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प्रधान न्यायाधीश ने नोटरी वकीलों से पूछा, स्टाम्प पर विवाह या तलाक तो नहीं करा रहे?

जबलपुर हाईकोर्ट में चल रहे एक मामले में राज्य सरकार को देना है जवाब


सागर। प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश कार्यालय द्वारा जारी एक कड़े पत्र ने नोटरी अधिवक्ताओं के बीच हड़कंप मचा दिया है। यह पत्र सागर, बंडा, बीना, देवरी, खुरई, गढ़ाकोटा, मालथौन, केसली, शाहगढ़, रहली और राहतगढ़ में कार्यरत नोटरी अधिवक्ताओं को भेजा गया है, जिसमें उनसे एक शपथ-पत्र मांगा गया है। इस शपथ-पत्र के माध्यम से अधिवक्ताओं को यह डिक्लरेशन देना होगा कि वे मध्य प्रदेश शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग द्वारा 20 जनवरी 2021 को जारी निर्देशों के बाद से विवाह अनुबंध या विवाह विच्छेद संबंधी कोई भी दस्तावेज निष्पादित नहीं कर रहे हैं। यह निर्देश उन नोटरी वकीलों के लिए आफत बन गया है जो अब तक कोर्ट मैरिज के नाम पर मात्र 100 रुपये के स्टाम्प पर विवाह को प्रमाणित कर रहे थे। न्यायालय ने साफ चेतावनी दी है कि यदि निर्देश जारी होने के बाद किसी भी नोटरी ने ऐसे दस्तावेज निष्पादित किए हैं, तो उनके विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस पत्र ने वो नोटरी वकील तो बेफिक्र हैं जो इस तरह के स्टाम्पछाप विवाह के प्रमाणन से दूरी बनाए रखते हैं लेकिन उन वकीलों के माथे पर बल ला दिए हैं। जो बेखटके किसी भी जोड़े के विवाह को चंद मिनट में नोटराइज्ड करते रहे हैं। अधिवक्ताओं को यह शपथ-पत्र मात्र सात दिनों के भीतर जमा करना है।
नोटरीकृत विवाह की कानूनी मान्यता नहीं, हजार पेचीदगी अलग
दरअसल, नोटरी पब्लिक को विवाह पंजीकृत करने या विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। विभिन्न उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि नोटरी एफिडेविट (शपथ-पत्र) के आधार पर किया गया विवाह कानूनी रूप से अमान्य माना जाता है। नोटरी केवल शपथ-पत्र पर गवाह के हस्ताक्षर और पहचान को प्रमाणित करता है, विवाह को नहीं।नोटरी द्वारा प्रमाणित ”शादी” के कारण बाद में गंभीर कानूनी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जब विवाह को कानूनी रूप से चुनौती दी जाती है, या संपत्ति, उत्तराधिकार, भरण-पोषण, या बच्चों की कस्टडी का मामला आता है, तो नोटरीकृत दस्तावेज की कोई कानूनी अहमियत नहीं रहती। ऐसी स्थिति में महिला और बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है, क्योंकि वे अपने वैवाहिक अधिकारों को सिद्ध नहीं कर पाते। कई बार युवा जोड़े जल्दबाजी में इस ”शॉर्टकट” को अपनाकर खुद को भविष्य में बड़े कानूनी जोखिम में डाल देते हैं। यह एक छलपूर्ण व्यवस्था है जो पार्टियों को यह विश्वास दिलाती है कि वे विवाहित हैं, जबकि उनकी शादी में कानूनी पवित्रता नाम मात्र को नहीं होती।
विशेष विवाह अधिनियम की सरल प्रक्रिया
शासन ने अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाह समेत सभी सिविल विवाह के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकरण को अनिवार्य किया है। इसकी प्रक्रिया सरल है और इसे जिला दंडाधिकारी के कार्यालय, विशेष रूप से अपर कलेक्टर के कोर्ट द्वारा प्राधिकृत किया गया है।वर और वधू को संबंधित विवाह अधिकारी के समक्ष विवाह की मंशा का एक लिखित नोटिस देना होता है। विवाह अधिकारी इस नोटिस को अपने कार्यालय में 30 दिनों के लिए प्रकाशित करता है, ताकि किसी को कोई कानूनी आपत्ति हो तो वह दर्ज करा सके।दिन की नोटिस अवधि पूरी होने के बाद और कोई वैध आपत्ति न होने पर, वर-वधू तीन गवाहों की उपस्थिति में विवाह अधिकारी के समक्ष विवाह कर सकते हैं। इसके बाद विवाह को पंजीकृत करके विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जो एक वैध कानूनी दस्तावेज होता है। यह प्रक्रिया कानूनी रूप से मजबूत है और इससे विवाह को पूर्ण वैधानिक दर्जा प्राप्त होता है, जिससे भविष्य में किसी भी कानूनी अड़चन से बचा जा सकता है।

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