बीनाबारहा के मूलनायक तीर्थंकर शांतिनाथ . की एतिहासिक प्रतिमा गायब है

इस लेख को लिखते हुए दुविधा में हूं। इतिहास के विद्यार्थी का कर्तव्य निभाऊं या जन्मना जैन होने का दायित्व पूरा करूं। पत्रकार रहा हूं सो लोगों के जानने के अधिकार का सम्मान भी करना है। कहा गया है कि आचार्य श्री की सहमति से हुए कार्यों का विरोध नहीं होना चाहिए और बेहतर हो कि उनसे जाकर मिल लें।… इस ऊहापोह को मैं इतिहास से मिली जानकारी से ही दूर कर रहा हूं। वह यह कि आज से 2550 साल पहले के 16 महाजनपदकालीन भारत के जिस राज्य में वर्धमान महावीर ने जन्म लिया था वह लिच्छवि गणसंघ भारतवर्ष का पहला ज्ञात लोकतांत्रिक गणतंत्र था। वहां हर निर्णय समाज के मध्य सहमति से होता था।…तो मैं लोकतांत्रिक संविधान प्रदत्त अधिकारों को आस्था पर वरीयता देते हुए आपके समक्ष यह विषय रख रहा हूं। आप इसे कैसे लेंगे यह आपकी धारणा का विषय है। लिखते हुए मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह नहीं है।



विषय यह है कि बुंदेलखंड के देवरी विकासखंड (जिला सागर) में स्थित एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्र की प्रमुख मूलनायक तीर्थंकर शांतिनाथ की 16फुट ऊंची प्राचीन प्रतिमा को गुपचुप तरीके से मंदिर में से हटा कर गायब कर दिया गया है। प्रतिमा 6 सौ से 11सौ साल पुरानी है। किसी को इसके हटाए जाने का पता न चले इसकी खास इंतजाम किए गये थे। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था की केंद्र इस प्रतिमा को कहां ले जाया गया यह बताने मंदिर कमेटी तैयार नहीं,… लेखक के सूत्र बता रहे हैं कि 20 से 23 जुलाई के बीच की किसी रात एक रेत वाला हाइवा डंपर आदि लाए गये थे जिसकी सहायता से विशालकाय प्रतिमा को लोड किया गया और उसे नर्मदा जी की जलराशि को समर्पित कर दिया गया। प्रतिमा को उठाते लादते समय उसमें से टूट फूट कर गिरे हिस्से भी सिरा दिए गये। मंदिर कमेटी से जुड़े लोगों से इस विषय पर बात करिए तो वे इस विषय से समाज हित में दूर रहने का उपदेश देते हुए जानकारी देते हैं कि प्रतिमा चूने गारे से निर्मित थी, उसका क्षरण हो रहा था, उसमें सीलन आ रही थी, खंडित हो रही थी इसलिए उसे हटा कर उसकी जगह लाल पत्थर से निर्मित उसी आकार की एक नयी प्रतिमा बना कर रखी जाना है।
वस्तु स्थिति यह है कि मूलनायक शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा जैसी ही एक नयी प्रतिमा को नये बने मंदिर प्रांगण में ही गुलाबी पत्थर के एक शिलाखंड से साल भर से बनवाया जा रहा था। लेकिन यह नई प्रतिमा मूलनायक शांतिनाथ जी की प्राचीन प्रतिमा का स्थान लेगी यह योजना किसी की जानकारी में नहीं थी। इस पूरी गोपनीय योजना को कार्यरूप में परिणित के दौरान गांधीग्राम अनंतपुरा के निवासी संतोष चौधरी अध्यक्ष थे। यह घटनाक्रम संपन्न होने के क्रम में दो दिन पूर्व ही यानि 28 जुलाई से देवरी क्षेत्र में प्रचारित एक वाट्सअप मैसेज में बताया गया है कि श्री संतोष चौधरी अब श्री बीनाजी बारहा मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नहीं है। उनके स्थान पर देवरी निवासी अल्केश सिंघई कोयला वालों को अध्यक्ष बना दिया गया है।

प्रतिमा हटाए जाने की योजना ‘ कहीं ‘ से मैनेज्ड हो रही थी इसके सूत्र भी मिलते हैं। करीब एक साल पहले किन्ही अजय जैन पारस ने एक करोड़ रू. की बोली ली थी जिस मद से नई प्रतिमा के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। कुछ महीने से सभी पुराने पदाधिकारियों से वहां आए कुछ नये पदाधिकारी जैसे लोग रूखा व्यवहार करके उन्हें क्षेत्र पर आने से अप्रत्यक्ष रूप से हतोत्साहित करने लगे। करीब पंद्रह दिन पहले आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि अजित सागर बीनाबारहा मंदिर पहुंचे। उन्होंने मूलनायक प्रतिमा पर शांतिधारा विधान और अभिषेक कराया। बताते हैं कि यही प्रतिमा का अंतिम विधान था जिसके पश्चात प्रतिमा की अंत्येष्टि का छिपा हुआ विधिविधान कमेटी में हुक्म चला रहे कुछ नये श्रद्धालुओं को करना था।

चार दिन के अल्पप्रवास में विधान की समाप्ति करके मुनि श्री अजित सागर चातुर्मास हेतु सिवनी की ओर प्रस्थान कर गये। इसके बाद वाली सुबह से प्रतिमा नहीं देखी गई। मंदिर के पट बंद रखे गये। मूलनायक प्रतिमा के हजारों नियमित भक्तों में से एक ने जब कठोरता से सवाल जबाब किए तब उसे ‘गुरू जी’ के आदेश पर प्रतिमा के हटा दिए जाने की जानकारी तो दे दी गयी, प्रतिमा अब कहां है? इसका जबाब यह दिया गया कि यह किसी को नहीं मालूम। बीते एक हफ्ते से इस प्रतिमा के बारे में एक ‘अतिशय’ प्रचारित किया जा रहा है कि प्रतिमा का स्वर्गारोहण हो गया है, देवगण अपने साथ ले गये। यानि प्रतिमा अंतर्ध्यान हो गई। ताजी जानकारी के अनुसार 28 जुलाई को वंशी पहाड़पुर राजस्थान से लाए गये शिलाखंड से निर्मित भगवान शांतिनाथ की नई बनी प्रतिमा को मूलनायक शांतिनाथ की गायब हुई प्रतिमा से हुए रिक्त स्थान पर स्थापित कर दिया गया है। अभी यह प्रतिमा पूजा योग्य नहीं है क्योंकि इसकी प्राणप्रतिष्ठा नहीं हुई है। जल्दी ही एक पंचकल्याणक महोत्सव आयोजित करके इसकी प्राणप्रतिष्ठा की जाएगी।
16 फुट की ऐतिहासिक महत्व की जागृत कायोत्सर्ग प्रतिमा जिसे अतिशयकारी होने का दर्जा हासिल था, उसकी इस रहस्यमय विदाई के पीछे की वजहों का विश्लेषण अगले अंक में।



