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ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई अहम सुनवाई, राज्य सरकार से मांगा जवाब

4 जुलाई को होगी अगली सुनवाई, सागर और दमोह के वकील रख रहे हैं पूरे प्रदेश की तरफ से पक्ष

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सागर। शासकीय सेवाओं समेत शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की जा रही है। बुधवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई की। जिसमें जस्टिस केबी विश्वनाथन और जस्टिस कोटेश्वरसिंह की डिविजनल बैंच के समक्ष बहस हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वरप्रताप सिंह(सागर) और वरुणसिंह(दमोह) ने ओबीसी की तरफ से पक्ष रखा। अधिवक्ताद्वय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि, मप्र सरकार का रवैया संवैधानिक मूल्यों के प्रतिकूल है। जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पक्ष रखने को कहा है। इस मामले में अब अगली अहम सुनवाई 4 जुलाई को होगी। अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को कोई दिशा-निर्देश देता है तो इससे न केवल ओबीसी बल्कि जनरल केटेगरी के अभ्यर्थियों के भविष्य पर भी बहुत प्रभाव पड़ेगा।

अवकाशकालीन बैंच ने सुनवाई की, सरकार के व्यवहार पर आश्चर्य जताया

अधिवक्ता रामेश्वर पी. सिंह ने बताया कि पीएससी के होल्ड अभ्यर्थियों की तरफ से यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। जिस पर बुधवार को अवकाशकालीन बैंच ने सुनवाई की। इसमें कोर्ट को बताया गया कि 19 मार्च 2019 को लागू अध्यादेश का हवाला देकर राज्य सरकार ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण लागू नहीं कर रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि वह अध्यादेश समाप्त हो चुका है। इसके बाद अगस्त 2019 में नया कानून बना दिया गया है और इस कानून को न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट ने स्टे किया है। इसी कानून के पालन के लिए यह पिटीशन लागू की गई है।

हमारे इस तर्क को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने थोड़ा सा आश्चर्य जताया। उन्होंने कहा कि जब विधानसभा से पारित कानून है तो फिर इसका पालन कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत क्यों पड़ी। इसके जवाब में न्यायमूर्तिद्वय को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तात्कालिक निर्णयों के बारे में अवगत कराया गया।

50 फीसदी आरक्षण की सीमा के संबंध में भी हुई बहस

एड. सिंह ने बताया कि कोर्ट रूम में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत होने की बात रखी गई। इसके लिए इंदिरा साहनी विरुद्ध केंद्र सरकार केस का जिक्र किया गया। जवाब में कोर्ट को बताया गया कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण लागू है। हालांकि बिलासपुर हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया था। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुईं। जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश कर 58 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की छूट दे दी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तिद्वय ने इस आदेश को भी देखा। इसके बाद उन्हें मप्र हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं के बारे में जानकारी दी। उन्हें बताया कि यह सभी याचिकाएं 21 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित कर दी गई हैं और ये सभी याचिकाएं छत्तीसगढ़ वाले मैटर से जुड़ी हैं। इस आधार पर तर्क दिया गया कि जब छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट के अंतरित आदेश के आधार पर 58 प्रतिशत आरक्षण लागू कर सकती है तो इसे मप्र में क्यों लागू नहीं किया जा सकता। जवाब में न्यायमूर्तिद्वय ने कहा कि छग और मप्र के हालात में अंतर है। फिर भी हम राज्य सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं कि वह जवाब दे कि मप्र में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण क्यों लागू नहीं किया जा सकता।

अनारक्षित वर्ग के 13 प्रतिशत अभ्यर्थियों पर भी पड़ेगा प्रभाव

अधिवक्ता सिंह ने बताया कि आगामी सुनवाई मेें अगर कोई आदेश होता है तो उसका असर अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों पर भी पड़ेगा। क्योंकि राज्य सरकार ने इस केटेगरी के भी 13 प्रतिशत पदों पर भर्ती को होल्ड रखा गया है। क्योंकि इस याचिका में वर्ष 2019 से 2024 के बीच हुई पीएससी के नोटिफिकेशन, रिजल्ट को भी शामिल किया गया है। उन्होंने बताया एक और महत्वपूर्ण सुनवाई हुई है। जिसमें राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के 29 सितंबर 2022 को जारी आदेश पर बहस हुई। इस आदेश में 87-13 का फार्मूला लागू करने की बात कही गई थी। इसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून को प्रभावहीन करने के लिए यह फार्मूला बनाया गया। 

25/06/2025

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