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ऐसा लगता है कि विवि ने कानून का सम्मान न करने की ठान ली है: मप्र हाईकोर्ट  

अवैध नियुक्तियों को विवि प्रशासन बेहद बेशर्मी से जारी रखना चाहता है

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सागर। ऐसा लगता है कि विवि प्रशासन, कानून या नियमों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करता है। उसने प्रशासनिक कार्रवाई में सभी कानूनी सिद्धांत व निष्कर्षों की अवहेलना करने की ठान ली है। यह टिप्पणी मप्र हाईकोर्ट जबलपुर के न्यायमूर्ति विवेक जैन ने डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि के संदर्भ में कही। दरअसल विवि के पूर्व संविदा शिक्षक डॉ. दीपक गुप्ता ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। उन्होंने यह याचिका विवि प्रशासन द्वारा वर्ष 2013 में कथित तौर पर अवैधानिक तरीके से 157 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के बाद 14 नवंबर 2022 की ईसी (कार्यपरिषद) की बैठक में उन्हें कन्फर्म करने के विरुद्ध दायर की थी। न्यायमूर्ति श्री जैन ने इस मामले में मंगलवार को पारित अपने आदेश में विवि प्रशासन को 15 नवंबर 2025 तक केवल उन्हीं सहायक प्राध्यापकों के पुन: साक्षात्कार लेने का आदेश दिया। जो फरवरी 2020 की ईसी की बैठक में योग्य पाए गए थे। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्पष्टï किया कि अगर अगले तीन महीने यानी 15 नवंबर तक पुन: साक्षात्कार आयोजित नहीं कर पाता है तो वर्ष 2013 में नियुक्त सहायक प्राध्यापकों की सेवाएं समाप्त की जाएं।

अवैध नियुक्तियों को विवि प्रशासन बेहद बेशर्मी से जारी रखना चाहता है

आदेश में न्यायमूर्ति श्री जैन ने कहा कि, सार्वजनिक नियुक्ति की एक और महत्वपूर्ण आवश्यकता पारदर्शिता है। इसलिए विज्ञापन में चयन और भर्ती के लिए उपलब्ध पदों की संख्या स्पष्टï होना चाहिए।विज्ञापन में उन नियमों का भी उल्लेख होना चाहिए, जिनके आधार पर सिलेक्शन होना है। ऐसा करने से मनमानी रोकी जा सकती है। प्रक्रिया शुरु होने के बाद चयन के मापदंडों को बदलने से रोका जा सकता है, ताकि किसी अभ्यर्थी की जगह अन्य व्यक्ति का चयन नहीं हो सके। वर्तमान मामले में वास्तव में विजिटर जांच और विजिटर ने पूरी प्रक्रिया रद्द करने की सलाह दी है। लेेकिन विवि, अपने ही जाने-माने कारणों से सुधारात्मक कार्रवाई नहीं करना चाहता और बेहद बेशर्मी से इस अवैधता को जारी रखना चाहता है।

जुर्माना राशि की वसूली कुलपति और ईसी मेम्बर से की जा सकती है

न्यायमूर्ति श्री जैन ने सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को कन्फर्म करने वाली ईसी के सदस्यों पर 5 लाख रु. का जुर्माना भी लगाया। इस राशि में से मप्र पुलिस कल्याण कोष को 2 लाख रु., राष्टï्रीय रक्षा कोष को 1 लाख रु., सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में 1 लाख रु., राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को 50 हजार रु. और उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन को 50 हजार रु. दिए जाएं। उपरोक्त समस्त राशि विवि प्रशासन, 14 नवंबर 2022 की ईसी की अध्यक्षता करने वाली कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता एवं सदस्यों से वसूलने के लिए स्वतंत्र रहेगा।

विवि छोड़ प्रमोशन लेने वालों पर भी आदेश का प्रभाव!

मप्र हाईकोर्ट के इस आदेश की चर्चा शहर से लेकर विवि के गलियारों तक हो रही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रो. एनएस गजभिए के कार्यकाल में कुल 76 पद के लिए विज्ञापन निकला था। जिसके विरुद्ध 157 लोगों को नियुक्त किया गया। इनमें से पत्रकारिता विभाग के एक और उर्दू विभाग के तीन सहायक प्राध्यापकों को बर्खास्त कर दिया गया था। जबकि एक सहायक प्राध्यापक की मृत्यु हो गई थी। वहीं तीन साल पहले इनमें से 82 सहायक प्राध्यापकों को कन्फर्म कर दिया गया था। 10 का कन्फर्मेशन रोक लिया गया था। शेष करीब 60 सहायक प्राध्यापकों ने विवि में करीब 8-10 साल सेवाएं देने के बाद दूसरे विश्वविद्यालयों में उच्च पद पर ज्वाइन कर लिया था। बताया जा रहा है कि मप्र हाईकोर्ट के ताजा आदेश के आलोक में दूसरे विवि में नौकरी कर रहे अभ्यर्थियों के अनुभव के वर्ष विवादित हो गए हैं। मुमकिन है कि उन्हें अयोग्य मानते हुए संबंधित विवि भी सेवा से पृ़थक कर दे। 

13/08/2025

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