत फरक पड़ता है। आलम ये है कि उनकी जेब में नए करारे-करारे नोट नहीं हों तो वे मार्केट की तरफ मुंह तक नहीं करते। चलिए पूरी बात बता दें। शहर में लिंक रोड पर हरि चौबे रहते हैं। वे डॉ.हरीसिंह केंद्रीय विवि से रिटायर सेक्शन ऑफिसर हैं। तीनबत्ती पर मुलाकात हुई तो उनके इस अनूठे अंदाज के बारे में चर्चा निकली।
श्री चौबे ने बताया कि मुझे नए नोट रखने और खर्च करने का जुनून सा है। ये आदत कब लगी,याद नहीं है। फिर भी 30-35 साल तो हो ही गए। उस समय नोटों की बड़ी किल्लत हुआ करती थी। शायद छपाई कम होती थी। तब लोग एक- दूसरे पर भरोसा कर टेप/ क्युकफिक्स से जुड़े नोट भी चलाते रहते थे। इसी बीच मेरे एक बैंककर्मी
मित्र ने मुझे नए नोट में तन्ख्वाह देना शुरु कर दिया। तब से ये चस्का लग गया। जब मैं फटे-पुराने और मैले-कुचेले नोटो के बीच मैं नया नोट देता था तो दुकानदार के चेहरे पर एक अलग चमक आ जाती थी। कुछ तो ऐसे भी थे जो नोटों को संग्रहण के नाम पर बचत में रखने लगे थे। यही कुछ अनुभव थे।
जिनसे मेरी नए नोट रखने की आदत बनती चली गई। श्री चौबे आगे कहते हैं कि मेरे इस शौक या आदत की जानकारी जब आसपास के लोगों को लगी तो वे मेरे पास शादी-विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर नेग- दस्तूर के लिए नए नोट लेने आने लगे।
इससे मेरा सामाजिक दायरा भी बढ़ने लगा। कुछ बच्चों को उनकी सफलता पर नए नोट दिए थे। वे आज भी मिलते हैं तो कहते हैं। अंकल जी आपका नया नोट आज भी हमारे पास है। ये सुनकर एक अलग सुकून मिलता है। हरि चौबे के अनुसार, मुझे नए नोट के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता। बैंक वाले भी मेरे इस जुनून को समझते हैं।
इसलिए कभी- कभी वे कॉल कर नए नोट के बंडल थमा देते हैं। श्री चौबे ने एक दिलचस्प बात ये भी बताई कि, मुझे बाजार से वापसी में जो भी नए पुराने नोट मिलते हैं। मैं उन्हें यथा- संभव वहीं खर्च कर देता हूं। ताकि जब मुझे पेमेंट करना पड़े तो जेब से केवल नया नोट निकले।
28/10/2024



