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उधर मुख्यमंत्री ने ली बीड़ी उद्योग की सुध, इधर श्रेय लेने की होड़!

तेंदूपत्ता से बीड़ी निर्माण के लिए अब लघु उद्योगों को अनुदान देने की तैयारी

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सागर। राज्य सरकार तेंदूपत्ता से बीड़ी बनाने वाले लघु उद्योगोंं के लिए अनुदान देने की तैयारी कर रही है। बुंदेलखंड समेत महाकौशल तक फैले बीड़ी उद्योग के लिए एक महीने में यह दूसरी बड़ी सौगात साबित हो सकती है। इसके पूर्व केंद्र सरकार बीड़ी उद्योग को जीएसटी के 28 प्रतिशत वाले स्लैब से बाहर कर 18 प्रतिशत में शामिल कर चुकी है। वहीं बीड़ी के पत्ते पर भी अब जीएसटी 18 प्रतिशत के बजाए 5 प्रतिशत लगेगा। जानकारी के अनुसार लघु स्तरीय बीड़ी उद्योग को अनुदान देने संबंधी विषय पर हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वन्य समेत अन्य महकमों के अफसरों की एक बैठक बुलाई थी। जिसके आखिर में यह तय हुआ कि मप्र लघु वनोपज संघ, इस उद्योग को अनुदार संबंधी प्रस्ताव को तैयार करेगा। बता दें कि प्रदेश में तेंदूपते को प्रचुरता के कारण, जबलपुर, सागर, कटनी, दमोह और सतना जैसे जिलों में बीड़ी उद्योग सीमित आयवर्ग में रोजगार का बड़ा साधन रहा है। किसी जमाने में सागर जिला पूरे देश की बीड़ी की राजधानी कहलाता था। बहरहाल सरकार इसे फिर से मजबूत कर रोजगारोन्मुखी बनाने का प्रयास कर रही है। जिसमें सबसे अधिक फायदा गृहणियों को घर बैठे रोजगार के रूप में मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार संगठित रूप से 4 लाख से अधिक और असंगठित क्षेत्र में करीब 10 लाख लोग काम कर रहे हैं।

.…और इस सब का श्रेय लेने की कोशिश करता बाहरी एजेण्ट

लाबिस्ट बनने की चाहत रखने वाले एक एजेंट ने अपनी अजीबोगरीब गतिविधियों से बीड़ी उद्योगपतियों में बेचैनी पैदा रखी है। मध्यप्रदेश में आकर हाल ही में अपनी गतिविधियां बढ़ाने वाले इस एजेंट को केंद्र व मध्यप्रदेश के हर उस फैसले का श्रेय लेने की महत्वाकांक्षा है जो विदेशी सिगरेट कंपनियों के पांव पसारते व्यवसाय से स्वदेशी बीड़ी उद्योग को बचाने के लिए केंद्र व मप्र की सरकारों द्वारा लिए जा रहे हैं। वस्तुत: इन महत्वपूर्ण फैसलों का श्रेय राजनैतिक नेतृत्व व कुछ दूरदर्शी स्थानीय बीड़ी निर्माताओं को न मिल सके इसके लिए उक्त घुसपैठिया एजेंट चालाकी से प्रोपेगंडा रचता है।बीड़ी उद्योगपतियों के बीच अपने दबदबे, कमीशनखोरी व आर्थिक हितों को बनाए रखने के लिए यह एजेंट तेंदुपत्ता, बीड़ी निर्माण, बीड़ी श्रमिकों, टेक्सेशन संबंधी समस्याओं को पहले खड़ा कराता है या मनगढ़ंत समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताता है और उसके बाद उन्हीं समस्याओं को हल कराने के नाम पर मेमोरेंडम, डेलीगेशन आदि लेकर सत्ता के गलियारों में मंत्रियों और अफसरों से मुलाकातें कराने की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। ऐसा करके वह बीड़ी निर्माता, व्यवसायियों और जनप्रतिनिधियों दोनों के बीच पर्याप्त दूरी मेंटेन कराता है और अपना नेतृत्व थोपे रखने की साजिशें करता है। चालू वित्त वर्ष 2025 से लेकर कोरोना काल तक के ऐसे तीन बड़े उदाहरणों से इसकी संदिग्ध गतिविधियों को समझा जा सकता है। करीब 10 दिन पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वनविभाग की महत्वपूर्ण बैठक लेकर इस आशय का प्रस्ताव बनाने के निर्देश दिए कि मध्यप्रदेश में बीड़ी निर्माण का वैध और व्यवस्थित रूप से कारोबार करने वाले निर्माताओं को तेंदूपत्ता में सब्सिडी किस प्रकार से दी जा सकती है। इस समाचार की कटिंग्स को एक बीड़ी फर्म के सदस्य ने आंतरिक वाट्सएप ग्रुपों में डाला तो यह बाहरी एजेंट तुरंत श्रेय लेने उतर गया। सच्चाई यह है कि शहर से वरिष्ठ विधायक शैलेंद्र जैन ने इसके लिए लगातार  मुख्यमंत्री डॉ. यादव व महामहिम राज्यपाल मंगू भाई के समक्ष इस विषय को रखा है। सितंबर माह में ही श्री जैन ने इस मुद्दे पर राज्यपाल से भेंट कर पूरे विषय की बारीकियों से अवगत कराया। यह तथ्य सार्वजनिक हो चुका है कि मध्यप्रदेश की तेंदूपत्ता व बीड़ी निर्माण संबंधी नीतियों के कारण मध्यप्रदेश का बीड़ी व्यवसाय मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में शिफ्ट हो गया जहां कुछ बीड़ी फर्म के मालिकों ने अनेक वैध-अवैध बीड़ी निर्माताओं से अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों व रोहिंग्याओं को इस काम के माध्यम से रोजगार पर लगा कर पनाह दे रखी है। पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी समेत तत्काली प. बंगाल चुनाव प्रभारी एवं वर्तमान केबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जोर-शोर से यह मुद्दा उठाया था जिससे सत्ता और संगठन का इस महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान गया। इन सभी के प्रयासों से सरकार ने बीड़ी उद्योग के माध्यम से प्रदेश का राजस्व बचाने व बड़े पैमाने पर रोजगार बढ़ाने के लिए अपनी तेंदुपत्ता नीति व बीड़ी उद्योग से जुड़े वन एवं श्रम आदि नियमों को परिवर्तित करने पर विचार विमर्श शुरू किया है। गत माह जब केंद्र सरकार ने जीएसटी सुधार की निर्णय प्रक्रिया में पूरी तरह हाथों से निर्मित होने वाली बीड़ी को पूरी तरह से मेकेनाइज्ड तरीके से बनने वाली सिगरेट से अलग स्वदेशी कुटीर उद्योग की केटेगरी में रखते हुए इस पर जीएसटी कम करके 18 प्रतिशत किया तब भी बीड़ी इंडस्ट्री का लाबिस्ट बनना चाह रहे व्यक्ति ने बीड़ी निर्माताओं के आंतरिक वाट्सएप ग्रुपों पर इस निर्णय को नकारने के लिए अन्य सदस्यों से जमकर बहसबाजी की और पहले बीड़ी पर 40 प्रतिशत जीएसटी होने की बात पर अड़ कर सभी को गुमराह करने का प्रयास करता रहा । फिर जब सभी स्रोतों से निर्णय की पुष्टि हो गई तब इसका श्रेय लेने की कोशिश करते हुए कहा कि यह फैसला मैंने कराया है। तीसरा वाकया कोरोना काल में सामने आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने तेंदुपत्ता मजदूरों व बीड़ी मजदूरों के रोजगार व प्रदेश के आर्थिक हितों का ध्यान रखते हुए लॉकडाऊन से बीड़ी निर्माण को मुक्त करने का फैसला लिया। उस दौरान इस विषय पर अप्रैल से जून, 2020 में मुख्यमंत्री कार्यालय व डिजास्टर मैनैजमेंट की बैठकों में इस विषय पर अपनी बात रख कर यह निर्णय कराने सागर के तत्कालीन मंत्रियों पं गोपाल भार्गव,  भूपेंद्र सिंह व  गोविन्द सिंह राजपूत , तत्कालीन सांसद राजबहादुर सिंह तथा विधायक शैलेन्द्र जैन जो स्वयं भी बीड़ी उद्योग समूह से जुड़े हैं, की भूमिका प्रमुख थी। राजनैतिक नेतृत्व के इन निर्णायक प्रयासों को एक तरफ रख कर इस एजेंट ने बीड़ी निर्माताओं को यह पट्टी पढ़ाने की कोशिश की कि यह निर्णय उसने श्रम विभाग के अधिकारी से मिल कर कराया है। इन दिनों बीड़ी उद्योग से जुड़े व्यवसायियों में एजेंट की भोपाल के मंत्रियों व उनके स्टाफ से बढ़ रही पींगों की बड़ी चर्चा है। बीड़ी उद्योग की आड़ में यह शख्स अपनी नेटवर्किंग कर लॉबिस्ट बनने की आकांक्षा रखता है।

08/10/2025

 

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