विजय माल्या से मेल-मुलाकात और कनाडाई खालिस्तानी!
राजनीतिक सोच-विचार रखने वाले मित्र-हितैषियों के अलावा नीता खन्ना के और भी मित्र हैं। जो नीता के व्यक्तित्व के दूसरे पहलू को जाहिर करते है। यह पहलू पेज थ्री की अधखुली दुनिया से जुड़ा हुआ है। जैसे कि नीता खन्ना, प्ले ब्वॉय की छवि वाले विजय माल्या से भी मिलती हैं। माल्या पर देश के बैंकों से हजारों करोड़ की राशि लेकर भागने का आरोप है। नीता ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पर माल्या से मुलाकात के फोटो बड़ी रुचि और गर्वोक्त अंदाज में अपलोड कर रखे हैं। यहां विजय माल्या से नीता खन्ना का कनेक्शन तब और घातक हो जाता है जब नीता को बतौर कनाडाई देखा जाए। यहां बताना जरूरी नहीं है कि वर्तमान में कनाडा, खालिस्तानी आंदोलन के बेस कैंप के रूप में बदनाम है। नीता खन्ना की नागरिकता लंबी अवधि से कनाडा रही है। जहां उनकी प्रॉपर्टी, मकान और बच्चे हैं लेकिन उनकी राजनीति और विचारधारागत गतिविधियों का केंद्र बिंदु दिल्ली बना हुआ है।
कनाडा की हाई सोसायटियों में खुद की मौजूदगी बनाए रखने के लिए नीता कभी खुद को कभी फिल्मकार, कभी कला समीक्षक और कभी नॉनवेज रेसीपीज पकाते हुए फुड ब्लॉगर बताती हैं। उनके पंजाबी पति अर्जुन खन्ना के संबंध कनाडा, लंदन और यूरोपीय देशों में हैं। लाबिंग में माहिर अर्जुन खन्ना के साथ नीता खन्ना के फुट प्रिंट भी इन सभी देशों में देखे जा सकते हैं। क्या सरकार के गृह व विदेश मंत्रालयों को इन सब गतिविधियों की जानकारी है? कौन, कब और क्यों डिप्लोमेट्स, संवेदनशील तत्वों, विजय माल्या जैसे भगोड़ों से मिल रहा है ? उनके बीच कौन सी विषय वस्तुओं का आदान प्रदान हो रहा है ? विजय माल्या और भारत में उसके हितों के बीच कौन सेतु का काम कर रहा है? क्या इसकी सतत निगरानी नहीं होना चाहिए।
सागर की राजनीति में नए दावेदार के रूप में क्यों नहीं देखें?
सागर से पद्म सम्मान पाने की होड़ में कतिपय तत्वों ने दूसरे अभ्यर्थियों का दावा खत्म करने उनके पुराने आपराधिक रिकार्ड ढुंढ़वाने जैसे हथकंडे तक अपनाए। सम्मान के लिए लाबिंग का स्तर असामान्य रूप से हाई-फाई किया गया। जो अनायास ही उन लोगों के कान खड़े करने पर्याप्त है। जो सागर की राजनीति, खासकर बतौर महिला दावेदार के रूप में सक्रिय हैं। नीता खन्ना, उनके लिए एक नए कॉम्पटीटर के रूप में चुनौती दे सकती हैं। सूत्रों का कहना है कि नीता खन्ना अपनी मां के लिए पदमश्री वाली अनुशंसाओं, प्रशस्तियों की कवायद तक सीमित नहीं रही। बताया जाता है कि उन्होंने इस आड़ में सागर की कई सामाजिक संस्थाओं में स्थान बनाने की भी कोशिश की। जो कमोवेश अभी भी जारी है। उदाहरण के लिए वे हाल ही में बेड़नी पथरिया स्थित सर्वोदयी कार्यकर्ता चंपा बेन के सत्यशोधन आश्रम की बैठक में देखी गईं। सूत्रों का कहना है कि लगभग 60 लाख रु मासिक अनुदान वाली इस संस्था की वर्तमान अध्यक्ष नैना बेन पटेल इस पद को छोड़ना चाहती हैं। कर्मचारियों के पीएफ फंड जैसे विवादों के चलते वे असहज महसूस कर रही हैं।
10 दिन पहले गीतकार व कांग्रेस नेता स्व. विट्ठल भाई पटेल की स्मृति में हुए कार्यक्रम में भेंट के बाद नीता खन्ना ने अपनी मां मीना ताई के साथ इस आश्रम की गतिविधियों में रुचि बढ़ाई। आनन-फानन में बैठक करा ली। जहां सबसे पहले संस्था की अध्यक्ष को बदलने की बात उठी। लेकिन पूर्व भाजपाई सांसद लक्ष्मीनारायण यादव ने हस्तक्षेप करते हुए किसी और को अध्यक्ष बनाने की मंशा पर वीटो करते हुए उपाध्यक्ष पद पर एक सहयोगी की नियुक्ति कर दी। वर्तमान अध्यक्ष नैना बेन को पद पर बने रहने के लिए कहा। सूत्र बताते हैं कि सागर की यह संस्था किसी नवागंतुक की जेब में जाने से उस दिन बाल-बाल बची। स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली सागर की एक और संस्था एफपीएआई में भी नीता खन्ना की उपस्थिति देखी गई। वे यहां श्रीमती मीना पिंपलापुरे के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचीं। इस संस्था का इतिहास ये है कि एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण खांडेकर परिवार की सभ्रांत महिला ने मृत्यु के पूर्व झील किनारे चकराघाट सागर स्थित अपनी कोठी और करोड़ों की धनराशि अस्पताल बनाने के लिए एफपीएआई को दान की थी। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों इस संस्था के सचिव को बुलाया गया और पदाधिकारी बनने की गुंजाइश देखी गई। नगर के चमेली चौक स्थित पैतृक संस्था सीआर माडल स्कूल के कार्यक्रम में में भी नीता खन्ना की उपस्थिति देखी गई। हालांकि महाराष्ट्रीयन समाज ने इन अनावश्यक हस्तक्षेपों को बखूबी समझ रहा है। उदाहरण के लिए पिछले दिनों समाज के श्री गणपति महोत्सव में गैर-मराठी हो जाने के कारण उन्हें मंच पर स्थान नहीं दिया गया। महाराष्ट्रीयन समेत गैर समाज के लोग भी इस कदम को सही ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि सागर के महाराष्ट्रीयन समाज ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों की हमेशा इसी तरह कठोर व स्पष्टï निर्णयों से की है। अब आखिर में सवाल उठता है कि क्या लोकसभा, विधानसभा चुनावों में महिला आरक्षण और परिसीमन को देखते हुए यह सक्रियता है ? क्या इसी उद्देश्य को लेकर नीता खन्ना ने कनाडा की नागरिकता छोड़ दी है!? सवाल और भी हैं कि कोई क्यों कनाडा और दिल्ली में अपने कारोबार को छोड़ कर सागर जैसे छोटे शहर में अपनी जगह तलाश रहा है? नेताओं, समाजसेवियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपना मेल जोल बढ़ा रहा है ?क्या दिल्ली की लेफ्टिस्ट ब्रिगेड ने किसी खास रणनीति के तहत अपने सहयोगियों को राजनैतिक जमीन बना कर संसद और विधानसभाओं में घुसाने की नीति बनाई है ? इन घुसपैठ के पीछे कौन है? क्या सागर के नेता,अफसर,संस्थागत लोगों को इनसे जुड़ने के पहले विचार नहीं करना चाहिए? यह सब वे ढेरों प्रश्न हैं, जिनका जवाब समय देगा।



