जब वेतन सरकार दे रही है तो मंदिरों में ओबीसी, एससी-एसटी पुजारी क्यों नहीं बन सकते, हाईकोर्ट में याचिका स्वीकार

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सागर। 6 साल पहले राज्य सरकार ने आध्यात्म विभाग के लिए एक कानून बनाया। जिसके अनुसार शासन के अधीनस्थ 350 मंदिर, भवन, इमारतों के लिए शासन की ओर से पुजारी नियुक्त किए जाएंगे। उनके वेतन समेत अन्य खर्च का भार शासन उठाएगा। लेकिन देखने में आ रहा है कि इस कानून के तहत केवल ब्राह्मïणों को ही इन धार्मिक स्थलों पर नियुक्त किया जा रहा है। जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,16 तथा 21 से असंगत है। उसे शून्य बनाता है। जब देश में संविधान लागू होने के बाद सभी जाति, धर्म, समुदाय के लोग समान घोषित किए गए हैं तो फिर मंदिरों में किसी जाति विशेष के लोगों को ही नियुक्त किए जाने का नियम कैसे स्वीकार किया जा सकता है।
इस आशय की एक याचिका वरिष्ठ वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेंद्र शाह,रमेश प्रजापति,अखिलेश प्रजापति के माध्यम से अजाक्स (अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी संगठन) ने मप्र हाईकोर्ट जबलपुर में दाखिल की है। इस मामले में प्रारंभिक सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कुमार कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ ने कर याचिका को स्वीकार कर लिया।
जानकारी के अनुसार वर्तमान में उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर के अंतर्गत आने वाले 55 से अधिक मंदिर, धर्मशाला अन्य भवन, इंदौर के खजराना स्थित श्री गणेश मंदिर के अंतर्गत 33 मंदिर, छिंदवाड़ा के श्री जाम सांवली हनुमान मंदिर के अंतर्गत 24 से अधिक मंदिर, यज्ञशाला, धर्मशाला एवं खंडवा के श्री दादाजी दरबार के तहत मंदिर, श्री शारदा देवी मंदिर मैहर के तहत 34 मंदिर और सीहोर जिले के मां सलकनपुर देवी मंदिर के अंतर्गत 90 एकड़ भूमि, मंदिर परिसर और धर्मशाला-स्कूल आदि शामिल हैं।
अजा-जजा, ओबीसी यही मानते हैं कि पुजारी का काम केवल ब्राह्मण कर सकते हैं
एड. ठाकुर ने बताया कि सदियों से मंदिरो में पूजा-पाठ करने का काम एक ही जाति (ब्राह्मण) करती आ रही है। जिसमें राज्य सरकार का कोई दखल नहीं रहा। चूंकि 4 फरवरी 2019 से राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में दखल देकर सेलरी बेस्ड पुजारी नियुक्त किए जाने का कानून बनाया है। जिसकी जानकारी आम जनता (हिन्दू समुदाय) को नहीं है, क्योंकि उक्त समुदाय आज भी यही मानता है, कि मंदिरों में पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों को है। इधर राज्य शासन की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी ने उक्त जनहित याचिका की प्रचलनशीलता पर सवाल उठाया। उन्होंने आपत्ति ली कि याचिकाकर्ता अजाक्स एक सरकारी कर्मचारियों का संगठन है। जिसे यह याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार नहीं है। जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता ठाकुर ने कहा कि देश में 26 जनवरी 1950 के संविधान लागू होने के बाद से देश के सभी नागरिक समान है। अनुछेद 13, 14 तथा 17 के प्रावधानों से छुआछूत तथा वर्ण व्यवस्था का समापन हो चुका है।अगर विधायिका असमानता पैदा करने वाला कानून बनाती है तो उसे किसी भी व्यक्ति/नागरिक/संगठन द्वारा अनुछेद 226 या 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है।
हाईकोर्ट ने सरकार से 4 सप्ताह में जवाब पेश करने कहा
एड. ठाकुर ने पिछड़े, अजा-जजा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया ताकि वह विकास की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। वे संविधान द्वारा प्रदत्त समानता का जीवन जीने का अधिकार प्राप्त कर सकें। इसी तारतम्य में जहां कभी भी किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह का नियोजन यानी भर्ती सरकारी कोष से किया जाएगा। उसमें आरक्षण लागू होगा। हाईकोर्ट ने इन तर्कों के सुनने के बाद राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जीएडी, सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय एवं लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब-तलब किया है।
13/05/2025



