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विवि: महिला टीचर पर डाला जा रहा है एफआईआर वापस लेने का दबाव!

चर्चाओं के अनुसार नौकरी जाने का डर दिखाकर 2.30 घंटे का चला "समझाइश सेशन", 12 दिन पहले साथी महिला असिस्टेंट प्रोफेसर ने की थी बुरी तरह से मारपीट

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सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। पिछले दिनों मनोविज्ञान विभाग की प्रभारी हेड डॉ. संचिता मीणा के साथ साथी असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दिव्या भणोत द्वारा की गई मारपीट के मामले में नया अपडेट है। डॉ. मीणा ने इस मामले में डॉ. भणोत के खिलाफ सिविल लाइंस थाना सागर में एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था। लेकिन, सूत्रों के अनुसार, अब विश्वविद्यालय के ही कतिपय सीनियर शिक्षक पीड़िता डॉ. मीणा पर पुलिस में दर्ज मामला वापस लेने के लिए जबरदस्त दबाव बना रहे हैं।

ढाई घंटे चला मनो विज्ञानी ”समझाइश सत्र”

विश्वविद्यालय सूत्रों के मुताबिक, बुधवार को शिक्षकों के मामलों से जुड़े एक अधिकारी (जो स्वयं भी शिक्षक हैं), मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष, इतिहास के एक शिक्षक और एक महिला शिक्षक ने मिलकर डॉ. मीणा को उनके ही विभाग में शाम 4 बजे से लेकर 6:30 बजे तक करीब ढाई घंटे तक ”समझाइश” दी। यह  ”विशेष समझाइश” तब अचानक समाप्त हुई जब एक जिम्मेदार शिक्षक को इसकी भनक लगी और वे सीधे मनोविज्ञान विभाग पहुंच गए। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान पीड़िता डॉ. मीणा को धमकाया गया कि उनका प्रोबेशन पीरियड अभी समाप्त नहीं हुआ है, इसलिए नौकरी भी जा सकती है। वहीं, विभागाध्यक्ष (एचओडी) पर भी शिकंजा कसा गया और उनसे कहा गया कि उनके विभाग की एक शिक्षक बिना एचओडी की अनुमति के पुलिस तक कैसे पहुंच गई। उन्हें संबंधित शिक्षक को नोटिस देना होगा, अन्यथा उन्हें एचओडी के पद पर नहीं रहने दिया जाएगा।

कमेटी के सामने एफआईआर की शिकायत दोहराई

यह ”समझाइश सत्र” ऐसे समय में हुआ जब कुल-सचिव डॉ. एसपी उपाध्याय द्वारा गठित आंतरिक जांच कमेटी ने बुधवार को ही डॉ. मीणा, डॉ. भणोत और अन्य प्रत्यक्षदर्शियों को बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया था। चर्चा है कि डॉ. मीणा ने कमेटी के सामने भी पुलिस एफआईआर में दर्ज ब्योरे को हूबहू दोहरा दिया। सूत्र बताते हैं कि इसी वजह से आरोपी शिक्षक की नौकरी बचाने की कवायद के तहत यह ”समझाइश सत्र” आनन-फानन में आयोजित किया गया।

विवि के भीतर ”जंगल राज” और संस्थागत मनमानी

विश्वविद्यालयीन और कानून के जानकारों का स्पष्ट कहना है कि कतिपय शिक्षकों की यह पूरी कवायद आरोपी शिक्षक की नौकरी बचाने के लिए की जा रही है, क्योंकि वह भी प्रोबेशन पीरियड पर हैं और ठोस कानूनी कार्रवाई होने पर उनकी सेवा समाप्त हो सकती है। बहरहाल, विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित पदों पर बैठे शिक्षकों द्वारा इस तरह खुलेआम एक पीड़िता पर मामला वापस लेने का दबाव बनाना, न केवल एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को प्रभावित करने की कोशिश बताई जा रही है, बल्कि यह विवि के भीतर ”जंगल राज” और संस्थागत मनमानी को भी जाहिर करती है। यह भी माना जा सकता है कि कुछ शिक्षक अपने साथी की नौकरी बचाने के लिए नियम-कानून और नैतिक दायित्वों को ताक पर रखकर, पीड़िता को डरा-धमका कर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। जो विश्वविद्यालय में एक गंभीर आंतरिक संघर्ष और नैतिक पतन को दर्शाता है।

12/11/2025

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