अपराध और अपराधी

और इस कहानी के “दी एंड” में थानेदार के हत्यारे मुबारिक को पुलिस ने मरवा डाला !

बुंदेलखंड के दुर्दान्त अपराधियों की सीरीज के पिछले अंक में सागर कोतवाली थाने में पदस्थ एक थानेदार की रहस्यमय हत्या और फिर अपराधी मुबारिक अली की गिरफ्तारी की कहानी थी। जिन पाठकों ने यह कहानी नहीं पढ़ी है वे इस लिंक   http://sagarvani.com/article.php?type=article&name=RETRO_CRIME_AGAINST_POLICE_&id=144 पर घूम आएं। उन्हें ताजा अंक से सार-तार जोड़ने में सहुलियत होगी। आज की कहानी मुबारिक अली के दी एंड की कहानी है। जो मायानगरी बाम्बे (वर्तमान मुंबई) में पुलिस द्वारा तत्कालीनकु-ख्यात गैंगस्टर्स के सफाए में अपनाए गए पैर्टन से कुछ -कुछ मिलती-जुलती है।  

थानेदार की हत्या के मामले में मुबारिक अली और उसके छर्रों को करीब डेढ़ साल बाद जमानत मिल गई। ये लोग एक के बाद एक, वर्ष 1985 के आखिर में जेल से बाहर आ गए। इधर मुबारिक का रुतबा सागर शहर-जिला समेत दमोह, छतरपुर, भोपाल समेत अन्य कस्बाई इलाकों के अपराध जगत में बहुत बढ़ गया था। जिसकी इकलौती वजह उसके द्वारा थानेदार एसके जोशी की हत्या करना था। दूसरी ओर पुलिस अपने साथी की हत्या की वारदात भूली नहीं थी। मुबारिक पर पुलिस के आला-अफसर लगातार नजर गढ़ाए थे। उन्हें जब मौका मिलता वह इस दुस्साहसी अपराधी को रगड़ देते। लेकिन भीतर की बात ये भी थी कि थानेदार से नीचे की रैंक के पुलिसकर्मी उस पर हाथ डालने से कतराते थे। कारण वही थानेदार की क्रूरतम हत्या। बहरहाल मुबारिक अपने बढ़ते रसूख की गरमी कुछ अन्य छोटे-बड़े अपराधियों पर भी दिखाने लगा था।

बाहर आया तो शहर खलीफा बनने के ख्वाब देखने लगा
मुबारिक जेल से बाहर आया तो फिर अपनी रंगदारी, अवैध वसूली, मारपीट, अड़ी बाजी में जुट गया। उसने  समकालीन रंगदारों में से एक की घोर ‘बेइज्जती’ कर दी। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि मुबारिक शहर के बड़ा बाजार, मछरयाई, कटरा, गुजराती बाजार, नया बाजार और जाने कहां-कहां अपना एक छत्र राज चाहता था। इसलिए वह समकालीन रंगदारों के खिलाफ पीठ पीछे गाली-गलौज, छींटाकसी, उनके अड्डों से रंगदारी वसूल लेने जैसी हरकतें करता रहता था। अपनी इसी पॉलिसी के तहत उसने मछरयाई के एक नए-नए रंगदार के साथ वह हरकत कर दी। जिसका यहां जिक्र नहीं किया जा रहा। बस यूं समझ लीजिए कि मुबारिक ने उसकी कुछ ऐसी  ‘बेइज्जती’ कर दी। जिसको वह अपने चंद दोस्तों के सामने भर बयां कर पाया और यही घटनाक्रम मुबारिक के खात्मे का कारण बना।
पुलिस ने बंबई पैटर्न अपनाया ‘दोस्तों’  को फ्री हैंड कर कराई हत्या  
साल 1986 शुरु हो चुका था। अब शहर की पुलिस मुबारिक अली के बढ़ते खौफ को खत्म करना चाहती थी। लेकिन उन्हें कोई ऐसा बहाना नहीं मिल रहा था। इस बीच शहर के कुछ बड़े परिवार जो उस समय धन-धान्य से परिपूर्ण तो नहीं थे लेकिन उनका जातिगत व मुहल्लादारी में बड़ा रसूख था। इसी के चलते उनके घरों से भी दो-एक लोग रंगदार का दर्जा पा चुके थे, इन लोगोंं के जरिए पुलिस को जानकारी मिली कि अपराधी मुबारिक अली ने विजय रिछारिया, रवि रिछारिया, भुप्पन बरेदी, रामजी भूरा के एक साथी की  ‘बेइज्जती’ कर दी है। तब से ये सभी उसे मारने की फिराक में हैं। बताया जाता है कि पुलिस ने इनमें से किन्हीं दो-एक लोगों से संपर्क कर लिया। संभवत: उन्हें मुबारिक के खात्मा के लिए फ्री हैंड दे दिया। 
पहले दोस्ती, फिर पार्टी, फिर पीस-पीस कर डाले 
कथित रूप से पुलिस की शह मिलने के बाद इन चार-पांच लोगों में हिम्मत का संचार हो गया। बस अब जरूरत थी इस हिम्मत को अंजाम तक पहुंंचाने की। तय किया कि आमने-सामने की लड़ाई में बहुत मुमकिन है कि मुबारिक अपने बड़े गिरोह के कारण भारी पड़े, इसलिए उस पर झूठ, लालच, चालाकी, धोखा के फार्मूला अपनाना सही रहेगा।

 शुरुआत हुई मुबारिक से दोस्ती करने की। इन लोगों ने अपने सपोर्ट का झूठा भरम देते हुए उसे शहर खलीफा बनने का लालच दे दिया। मुबारिक धोखे में आ गया। इस खुशी मेें तय हुआ कि मछरयाई के एक अखबारनवीस के घर शराब-मटन की पार्टी की जाए। एक शाम सभी जमा हुए। मुबारिक ने जमकर शराब पी। लेकिन वह इतने होश में बना रहा कि ये लोग उस पर वार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। पार्टी खत्म करने के बाद मुबारिक अपने घर की तरफ निकल गया। अब तो इन लोगों को बाजी हाथ से जाती दिखने लगी। फिर भी ये लोग उसके पीछे-पीछे एक ऑटो से पहुंच गए। इनमें से मौका देख रामजी भूरा चलते ऑटो से कूद गया और उसने दौड़कर मुबारिक की दोनों जांघों के बीच लंबा छुरा घोंप दिया। भूरा के इस अटैक से बाकियों में भी हिम्मत आ गई। वे मुबारिक को ऑटो में डंगा-डोली कर वापस वहीं ले गए, जहां पार्टी हुई थी। यहां इन लोगों ने तलवार, गुप्ती, खुखरी, चाकू से उस पर ताबड़-तोड़ कई वार किए। गुस्सा इतना था कि मुबारिक के कई टुकड़े कर डाले। इसके बाद ये लोग वहां से फरार हो गए। इसी फरारी के दौरान एक आरोपी विजय रिछारिया का पुलिस ने राहतगढ़ बस स्टैंड के पास एनकाउंटर कर दिया। जो पुलिस का अपराध और अपराधियों को कंट्रोल करने का बंबईया पैटर्न था। उस समय जिले की कमान महिला आईपीएस अफसर आशा गोपालन के हाथ थी। इस घटनाक्रम में रवि रिछारिया नाम के एक अपराधी का जिक्र आया है। जो आने वाले किसी अंक में अपनी एक विशिष्ट उपलब्धि के कारण जगह पाएगा।

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