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पत्र कांड: चिट्ठियों में  स्वयं की आलोचना को लेकर मुनिश्री योगसागर महाराज बोले, जिन्हें संयम नहीं, वह साधु ही नहीं

सागर। यह बात शायद बहुत कम लोगों को मालूम हो कि जैन समाज में जिस पत्रकांड को लेकर बवाल मचा हुआ है। उसमें आचार्य श्री के साथ-साथ चुनिंदा मुनियों, साधकों, ब्रह्मचारियों की आलोचना की गई है। सागरवाणी डॉट कॉम ने इन पत्रों की इबारत पढ़ी है। इनमें समाधिस्थ 108 श्री विद्यासागरजी महाराज के अलावा उनके परमशिष्य एवं सांसारिक जीवन के अनुज भ्राता क्रमश: नवाचार्य श्री समयसागर जी महाराज और निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी महाराज के बारे में आलोचनात्मक बातें लिखी गई हैं। पत्रों की इबारत व तथ्यों से जाहिर होता है कि इन्हें मुनि संघ में शामिल किसी बेहद करीबी व जिम्मेदार व्यक्ति ने लिखवाया होगा। बहरहाल इन पत्रों में जिन लोगों का उल्लेख किया गया है। उनमें से एक निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी महाराज, इन दिनों श्री भाग्योदय तीर्थ में विराजमान हैं। सागरवाणी ने पत्रकांड को लेकर श्री योगसागर जी महाराज से चर्चा की। इस दौरान उनसे पूछा कि वह क्या पत्रकांड और उसके बाद के हालातों से वाकिफ हैं। जवाब में उन्होंने कहा कि मैंने सुना है लेकिन मैं इस बारे में कुछ नहीं बोलूंगा। मेरा मानना है कि अगर आप आचार्य श्री के शिष्य हैं तो संयम सर्वाेपरि होना चाहिए।

जिन्हें संयम नहीं आता, वह साधु नहीं हैं। इससे अधिक मैं कुछ नहीं बोलूंगा। हां अगर इस पत्र कांड के संदेही, स्वयं सामने आएं तो उनसे बातचीत की जा सकती है। मैं नहीं जानता कि इन पत्रों का उद्देश्य क्या था। मैं फिर बोलता हूं कि वे असंयमी हैं और मैं संयमी। मुझे इस सब में नहीं पड़ना। मुझे अपनी संल्लेखना, समाधि की चिंता है न कि इन आरोप या आलोचना की। आप लोग आज इन पत्रों को लेकर बात कर रहे हैं। यह सब तो वर्ष 2015 से चल रहा है। लेकिन सच्चा साधु इन सब में कभी नहीं पड़ता।

निर्भीक सागर महाराज बोले, आचार्य श्री की बात नहीं मानते तो यह हालात नहीं होते

समाधिस्थ आचार्यश्री के एक और शिष्य मुनिश्री निर्भीकसागर जी महाराज भी श्री भाग्योदय तीर्थ में विराजमान हैं। वे पिछलों दिनों अपने प्रवचनों में इस पत्रकांड के बाद आचार्य श्री की मानसिक व शारीरिक दशा के बारे में काफी कुछ खुलकर बोल चुके हैं। उन्होंने फिर दोहराया कि जब आचार्य श्री को इन पत्रों के बारे में मालूम चला तो वह बुरी तरह दुखी हो गए थे। जीवन में पहली बार उनके अश्रु देखे गए।

 

मुनि संघ ने उन्हें मशविरा दिया था कि इस मामले पर खुलकर बात होना चाहिए। तब उन्होंने कहा था कि पत्र कौन लिख रहा है, क्यों लिख रहा है। आप लोग बस यह मालूम कीजिए। ध्यान रखिए कि अगर इसमें किसी मुनि का नाम सामने आए तो उसका खुलासा नहीं करना है। यह हमारे धर्म के खिलाफ होगा। मुनि श्री निर्भीक सागर का कहना है कि, आज मन के कोने में कहीं ऐसा महसूस होता है कि काश उस दिन गुरुवर की बात नहीं मानकर पत्रकांड के सरगना के नाम का खुलासा कर दिया तो होता यह सब नहीं होता।

बगैर किसी का नाम लिए मुनि निर्भीक सागर जी बोले, जिन्होंने यह पत्रकांड किया है, शायद उन्हें ये मालूम ही नहीं है कि इस बारे में पूरी समाज को पता चल चुका है। उन्हें इसके लिए संघ के समक्ष पहुंचकर माफी मांग लेना चाहिए। इसके बावजूद मैं व्यक्तिगत तौर पर उनसे ना तो पहले और ना ही आगे कभी कोई द्वेष नहीं रखूंगा। क्योंकि यह भाव मुझे मेरे भगवन, गुरुवर समाधिष्थ विद्यासागरजी महाराज ने सिखलाए हैं

23/05/2025

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