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प्रो. जायसवाल पर साहित्यिक चोरी के नए आरोप, भट्ट ने पुलिस से शिकायत की

विवि के मानव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष पर लग रहे हैं स्वयं के शोध को टाइटल बदलकर दो बार और दूसरे के शोध को चोरी कर अपने नाम से पब्लिश कराने के आरोप

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सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि सागर के मानव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजीत जायसवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उनके खिलाफ प्लागिएरिज्म यानी साहित्यिक चोरी के कुछ और नए आरोप लगे हैं। इधर एक शोध कार्य को अलग-अलग वर्षों में दो अलग-अलग शीर्षक से छपवाने के मामले में आरटीआई कार्यकर्ता और व्हिसल ब्लोअर अरविंद भट्ट ने प्रो. जायसवाल खिलाफ सिविल लाइंस थाने में एक लिखित शिकायत कर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। भट्ट का कहना है कि यह मामला पुलिस तक ले जाने से पहले मैंने विवि प्रशासन से लिखित शिकायत की थी। लेकिन उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया। नतीजतन मैंने कानून का दरवाजा खटखटाया है। मेरी मांग है कि प्रोवेशन पीरियड में चल रहे प्रो. जायसवाल को डोफा के चेयरमैन और मानव विज्ञान विभाग के हेड के पद से हटाया जाए। उनकी सेवाएं तत्काल समाप्त की जाएं।

मानव शास्त्र विभाग के एचओडी ने एक शोध कार्य को अलग-अलग टाइटल देकर दो बार प्रकाशित कराया!

शोध कार्यों में धोखाधड़ी के आदी हैं प्रो. जायसवाल
अरविंद भट्ट का कहना है कि प्रो. जायसवाल शोध कार्य एवं उनके पब्लिकेशन में धोखाधड़ी के आदी प्रतीत होते हैं। मेरी जानकारी के अनुसार इनके द्वारा बहुत से शोध पत्रों एवं प्रकाशित लेखों, पुस्तकों धोखाधड़ी और साहित्यिक चोरी की गई है। उदाहरण के लिए इनके खिलाफ एक और प्रकरण उजागर हुआ है। जिसमें वर्ष 2015 में यूजीसी द्वारा ईपीजी पाठशाला के तहत विभिन्न विषयों के कोर्स कंटेंट तैयार कराये गए थे। प्रोफेसर अजीत जायसवाल ने भी एक कंटेंट तैयार किया था। जिसका शीर्षक “मानवीकरण की प्रक्रिया ” था। इसे मानव विज्ञान के पेपर-1के मॉड्युल-6 के तौर पर शामिल किया गया है। जानकारी मिली है इस कंटेन्ट को तैयार करने के लिए इन्होंने वर्ष 2012 में पी. नाथ के शीर्षक “फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी” नाम की पुस्तक से लिए गए हैं। इस पुस्तक का पब्लिकेशन हायर पब्लिकेशन पटना ने किया था। भट्ट का दावा है कि प्रो. जायसवाल ने इस पुस्तक के पेज नंबर 442 से आगे के पेजों से सामग्री कॉपी कर यह कोर्स मॉड्युल तैयार किया।
आरोप साबित हुए तो बुरे फंस सकते हैं प्रो. जायसवाल
डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि में प्लेगिएरिज्म यह पहला मामला हो सकता है। जिस पर इतना हो हल्ला मच रहा है। जबकि अंदरखाने की खबर है कि राजकीय विवि के जमाने से लेकर नई-नई भर्ती वाले कतिपय लेक्चरर, एसोसिएट, प्रोफेसर्स इस विधा में खासे पारंगत रहे हैं। वह तो…..र मौसेरे भाई की तर्ज पर एक-दूसरे की शिकायत नहीं की सो मामले दबे रहे। बहरहाल ऐकेडमिक्स बिरादरी में प्लेगिएरिज्म को सबसे भद्दा आरोप माना जाता है। देश की शिक्षण-अध्यापन व्यवस्था भी इस मामले में खासी सख्त है। अगर आरोप साबित हो जाएं तो संबंधित को जेल के अलावा नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। पाठकों के लिए नीचे प्लेगियारिज्म के प्रकार और दंड के बारे में विस्तार से बताया गया है।

कुलपति जी, पेपर लीक हुआ तो आप जिम्मेदार रहेंगी

 

प्लेगियारिज्म के प्रकार
संपूर्ण साहित्यिक चोरी: पूरा का पूरा शोध, कहानी, आलेख आदि कॉपी कर लेना, इसे कई मामलों में पहचान की चोरी के रूप में लिया गया है।
शब्द-दर-शब्द :किसी भी व्यक्ति के आलेख को शब्दश: अपने उपयोग में लेना लेकिन कंटेन्ट स्रोत में उसका नाम नहीं देना।
स्वयं के लेखन की चोरी: अपने ही काम को अलग-अलग समय पर नया बताकर पब्लिश कराना इसका सबसे सटीक उदाहरण है। यह हरकत अधिकांशत: शोध-पत्रिकाओं के आलेखों में होती रहती है। यह शोधकर्ता के नए काम से बचने का रास्ता माना जाता है।
स्रोत आधारित चोरी: शोध कार्यों में यह चोरी की जाती है। शोधकर्ता अपने शोध में संदर्भ देते वक्त ऐसे व्यक्ति या पुस्तक का उल्लेख करते हैं। जो वास्तव में होते ही नहीं है। झूठा डाटा या घटनाक्रम बताने के लिए यह बदमाशी की जाती है।
साहित्यिक चोरी के विरुद्ध कानून
भारतीय कॉपीराइट अधिनियम 1957 की धारा 57 में, लेखकों को अन्य बातों के अलावा अपने काम के लिए लेखक होने का दावा करने का अधिकार है। उनके काम को किसी दूसरे द्वारा उपयोग करने पर श्रेय प्राप्त करने का अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है तो धारा 63 में उसे 6 महीने से 3 साल तक की जेल या 50 हजार रु. से 2 लाख रु. तक जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या यूजीसी ने शैक्षणिक गतिविधियों में साहित्यिक चोरी को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश प्रदान किए हैं,जिनका विश्वविद्यालयों द्वारा पालन किया जाना आवश्यक होता है।

16/06/2024

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