अपराध और अपराधी
कोतवाली से काठमांडू तक वांटेड रहा अपराधी रज्जू जब एक प्रहरी के खिलाए समोसे के एहसान तले दब गया

सागर । 9425172417
बुंदेलखंड के दुर्दान्त अपराधियों की सीरीज में आज एक ऐसे आदमी की कहानी है। जिसके नाम हत्या के कई साबित और गैर-साबित मामले रहे। यह शख्स बुंदेलखंड के उन गिने-चुने अपराधियों में से एक है। जो सुप्रीम कोर्ट से मिली सजा के बाद देश के महामहिम राष्ट्रपति से मिली माफी के बाद फांसी के फंदे को चूमकर वापस आ गए। आज के इस किरदार का नाम राजनारायण दुबे उर्फ रज्जू (बदला हुआ नाम) है। रज्जू एक ऐसा अपराधी रहा दो दशक से ज्यादा समय तक सागर के थाना कोतवाली से लेकर नेपाल के काठमांडू तक वांटेड रहा।

उसने कई ज्ञात-अज्ञात हत्याएं की। बड़ी बात ये कि ये शख्स अभी जिंदा है। सामान्य से घटनाक्रम के बाद हत्या करने के लिए कु-ख्यात इस शख्स के चरित्र के कई रंग हैं। जिनमें से एक नमक के प्रति वफादारी का था। जो एक जेल प्रहरी द्वारा खिलाए गए समोसे से जुड़ा है। आगे की कहानी में इसका संपूर्ण और दिलचस्प ब्योरा आप को पढ़ने मिलेगा।
साइकिल से चलता था, पुलिसकर्मी को तंदूर में झोंक दिया था
राजनारायण दुबे उर्फ रज्जू संभवत: वह थाना कोतवाली क्षेत्र का ही मूल निवासी था। भरे-पूरे परिवार में जन्में इस शख्स ने पहली हत्या कब की। इसका ब्योरा किसी के पास नहीं है। लेकिन उसकी एक हत्या ने उसे पुलिस के निशाने पर ला दिया। वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र भट्ट के अनुसार यह घटनाक्रम १९८० के दशक के शुरुआती सालों का है। तब तक रज्जू छोटी-मोटी चाकूबाजी और मारपीट कर पुलिस के बहीखातों में अपना नाम दर्ज करा चुका था। वह साइकिल से चलता था।
राजनारायण दुबे उर्फ रज्जू संभवत: वह थाना कोतवाली क्षेत्र का ही मूल निवासी था। भरे-पूरे परिवार में जन्में इस शख्स ने पहली हत्या कब की। इसका ब्योरा किसी के पास नहीं है। लेकिन उसकी एक हत्या ने उसे पुलिस के निशाने पर ला दिया। वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र भट्ट के अनुसार यह घटनाक्रम १९८० के दशक के शुरुआती सालों का है। तब तक रज्जू छोटी-मोटी चाकूबाजी और मारपीट कर पुलिस के बहीखातों में अपना नाम दर्ज करा चुका था। वह साइकिल से चलता था।

बड़े बाजार की गलियों-कुलियों में वह कब अपनी साइकिल से ओझल हो जाता था, यह पुलिस वाले भी नहीं समझ पाते थे। मय साइकिल के अपराध करने का तरीका उसे एक अजीब ही शख्सियत प्रदान करता था। इधर बड़ा बाजार में एक मिष्ठान्न भंडार हुआ करता था। जहां आसपास के लोग चाय-नाश्ता के लिए जुटते थे। ऐसे ही किसी दिन की बात है।रज्जू इस मिष्ठान्न भंडार पर नाश्ता करने पहुंचा। तभी वहां साइकिल से कोतवाली पुलिस थाने का एक सिपाही पहुंचा। उसने देखा कि लंबे समय से वांटेड रज्जू यहां बड़े आराम से जलेबियों का लुत्फ ले रहा है। उसने उसे गाली देते हुए ललकारा और सीधे कॉलर पकड़ ली, बोला चल स्साले थाने। तेरा तो वारंट कटा है। यह सुन रज्जू तत्काल तो कुछ नहीं बोला। उसने पहले अपनी जलेबी खत्म की। इसके बाद उसने इस सिपाही को कमर से कुछ यूं पकड़ा और एक ही दांव में उसे जलती भट्टी में झोंक दिया। जिसने भी ये घटनाक्रम देखा। वे अवाक रह गए। पुलिस ने थोड़ी सी जहमत के बाद रज्जू को पकड़ लिया। कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी।
जेल में भी हत्या की और जेलर को भी फंसवा दिया
रज्जू को अविभाजित मप्र-छग की एक जेल में भेजा गया। बताते हैं कि वह साधु-बाबानुमा वेश में जेल के मैनगेट पर पहुंंचा तो उसे वहां के जेलर ने बहरूपिया बोलते हुए गालियां दे दी। रज्जू गालियों से बहुत चिढ़ता था। पुलिसकर्मी की हत्या भी उसने इसी कारण से की थी। खैर…. रज्जू ने जेलर को मुंह पर ही कहा कि मेरी बेड़िया खोल दे। फिर बताता हूं कि मैं कौन हूं और क्या कर सकता हूं। जेलर ने तवज्जो नहीं दी लेकिन उसके तेवर देख उसे गुनाहखाना (खतरनाक कैदियों को रखने की स्पेशल सेल) में भेज दिया।
जेल में भी हत्या की और जेलर को भी फंसवा दिया
रज्जू को अविभाजित मप्र-छग की एक जेल में भेजा गया। बताते हैं कि वह साधु-बाबानुमा वेश में जेल के मैनगेट पर पहुंंचा तो उसे वहां के जेलर ने बहरूपिया बोलते हुए गालियां दे दी। रज्जू गालियों से बहुत चिढ़ता था। पुलिसकर्मी की हत्या भी उसने इसी कारण से की थी। खैर…. रज्जू ने जेलर को मुंह पर ही कहा कि मेरी बेड़िया खोल दे। फिर बताता हूं कि मैं कौन हूं और क्या कर सकता हूं। जेलर ने तवज्जो नहीं दी लेकिन उसके तेवर देख उसे गुनाहखाना (खतरनाक कैदियों को रखने की स्पेशल सेल) में भेज दिया।

बताते हैं कि इसी दौरान जेल में एक दुर्दान्त डाकू आया। जिससे रज्जू का विवाद हो गया। उसने इस डाकू को खत्म करने की ठान ली। इस बीच जेल के एक प्रहरी को कहीं से बिगड़ा हुआ बटनदार छुरा मिला। जिसे सुधारने के लिए उसने जेल में बंद एक कैदी को दे दिया। इस कैदी से रज्जू ने यह छुरा छीन लिया। बाद में उसने इसी छुरे से जेल में ही डाकू की हत्या कर दी। कहानीं यहीं खत्म नहीं हुई थी। जेल में हत्या हुई थी इसलिए पुलिस छानबीन के लिए पहुंची। पुलिस ने पूछा कि छुरा कहां से आया। तब रज्जू ने बड़ी चालाकी से जवाब दिया कि जेलर ने मुझे डाकू को मारने की सुपारी थी। उसने ही मुझे छुरा दिया था और मुझे उससे सुपारी की बकाया रकम भी चाहिए है। पुलिस ने औपचारिक जांच के बाद जेलर को भी इस हत्याकांड में आरोपी बना दिया। अब जेलर भी रज्जू के साथ जेल में गिट्टिया फोड़ रहा था। दरी बुन रहा था।
जेल में हत्या के बाद फांसी मिली, मां की गुहार पर राष्ट्रपति ने माफ की
जेल के इस हत्याकांड के बाद सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रज्जू को फांसी की सजा सुना दी। समय गुजरने लगा। पुलिस और कोर्ट उसकी सजा पर देश के महामहिम राष्ट्रपति की मुहर का इंतजार करने लगे। कई साल बीत गए। इस बीच रज्जू की मां ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर दी। किस्मत तेज रही रज्जू की फांसी की सजा माफ हो गई। उसे उम्र कैद में बदल दिया गया। इसके बाद मामला एक बार फिर कोर्ट में पुर्नविचार के लिए पहुंचा और रज्जू जेल से बाहर आ गया। जेल से बाहर आने के बाद रज्जू सुधरा नहीं था। वह अभी भी मामूली सी बात पर या गाली-गलौज से नाराज होकर सामने वाले की हत्या पर आमादा हो जाता था। करीब ढाई-तीन दशक पहले ही उसने अपनी इस आदत के कारण धर्मश्री क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मंदिर में एक साधु को मौत के घाट उतार दिया था। दरअसल रज्जू बीड़ी, शराब के अलावा गांजे का भी नशा करता था। अपनी इसी तलब के चलते उसने मंदिर में मौजूद एक साधु से गांजा मांगा। जो उसने गालियां देते हुए देने से मना कर दिया। फिर क्या था। रज्जू का पारा चढ़ गया और उसने कमर में फंसा चाकू निकाला और ताबड़-तोड़ इस गंजेड़ी साधु पर वार कर दिए। हालांकि इस दौरान मंदिर में मौजूद एक, दूसरे पुजारी ने उसे हत्या करते देख लिया।रज्जू एक बार फिर पुलिस की गिरफ्त में आया और इस दफा वह पूरी उम्रकैद काटकर ही बाहर आया।
समोसा के एहसान में दबे रज्जू ने जेल ब्रेक का प्लान कैंसिल कर दिया
अपराधी रज्जू को करीब से जानने वालों के अनुसार वह अधिकांश हत्याएं क्षणिक आवेश में आकर करता था। जिसके चलते कोई गवाह या घटनाक्रम के अगले-पिछले सूत्र नहीं जुड़ पाते थे। इसी का फायदा उसे सजा से बच निकलने में मिलता था। हालांकि कानून के जानकार यह बात आसानी से हजम नहीं करेंगे। खैर….. बात-बात पर हत्या कर देने वाले इस शख्स का कहना था कि, मैं इतना कुख्यात अपराधी था कि मुझे किसी भी जेल में ज्यादा दिन नहीं रखा जाता था। किसी न किसी कारण से मुझे एक जेल से दूसरे जेल ट्रांसफर कर दिया जाता। जब जेल प्रशासन ट्रांसफर नहीं करता तो मैं कभी जेलर से भिड़ जाता तो कभी प्रहरी या बंदी को कूट देता। मैं ऐसा इसलिए भी करता था ताकि जेल के बाहर की हवा खा सकूं। कुछ नहीं तो एक जेल से दूसरे जेल ट्रांसफर होते वक्त सागर या उसके आसपास से गुजर सकूं। इस बीच कोई जान पहचान का आदमी बस या ट्रेन में मिल जाए तो उससे बात कर सकूं।
जेल में हत्या के बाद फांसी मिली, मां की गुहार पर राष्ट्रपति ने माफ की
जेल के इस हत्याकांड के बाद सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रज्जू को फांसी की सजा सुना दी। समय गुजरने लगा। पुलिस और कोर्ट उसकी सजा पर देश के महामहिम राष्ट्रपति की मुहर का इंतजार करने लगे। कई साल बीत गए। इस बीच रज्जू की मां ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल कर दी। किस्मत तेज रही रज्जू की फांसी की सजा माफ हो गई। उसे उम्र कैद में बदल दिया गया। इसके बाद मामला एक बार फिर कोर्ट में पुर्नविचार के लिए पहुंचा और रज्जू जेल से बाहर आ गया। जेल से बाहर आने के बाद रज्जू सुधरा नहीं था। वह अभी भी मामूली सी बात पर या गाली-गलौज से नाराज होकर सामने वाले की हत्या पर आमादा हो जाता था। करीब ढाई-तीन दशक पहले ही उसने अपनी इस आदत के कारण धर्मश्री क्षेत्र के एक प्रसिद्ध मंदिर में एक साधु को मौत के घाट उतार दिया था। दरअसल रज्जू बीड़ी, शराब के अलावा गांजे का भी नशा करता था। अपनी इसी तलब के चलते उसने मंदिर में मौजूद एक साधु से गांजा मांगा। जो उसने गालियां देते हुए देने से मना कर दिया। फिर क्या था। रज्जू का पारा चढ़ गया और उसने कमर में फंसा चाकू निकाला और ताबड़-तोड़ इस गंजेड़ी साधु पर वार कर दिए। हालांकि इस दौरान मंदिर में मौजूद एक, दूसरे पुजारी ने उसे हत्या करते देख लिया।रज्जू एक बार फिर पुलिस की गिरफ्त में आया और इस दफा वह पूरी उम्रकैद काटकर ही बाहर आया।
समोसा के एहसान में दबे रज्जू ने जेल ब्रेक का प्लान कैंसिल कर दिया
अपराधी रज्जू को करीब से जानने वालों के अनुसार वह अधिकांश हत्याएं क्षणिक आवेश में आकर करता था। जिसके चलते कोई गवाह या घटनाक्रम के अगले-पिछले सूत्र नहीं जुड़ पाते थे। इसी का फायदा उसे सजा से बच निकलने में मिलता था। हालांकि कानून के जानकार यह बात आसानी से हजम नहीं करेंगे। खैर….. बात-बात पर हत्या कर देने वाले इस शख्स का कहना था कि, मैं इतना कुख्यात अपराधी था कि मुझे किसी भी जेल में ज्यादा दिन नहीं रखा जाता था। किसी न किसी कारण से मुझे एक जेल से दूसरे जेल ट्रांसफर कर दिया जाता। जब जेल प्रशासन ट्रांसफर नहीं करता तो मैं कभी जेलर से भिड़ जाता तो कभी प्रहरी या बंदी को कूट देता। मैं ऐसा इसलिए भी करता था ताकि जेल के बाहर की हवा खा सकूं। कुछ नहीं तो एक जेल से दूसरे जेल ट्रांसफर होते वक्त सागर या उसके आसपास से गुजर सकूं। इस बीच कोई जान पहचान का आदमी बस या ट्रेन में मिल जाए तो उससे बात कर सकूं।
ऐसे ही एक ट्रांसफर पर मैं तत्कालीन अविभाजित मप्र की एक जेल में पहुंचा।

वहां पहुंचकर मैंने व कुछ कैदियों ने जेल से भागने का प्लान बनाया। तयशुदा दिन को सारी तैयारियां हो गईं। उसी दिन हम सभी बंदियों का मन जेल में समोसा मंगवाकर खाने का हुआ। जेब मैं पैसे थे सो एक प्रहरी को दे दिए और कहा कि 8- 10 समोसा ले आओ। प्रहरी चला गया लेकिन लौटा नहीं। उसकी जगह अब दूसरा प्रहरी ड्यूटी पर आ गया था। उससे पूछा कि पहले वाला प्रहरी कहां है, हम लोगों को भूख लग रही है और वह समोसा लाने के बजाए पैसे ही लेकर चला गया। प्रहरी बोल शायद मेरे से पहला वाल प्रहरी घर निकल गया । रज्जू और उसके साथी मन- मसोस कर बैरकों तरफ लौट आए । लेकिन ये क्या ….कुछ देर बाद देखा कि नया प्रहरी हाथ में समोसे लिए खड़ा है। पूछा तो बोला कि आप लोग भूखे थे, मैंने सोचा मैं ही समोसे खिला दूं। रज्जू, प्रहरी के इस व्यवहार से खासा प्रभावित हुआ। इधर रात गहराते ही रज्जू के साथी उस पर जेल से भागने के लिए दबाव बनाने लगे। लेकिन वह टालता रहा। सुबह हुई तो साथियों ने पूछा कि ये क्या महाराज ? कल इतना अच्छा मौका गंवा दिया। तब जवाब में रज्जू ने कहा कि भाग तो हम कभी भी सकते हैं लेकिन कल भागते तो इसकी जिम्मेदारी उस बेचारे प्रहरी पर आती। उसकी नौकरी चली जाती। मैंने व तुम सब ने समोसे के रूप में उसका नमक खाया था। मुझसे नमक हरामी नहीं हुई, इसलिए भागने का प्लान कैंसिल कर दिया।



