आरोप: महाधिवक्ता नॉन प्रैक्टिसनर वकील और विद्यार्थियों से ले रहे मशविरा!
ओबीसी आरक्षण: नहीं हुई हाईकोर्ट में सुनवाई, डेट बढ़ी, महाधिवक्ता बोले, इसी विषय पर 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई है

सागर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर के समक्ष ओबीसी आरक्षण से संबद्ध लगभग 64 प्रकरणों की गुरुवार को होने वाली फाइनल सुनवाई टल गई। जानकारी के मुताबिक एडिशनल एडवोकेट जनरल हरप्रीत रूपराह ने, हाईकोर्ट को बताया की इसी विषय में सुप्रीम कोर्ट में 21 अप्रैल को सुनवाई नियत है। इसलिए ओबीसी आरक्षण को लेकर यहां सुनवाई नहीं की जाए। जवाब में ओबीसी मामलों के पक्षकार वरिष्ठ वकील विनायक प्रसाद शाह ने कहा की जिन मामलो में कानून की वैधानिकता को चुनौती नहीं दी गईं और जो सारहीन हैं। उन्हें खारिज कर दिया जाए। केवल उन याचिकाओं को ही विचारण में लिया जाए जिनमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गईं है।
जवाब में कोर्ट ने कहा की 21 अप्रैल के बाद आगामी सुनवाई 16 मई को होगी। जिसमें इस संबंध में परीक्षण किया जाएगा।
महाधिवक्ता नॉन प्रैक्टिसनर वकील और विद्यार्थियों से ले रहे मशविरा!
सुनवाई टलने से नाखुश ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने राज्य सरकार और महाधिवक्ता समेत उनके ऑफिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
एसोसिएशन ने का कहना है कि मप्र में वर्तमान में संवैधानिक संकट है, क्योंकि राज्य सरकार विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों को दरकिनार कर महाधिवक्ता के ऑफिस के अभिमत पर नियुक्तियां व कार्रवाई कर रही है। ऐसी स्थिति में राज्य में राष्ट शासन लगा दिया जाना चाहिए। इससे पहले एसोसिएशन ने महाधिवक्ता प्रशांतकुमारसिंह की कार्यप्रणाली पर आरोप जड़ते हुए कहा कि महामहिम राज्यपाल ने आरक्षण के मामलों मे विशेषज्ञता रखने वाले वरिष्ठ वकील रामेश्वरप्रतापसिंह और विनायकप्रसाद शाह को वर्ष 2021 विशेष अधिवक्ता नियुक्त किया था। लेकिन महाधिवक्ता सिंह इन विशेष अधिवक्ताओ से आरक्षण के मामलो मेें सलाह नहीं ले रहे। यह स्थिति पूर्व महाधिवक्ता श्री पीके कौरव के हाई कोर्ट जज बन जाने के चलते बनी। अब जब आरक्षण का मामला उलझ गया है तब भी वे राज्यपाल द्वारा नियुक्त विशेष अधिवक्ताओं के बजाए विधि छात्रों एवं नान प्रैक्टिसनर वकीलों को कभी अपने निवास पर तो कभी एमपी भवन दिल्ली में बुलाकर मशविरा ले रहे हैं।
इससे महाधिवक्ता ऑफिस में नियुक्त वकीलों की योग्यता पर सवाल खड़ा हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में भी भाजपा सरकार लेकिन वहां ऐसे हालात नहीं
एसोसिएशन का कहना है कि राज्य की सरकार यह दिखाने के प्रयास करती है कि वह ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। लेेकिन ये सब औपचारिकता मात्र है। शुरु में यूथ फॉर इक्वालिटी बनाम मध्य प्रदेश सरकार केस की आड़ में सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण को रोका। जबकि यूथ फॉर इक्वालिटी की याचिका हाईकोर्ट जबलपुर ने खारिज कर दी थी। फिर सुप्रीम ने भी एसएलपी निरस्त कर दी। बड़ी विडंबना ये है कि 50 प्रतिशत से अधिक रिजर्वेशन का ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ राज्य में भी है। वहां भी भाजपा की सरकार है। लेकिन वहां की सरकार सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर सभी नियुक्तियों को अंतिम निर्णय के अधीन रखकर 58 प्रतिशत रिजर्वेशन के बावजूद नियुक्तियां कर रही है। सवाल ये है कि यही प्रक्रिया मध्य प्रदेश में लागू क्यों नहीं की जा सकती? असल में कारण ये है कि मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसी कोई भी मांग किसी भी न्यायालय के समक्ष रखी ही नहीं। वह केवल ओबीसी वर्ग की हितैषी दिखना चाहती है लेकिन उन्हें उनका अधिकार नहीं देना चाहती। वास्तविक सत्य यह है कि 27 प्रतिशत आरक्षण पर किसी भी न्यायालय ने रोक नहीं लगाई है। 
17/04/2025



