भाग दो: रानी लक्ष्मीबाई से राखी बंधवाई और उपहार में दिए 1 लाख रु.
1799 में होल्कर समर्थित अमीर खां पिंडारी ने जब सागर पर पांच हजार पिंढारों के साथ हमला किया तब उसका खास निशाना लक्ष्मीपुरा स्थित सूभेदार वाड़ा और चकराघाट के पास स्थित दवे निवास ही थे।

सागर। परमानंद दवे की मृत्यु 1772 में 73 साल की आयु में हुई तब उनके बड़े पुत्र दुर्गादत्त दवे ने कारोबार संभाला। खेर परिवार के आबा साहेब कि पत्नी लक्ष्मीबाई साहिब जिनके नाम पर सागर में लक्ष्मीपुरा बसा हुआ है उन्हें दुर्गादत्त दवे बहिन मानते थे। दवे परिवार की संपन्नता का स्तर इससे लगाया जा सकता है कि एक बार लक्ष्मीबाई साहेब ने दुर्गादत्त को राखी बांधी तो उन्होंने एक लाख रूपए नगद का उपहार लक्ष्मीबाई को दिया था।दवे परिवार का सागर में निवास वर्तमान पारस टाकीज परिसर में था। पन्ना में संभवत: वे कुंजवन में रहते थे। सागर के निवास को इस तरह आलीशान और खुफिया तरीकों से बनाया गया था कि इसके भीतर से निकली सुरंगों से घुड़सवार तक निकल सकते थे। सागर किले से मात्र दो डेढ़ सौ मीटर पर स्थित दवे निवास को ही शायद यह सुविधा मिली होगी कि वे विपदा या बाहरी हमले के समय अपना कीमती असबाब लेकर सुरंगों से किले में प्रवेश कर जाऐं। 1799 में होल्कर समर्थित अमीर खां पिंडारी ने जब सागर पर पांच हजार पिंढारों के साथ हमला किया तब उसका खास निशाना लक्ष्मीपुरा स्थित सूभेदार वाड़ा और चकराघाट के पास स्थित दवे निवास ही थे। एक महीने तक रोज किसी न किसी घर को आग लगा कर दहशत फैलायी जाती थी। हत्याऐं और बलात्कार का मंजर था। इतिहास कार वृंदावन लाल वर्मा ने इस लूटमार के जो ब्यौरे दिए हैं उसके मुताबिक अमीरखां पिंडारी ने उस संपत्ति को तालाब और कुओं से बाहर निकलवाने बाहर से कुशल गोताखोर बुलवाए थे जो प्रतिदिन उसके द्वारा पकड़े गये व्यापारी यातनाओं के बाद कबूल कर निशानदेही करते थे। अमीर खां को शहर से भगाने के लिए नागपुर के भोंसलों ने भी खेर परिवार से रकम वसूली। अमीर खां के हमले से प्रेरणा लेकर 1804 में जब दौलतराव सिंधिया ने देवरी और सागर आकर खेर परिवार के दो बेटों का अपहरण किया तब एक लाख पचहत्तर हजार रू की फिरौती देकर छुड़ाने में साहूकार गंगादत्त दवे ने ही आर्थिक मदद दी थी। 1812/13 में अमीर खां पिंढारी फिर सागर लूटने लौटा था और इस बार वह सिंधिया का समर्थन लेकर आया था। 1818 में सागर किले पर अंग्रेजों के कब्जे के साथ हीरा की खदानें भी अंग्रेजों के पास चली गयीं। आमदनी का मूल स्रोत खत्म होने पर दवे परिवार की रईसी का दौर खत्म हुआ। इस दवे या दुबे परिवार की तीन आरंभिक पीढ़ियों की समाधियां आज सागर के धर्मश्री नामक इलाके में स्थित दवे तालाब परिसर में छत्रियों के रूप में बनवाई गयीं थीं जिन पर अभिलेख पट्ट विद्यमान थे। तब दुबे तालाब का रकबा विशालकाय था। पास ही वेदांती मंदिर में विसाजी चांदोरकर के वंशजों का स्थान था। सारा इलाका खूबसूरत बागबगीचों से गुलजार था। लेकिन इस परिवार की समृद्धि ही उनका काल बन गयी। परमानंद दवे के पांच पुत्र दुर्गादत, देवकृष्ण, केवलकृष्ण , निर्भयराम और नाथू जी जो नवीना सरस्वतीबाई की कोख से जन्मे वे 1834 से 1919 के बीच कालकवलित हो गये। केवलकृष्ण का ही वंश अचरतबाई से बढ़ा। इनके चार पुत्र भाईलाल,मायाशंकर, हीरालाल और गोवर्धनकी पीढ़ी 1966 तक अस्तित्व में थी। इनमें से मायाशंकर दवे की बेटी कंचनबाई का विवाह रहली के निकट एक गांव के बाबूलाल भट्ट से हुआ जिनके एक पुत्र केव्ही भट्ट सागर आकर रहने लगेऔर दूसरे पुत्र बालाजी भट्ट रहली से पहले बैरिस्टर बने। के व्ही भट्ट के परिवार में विजयकुमार भट्ट जैसे ब्यूरोक्रेट् हुए जो अब भोपाल में रहते हैं। एक भाई अशोक कुमार भट्ट मप्र के इनकमटैक्स सुपरिंटेंडेंट रहे।
भाग तीन : मायाशंकर की श्रापित “माया” पर बनी थी बदनाम पारस टॉकीज
उनके भाई अनिलकुमार के पुत्र निलय भट्ट आजकल मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के नामी कैमरामैन हैं।



