इतिहासचर्चितब्रेकिंग न्यूज़विविधासाहित्य और संस्कृति
Trending

भाग्योदय ट्रस्ट के सवाल पर मुनिश्री सुधासागर जी बोले, उल्लू तो चाहते ही हैं कि कभी सूरज न निकले

"जिन शासन के शेर" से सागरवाणी का बेबाक साक्षात्कार

sagarvani.com9425172417

सागर। निर्यापक संत मुनिश्री 108 सुधासागर जी महाराज का शहर में प्रवेश हो गया है। वे इस समय दीनदयाल नगर मकरोनिया स्थित दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान हैं। उनके विहार और संभावित चौमासे को लेकर 15 दिन से शहर और खासकर जैन समुदाय में चर्चाएं गरम हैं। इसी के मद्देनजर आचरण टीम व अन्य मीडियाकर्मियों ने मुनिश्री सुधासागर जी महाराज से व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सवाल किए। जिनका उन्होंने खुलकर जवाब दिया। उनसे हुई परिचर्चा के संपादित अंश-

प्रश्न– शहर के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि आप आए हैं तो भाग्योदय धर्मार्थ ट्रस्ट का काम और बेहतर हो जाएगा?

उत्तर– तीर्थंकर जब अवतार लेते हैं तीनों लोक के क्षुद्र प्राणियों में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार उल्लू की प्रवृत्ति होती है। वह भी चाहता है कि कभी सूरज नहीं उगे, वरना वह शिकार नहीं कर पाएगा। उल्लू हमेशा ही चाहता है कि अंधेरा रहे। अब मुझे पता नहीं है कि कौन मुझसे डर रहा है। मैं किसी को नहीं डराता। मैं डरता नहीं हूं इसलिए किसी को डराने का भाव नहीं आता।

वैसे जो साधु से डरता और भागता है। समझो उसके मन में कोई पाप है। मेरा तो एक ही उद्देश्य है कि मैं जहां जाऊं। वहां एक भी उल्लू नहीं रहे। वैसे जो भी उल्लू है। वह मेरे पास आए। मैं ऐसा अंजन (काजल) बनाऊंगा कि उसे दिन में दिखने लगेगा। अगर कहीं कोई ऐसा उल्लू मिले तो मेरे पास ले आएं।

प्रश्न– जैन समुदाय ज्यादा से ज्यादा मंदिर बनाने और विस्तार करने पर अधिक जोर दे रहा है।

उत्तर– समाज की एक अवधारणा है कि वह जरूरतमंद को आर्थिक मदद नहीं दी जाती। सामाजिक कार्यों के लिए धन नहीं दिया जाता। लेकिन मंदिरों के लिए लाखों-करोड़ों रुपए दान में दे दिए जाते हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने भी यही सवाल किया था। मैं बताना चाहता हूं कि जैसे सरकार किसी के लिए घर बैठे नकद राशि नहीं देना चाहती। यही सोच संत व समाज की है। इसलिए हम लोग सरकार की नरेगा-मनरेगा तर्ज पर काम करते हैंं। जैसे कि पहले ही बता चुका हूं कि सामजिक काम के लिए दान मांगों को सेठ-धनिक लोग पैसे नहीं निकालते। लेकिन मंदिर के नाम पर झट से बढ़-चढ़कर दान दे देते हैं। मंदिरों के जरिए हम न केवल वंचित वर्ग को मजदूरी, रोजगार और व्यापार देते हैं, बल्कि लोहा-कॉन्क्रीट,मजदूरी आदि के जरिए बाजार में दोबारा पैसा आ जाता है। जिस गांव में कच्चे मकान होते हैं। मंदिर बनने के बाद वहां पक्के मकान बनने लगते हैं। कुल मिलाकर तिजोरी में रखा पैसा बाहर आ जाता है। जो काम सरकार छापे या डंडे के दम पर करती है। वह हम धर्म और आशीर्वाद के दम पर करते हैं।

प्रश्न– जैन समुदाय कई धड़ों या पंथों में बंटा हुआ है, आप क्या कहेंगे?

उत्तर– जब कोई परिवार बड़ा होता है तो उसका बंटवारा होता है। सब अपने-अपने हिसाब से गुजर-बसर करते हैं। व्यापारिक संघों को ही ले लें। अगर उनकी सदस्य संख्या बढ़ जाए तो वह भी नए नाम से नया संगठन बना लेते हैं। यही स्थिति धर्म व समाज की होती है। कोई कितना भी यहां-वहां फैल जाए। उसका कुटुम्ब एक ही रहेगा। यहां भी यही है। सभी का एक ही कुटुम्ब जैन धर्म है।

प्रश्न– आप मंदिर-ट्रस्टों के प्रबंधन में सुधार के लिए जाने जाते हैं, इस कुछ बोलें।

उत्तर- मैं कभी भी कोई एजेंडा या टारगेट तय नहीं करता। संत जीवन की तरह की विहार करता हूं। बीच में जो शिकवा-शिकायत आती है। उसका निराकरण करता हूं।

मुनि श्री सुधासागर जी के दर्शन करने भाग्योदय तीर्थ के ट्रस्टी अचानक पहुंचे कर्रापुर

प्रश्न– आपके आसन के सामने तरफ सिंह की मुखाकृति प्रदर्शित होती रहती है। इसके पीछे क्या कारण है?उत्तर- आप लोगों की नजर शायद पहली बार इस पर पड़ी है। मैं मुखाकृति पर विश्वास नहीं करता हूं। मैं जो हूं, वही हूं। 

04/07/2024

 

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!