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नगर निगम में वेतन का घोर संकट, लोन ही अब आखिरी विकल्प!

दो महीने से नहीं मिला कर्मचारी-अधिकारियों को वेतन, महापौर-ननि अध्यक्ष समेत पार्षदों को भी मानदेय के पड़े लाले

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सागर। नगर निगम सागर में कर्मचारियों-अधिकारियों के वेतन का घोर संकट चल रहा है। हालात ये हैं कि यहां के महापौर, नगर निगम अध्यक्ष और पार्षदों को भी अगस्त-सितंबर का मानदेय नहीं मिला है। ऐसे में चर्चा चल पड़ी है कि अब केवल सरकार के आगे हाथ फैलाने यानी लोन मांगने का ही विकल्प रह गया है! सरकार के अलावा लोन के लिए एक दूसरा विकल्प बैंक हैं, जहां नगर निगम की चुंगी क्षतिपूर्ति, समेत अन्य वसूली की राशि जमा होती है। जानकारी के अनुसार नगर निगम को 1100 करीब चतुर्थ श्रेणी, तृतीय, द्वितीय और प्रथम श्रेणी के कर्मचारी-अधिकारी समेत दैनिक वेतन भोगी, स्थाईकर्मी और आउट सोर्स के लोगों को हर महीने वेतन के लिए3.50 करोड़ रुपए से अधिक चाहिए। लेकिन नगर निगम के पास अन्य खर्च में राशि व्यय करने के बाद 50-80 लाख रु. ही बच रहे हैं। फिलहाल राहत की बात केवल इतनी है कि नगर निगम का केवल सफाई कामगार कैडर ही ऐसा है, जिसे सितंबर तक का वेतन मिल गया है। लेकिन इसी माह महापर्व दीवाली के पूर्व उन्हें वेतन मिलेगा या नहीं, यह तय नहीं है।

चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि बड़ी देनदारियों में खर्च, कहां से दें वेतन

नगर निगम के एक अफसर के अनुसार यह हालात कोई दो-चार महीने में नहीं बने हैं। यह स्थिति तो कई महीनों से है। अंतर केवल इतना है कि पहले सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के लिए दी गई राशि से वेतन समेत अन्य खर्च निकाल लिए जाते थे। लेकिन अब योजनाओं के नाम पर राशि नहीं आ रही है तो सारा दारोमदार ऑक्ट्राय यानी चुंगी क्षति पूर्ति के रूप से सरकार से मिलने वाले 5 करोड़ रु. पर आ गया है। इसमें से एक बड़ा हिस्सा राजघाट परियोजना के तहत स्थापित बिजली कनेक्शन के बिल पर खर्च हो जाता है। एक और बड़ी राशि मुख्यमंत्री अधोसंरचना समेत अन्य योजनाओं देनदारियों में चली जाती है। इसके बाद करीब 50-60 लाख रु. ही बचते हैं। जो नगर निगम के अमले के कुल वेतन का 20 प्रतिशत भी नहीं हैं।

स्वयं के आय के साधन नहीं बनाए, जरूरत से ज्यादा स्टाफ है

नगर निगम के इन अफसर के अनुसार, इस स्थिति से बचा जा सकता था। लेकिन ननि के कतिपय अफसरों की सुस्तीपूर्ण कार्यप्रणाली, जनप्रतिनिधियों को खुश रखने की सोच के चलते नगर निगम कभी भी स्वयं की आय के ठोस साधन डेवलप नहीं कर सका। उदाहरण के लिए राज्य शासन द्वारा लागू किया गया ट्रेड लाइसेंस शुल्क, चुंिनंदा अधिकारियों व कतिपय जनप्रतिनिधियों की दखलंदाजी के कारण नगर निगम लागू ही नहीं कर पाया। जबकि प्रदेश के सभी बड़े नगर निगम में इसे लागू किया गया। उन्हें आय का एक बड़ा स्रोत मिल गया। सागर में भी यह लागू होता नगर निगम को हर महीने औसतन 01 करोड़ की सुनिश्चित आय होने लगती। संपत्तिकर और जलकर की वसूली में सुस्ती भी निगम की फटेहाल स्थिति का कारण है। नगर निगम, मकरोनिया नपा और कैंट से अच्छी खासी राशि नहीं वसूल पा रहा। बीच शहर में अधिकारियों के बंगलों को वर्षों से मुफ्त पानी दे रहा है। राज्य शासन ने प्रत्येक नगरीय निकाय की आबादी-आवास के अनुसार कर्मचारी-अधिकारियों की संख्या आदर्श कार्मिक संरचना के तहत तय की है। सागर नगर निगम में इस व्यवस्था के अनुसार अधिकतम 800 कर्मचारी-अधिकारी काम करना चाहिए। लेकिन यहां 1100  से अधिक लोग काम कर रहे हैं। डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन और मैला उठाने की प्रथा बंद होने से कई कर्मचारी अतिशेष जैसे हो गए हैं लेकिन नगर निगम उनका उचित विस्थापन नहीं कर वेतन दे रहा है। इसके अलावा करीब 35-40 अधिकारी-कर्मचारी अन्य विभागों से प्रतिनियुक्ति पर हैं। जिनमें से 90 प्रतिशत की यहां आवश्यकता ही नहीं है, इन लोगों के वेतन का भार ननि को उठाना पड़ रहा है। इस सब में सुधार किया जाए तो वेतन के संकट से कुछ हद तक को निजात पाई जा सकती है।

कर्मचारी यूनियंस को चर्चा के लिए बुलाया है उम्मीद है हल निकलेगा

 गुरुवार को कुछ कर्मचारी संगठनों ने वेतन को लेकर महापौर संगीता तिवारी को शिकायती ज्ञापन दिया था। इस संदर्भ में इन सभी को शुक्रवार को पुन: चर्चा के लिए बुलाया गया है। मानवीय आधार व आगामी महापर्व को देखते हुए रास्ता निकाला जाएगा। उम्मीद है जल्द ही वेतन का संकट खत्म होगा।                                         शैलेंद्र ठाकुर, एमआईसी सदस्य एवं सचेतक भाजपा पार्षद दल, ननि सागर 

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