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महाकुंभ के दो किस्से: महज चड्डी- बनियान पर घूमते रसूखदार और स्वार्थी पति-ससुर से बिछड़ने का सुकून

सागर से महाकुंभ मेले में गए लोगों के अपने- अपने अनुभव हैं.... कहानियां हैं। आप भी "सागरवाणी" से इन्हें शेयर कर सकते हैं। ये दो किस्से शिक्षा विभाग से रिटायर्ड श्री राजू सिसोदिया ने बयां किए हैं।

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सागर। 4 दिन बाद महाशिवरात्रि पर महाकुंभ का आखिरी स्नान है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस स्नान तक मेला में आने वाले लोगों की भीड़ 60 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। आज के ये दो किस्से इसी भीड़ से उपजे हैं। जिन्हें “सागरवाणी” से श्री राजू सिसोदिया ने साझा किया है। वे बीते सप्ताह ही महाकुंभ की यात्रा पर गए थे।

जिस्म पर मात्र चड्ढी- बनियान और हाथ में बस लोटा रह गया

हुआ यूं कि करीब 15 दिन पहले पड़े शाही स्नान में शामिल होने मालथौन के एक गांव से लोग वाया बस श्री प्रयागराज पहुंचे। इनमें एक 70- 72 वर्ष के रसूखदार परिवार के बुजुर्ग भी शामिल थे। बताते हैं कि प्रयागराज में दाखिल होते ही बस को एक अस्थाई स्टैंड पर पार्क किया गया। सुबह का वक्त था। सो बुजुर्ग ने पास ही शौच के लिए निकलने की तैयारी की। उन्होंने झट से बस के भीतर जाकर बैग में अपनी पहनी धोती-कुर्ता ठूंसे और हाथ में लोटा लेकर दूर दिख रहे खेत की तरफ निकल गए। लेकिन  इधर ये क्या!  स्टैंड पर रुकी बस अचानक किसी  दूसरे स्टैण्ड के लिए रवाना हो गई। इधर बुजुर्ग लौटे तो उन्हें बस ढूंढें नहीं मिली। उन्होंने गहरी सांस ली और मेला की तरफ बढ़ गए। बताते हैं कि स्नान के बाद वे महज चड्ढी- बनयान पर हाथ में लोटा लिए कभी इस पार्किंग तो कभी उस पार्किंग में भटकते रहे। ये क्रम 2-3 दिन चला। पैसे तो दूर की बात उनके पास तो जेब तक ना थी। खैर… भूख-प्यास का इंतजाम तो भंडारों से हो गया लेकिन तन पर कपड़ों व लौटने की व्यवस्था न हो पाई। मानसिक हालत बिगड़ने लगी। वे धीरे- धीरे भूलन की चपेट में आने लगे। गनीमत रही कि इन बुजुर्ग को एक चाय-पानी के ठेले पर अपने एक पुत्र का मोबाइल नंबर याद आ गया। दुकानवाले ने मदद की और नंबर मिला दिया। इधर 3 दिन से परेशान परिवारजनों की जान में जान आई। परिजन ने इस चाय वाले से कहा कि वे इन बुजुर्ग को पास के पुलिस थाने पर भिजवा दें। कुछ घंटों के भीतर ही सागर से इन बुजुर्ग के रिश्तेदार एक कार लेकर प्रयागराज के लिए रवाना हुए और उन्हें वापस ले आए। राजू भाई का कहना है कि उन तीन दिन का इन बुजुर्ग के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जब भी उनसे मेले की चर्चा करो तो वे असहज हो जाते हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा मेला और वो घूंघट में कुढ़ रही थी

मकरोनिया क्षेत्र के गंभीरिया के पास एक गांव में 35 वर्षीय उमा बाई हैं। पति और ससुर संग छोटी-मोटी किसानी करती हैं। दो- एक मवेशी हैं सो पास पड़ोस में दूध भी बेच आती हैं। उमा बाई भी इस महाकुंभ में स्नान कर आई हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने कुंभ यात्रा का अपना किस्सा साझा किया। उमाबाई ने बताया कि मेरे पति और ससुर कुछ खडूस टाइप के हैं। पहले वे दोनों ही मेला जा रहे थे। अचानक मुझे भी संग कर लिया। शुरुआत सागर से ही हो गई, यूं कि मेरे सिर पर दोनों के पहनने-ओढ़ने के कपड़े, दो- तीन दिन रुकने के हिसाब से आटा-दाल और पानी की बॉटलों का वजन लद गया। पति का स्वभाव पहले ही बता चुकी हूं। उसी के मद्देनजर उन्होंने मुझे घर पर ही बोल दिया था कि चोरी-चकारी से बचने के लिए तुम( उमाबाई) कोई पैसे मत रखना। पैसे हम लोग रखेंगे। उमा बाई ने बताया कि करीब 14 घंटे तक बस में घूंघट डाले मैं परिवार समेत श्री प्रयागरराज पहुंच गई। नैनी रेलवे स्टेशन से हम लोगों को करीब 6-7 किमी पैदल चलना था। ससुर और पति आगे-आगे और मैं सिर पर तीनों की गृहस्थी लादे भीड़ में जैसे-तैसे चलने लगी। ससुर संग थे इसलिए लंबा घूंघट भी करना पड़ रहा था। फिर अचानक वो हुआ जिसकी मैं मन ही मन ही प्रार्थना कर रही थी। भीड़ के चंद धक्के- थपेड़े में पति- ससुर गायब हो गए। एकाध मिनट तो मैंने उन्हें ढूंढा फिर देखा कि हजारों-हजार की भीड़ में दोनों का मिलना मुश्किल है। इसके बाद मैंने अपना पूरा घूंघट हटाया और अकेले ही स्नान-दान का निर्णय लिया। उमाबाई ने बताया कि स्नान के बाद घूंघट उठाए मैंने खूब मेला घूमा। पति से छिपाकर कुछ पैसे भी ले आई थी इसलिए लौटने के किराए-भाड़े की चिंता नहीं थी। खाने को राशन पानी भी था। मैं वहां दो दिन रही और कभी इस मेला क्षेत्र में तो कभी उस एरिया में घूमी। लाखों की भीड़ देखी। फिर ट्रेन से सागर लौट आई। उमाबाई का कहना था कि मुझे पति का मोबाइल नंबर अच्छे से याद था। जिसका इस्तेमाल मैंने सागर लौट कर ये बताने के लिए किया, कि मेरी फिकर मत करना। मैं सागर वापस आ गई हूं। गंगाजल भी ले आई हूं….।

22/02/2025

 

 

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