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महाकुंभ: मप्र के अधिकांश लोग गंगा स्नान के नाम पर यमुना में लगा आए डुबकी!

बड़ा तथ्य ये कि यमुना में भी मप्र खासकर बुंदेलखंड का ही पानी था

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सागर। बीते महाशिवरात्रि पर्व पर महाकुंभ का औपचारिक समापन हो चुका है। केंद्र सरकार का दावा है कि इस विश्वस्तरीय आयोजन में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने पवित्र गंगा स्नान किया। लेकिन तथ्यात्मक रूप से देखें तो इन 66 करोड़ लोगों में से मप्र समेत दक्षिणी राज्यों के अधिकांश लोगों ने गंगा स्नान किया ही नहीं है। ये दावा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि मप्र से बांदा, महोबा और चित्रकूट होकर जो लोग प्रयागराज पहुंचे थे। उन्हें यूपी सरकार ने मुख्यत रूप से अरेल घाट पर स्नान का इंतजाम किया था। अरेल वह घाट है, जो यमुना नदी पर बना है। यहां से कई किमी आगे जाकर यमुना का गंगा और सरस्वती नदी से मिलन होता है। जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है।  इस हिसाब से जिन लोगों ने अरेल  घाट पर जिस पानी में स्नान या डुबकी लगाई, वह गंगा का ना होकर यमुना का था। इसमें भी बड़ा तथ्य ये है कि यमुना नदी के जिस पानी में लोगों ने स्नान किया। उसमें एक बड़ा हिस्सा मप्र और खासकर सागर के वर्षाजल का था।

प्रयागराज संगम के साइन बोर्ड लगे थे, लेकिन संगम अरेल घाट से कहीं दूर था
प्रयागराज में बने अस्थाई कुंभ जिला प्रशासन ने पूर्व से ही अरेल समेत अन्य घाटों में पवित्र स्नान या डुबकी के इंतजाम किए थे। लेकिन ज्यों ही जनवरी के आखिर में मौनी अमावस्या पर भगदड़ मची तब स्थानीय प्रशासन ने यहां बड़ा बदलाव किया। उन्होंने मप्र की सीमा से प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यमुना नदी के अरेल घाट पर  स्नान-डुबकी के इंतजाम कर दिए। लोग यहां-वहां नहीं  भटकें, इसलिए प्रयागराज के प्रवेश मार्ग से लेकर चाक घाट आदि क्षेत्र में संगम मार्ग  दर्शाते साइन बोर्ड भी लगवा दिए।  नतीजतन प्रयागराज में पवित्र स्नान करने गए अधिकांश लोगों को यह भान ही नहीं हुआ कि वह गंगा में नहीं, यमुना में डुबकी लगा रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि मप्र की सीमा से पहुंचने वाले लोगों को पवित्र संगम घाट तक आने-जाने की कोई मनाही थी लेकिन लोगों को अहसास ही नहीं हुआ कि उन्हें संगम के नाम पर गंगा में मिलने से पहले ही यमुना में स्नान कराया जा रहा है। बता दें कि अरेल घाट से करीब 13 किलोमीटर दूर पवित्र त्रिवेणी संगम घाट है। जिसके लिए लोगों को नैनी नामक ब्रिज से यमुना नदी को क्रॉस कर ग्रांड ट्रंक रोड होते हुए पवित्र त्रिवेणी संगम पर पहुंचना होता है।
यमुना में भी वीरांगना रानी दुर्गावती टाईगर रिजर्व का वर्षाजल था
यमुना का उद्गम उत्तराखंड में यमुनोत्री ग्लेशियर से होता है। जो वहां से हरियाणा, दिल्ली, और मप्र के सीमावर्ती जिलों से होते हुए यूपी के चित्रकूट पहुंचती है। जहां इस नदी में मप्र की दो प्रमुख नदी केन और बेतवा का पानी मिल जाता है। वीरांगना रानी दुर्गावती टाईगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के अनुसार केन के माध्यम से  रिजर्व के पहाड़ों का वर्षाजल यमुना नदी में मिलता है। जिसका मुख्य रूट सागर की देवरी तहसील में गोपालपुरा से बहने वाली कोपरा नदी है जो आगे जाकर दमोह की सोनार नदी मिलती है। सोनार बहते-बहते पन्ना में केन नदी से मिलती है। जो आगे जाकर यमुना में समाहित हो जाती है। डॉ. अंसारी  के अनुसार मप्र के इस सबसे बड़े टाईगर रिजर्व का क्षेत्रफल 2340 वर्ग किमी है। जिसमें से 1800 वर्ग किमी क्षेत्र में यहां की प्रमुख रेंज, झापन,नौरादेही, मुहली सिंगपुर आदि हैं। इनके पहाड़ों का वर्षाजल सबसे पहले बमनेर नदी और फिर आगे जाकर कोपरा नदी में मिलता है। जो दमोह की तरफ बढ़ जाता है। रिजर्व के दक्षिणी छोर पर डोंगरगांव और नौरादेही का कुछ हिस्सा है जो मूलत: नरसिंहपुर जिले की भौगोलिक सीमा में आता है। इसका क्षेत्रफल करीब 600 वर्गकिमी है। यहां के पहाड़ों का वर्षाजल इंदिरानगर-राजमार्ग होते हुए सीधे बरमान में नर्मदा नदी से मिल जाता है। इस तरह से टाईगर रिजर्व को देश की दो बड़ी  नदी, यमुना और नर्मदा का कैचमेंट एरिया भी है।
02/03/2025

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