भाग तीन : मायाशंकर की श्रापित “माया” पर बनी थी बदनाम पारस टॉकीज

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सागर! मायाशंकर दवे के एक पुत्र रामशंकर थे जिनका जन्म 1940 में हुआ था। रामशंकर के चार पुत्र और दो पुत्रियों के नाम संजरे में हैं जिनका उल्लेख में विधिक और सुरक्षात्मक कारणों से नहीं कर रहा हूं। दवे परिवार की यह मूल पीढ़ी अभी सागर के भूराजस्व के रिकार्ड से लुप्त कर दी गयी है। 1952 के आसपास सीलिंग कानून में उनके गांव के गांव छीन लिए गये। संभवत: सागर के नजदीक अर्जनी, आमेट वगैरह वे ही गांव थे। दवे या दुबे तालाब के मालिकों के हीरा व्यापारी होने और 27 ऊंटों पर पन्ना से लायी संपत्ति की किंवदंती ने दवे तालाब को खजाना खोजियों का निशाना बना दिया। तालाब के हर हिस्से की खुदाई लालची लुटेरे कर चुके हैं। खजाने की तलाश में ही दो छतरियों को नेस्तनाबूद कर दिया गया और तीसरी बची हुई छतरी का प्लास्टर खाल की तरह खींच लिया गया है। अब तालाब की जमीन ही खजाना बन चुकी है। इसके आसपास की जमीन का मूल्य दस करोड़ रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से है। दवे तालाब अब घनी आबादी में आ गया है। ठीक सामने गुलाब बाबा का मंदिर करोड़ों रु की लागत से बनाया गया है।आज यह प्रापर्टी अरबों रु की है जिस पर भूमाफियाओं का नाम राजस्व रिकार्डों में आ चुका है। ऐतिहासिकता का हवाला देकर स्थानीय गौ पालक जिला अदालत भी गये थे लेकिन ऐतिहासिक जानकारी के अभाव में वे हार गये। भट्ट परिवार के एक वंशज के पास दवे परिवार से संबंधित सारा रिकार्ड,सरकारी रूमाल, फर्दें और ताम्रपत्र हैं जिनसे बड़े बड़े राजवंश आज देनदार बन सकते हैं। आजादी के समय रियासतों के विलीनीकरण के दौरान किए गये तकादे के दौरान संभवत: दवे जी का मूल परिवार किसी बड़ी अनहोनी का शिकार बना लिया गया या स्वयं पलायन कर गया। भट्ट परिवार में तो किंवदती है कि दवे परिवार की जायदाद अपशकुनी है अत: इसपर क्लेम नहीं करना है। शायद इसमें आंशिक सचाई भी है। पारस टाकीज वाले दवे निवास को 1920 के आसपास एक जैन परिवार ने खरीदा था। उन्होंने भी खजाने की खोज में दवे निवास की एक एक ईंट गिरा दी। शहर के बुजुर्ग जानते हैं कि उन्हें एक म्यारी से बेशकीमती हीरों का कलेक्शन मिलने की खबर ने इस जैन परिवार को रातोंरात मशहूर कर दिया था। लेकिन उस जायदाद से आई समृद्धि ज्यादा नहीं टिकी। उस परिवार के पितृपुरुष का नाम ही आज गिना सेठ हो चुका है। उनकी बनाई टाकीज ने भी नीली फिल्मों के प्रदर्शन में बदनामी कमाई। ऐतिहासिक स्मारकों, स्थानों का कोई मोल नहीं होता और गंगादत्त तो सागर को गांव से शहर का रूप देने वाले गोविंद पंत के भामाशाह ही थे। यदि सागर शहर के निर्माताओं की प्रतिमाएं लगाने के लिए जिन नामों का हक बनता है तो वे नाम गोविंद पंत बुंदेले, गंगादत्त दवे, बाला जी गोविंद , परमानंद दवे और विनायकराव चांदोरकर के ही नाम हैं। यह शासन के राजस्व महकमे की जांच का विषय है कि जब दवे परिवार की मूल शाखा लुप्त हो चुकी है तो वह कौन सी अदृश्य शक्ति है जिसने उस परिवार के नाम राजस्व परिवार से विलुप्त करा कर, गलत सलत और संदिग्ध वारिसों की फौतियों से राजस्व रिकार्ड को कूटरचित कर दिया और तदनुसार रजिस्ट्रियां अस्तित्व में आ गई और भू माफिया तालाब को पाटने में लग गया। अब उन ताकतों के नाम मुझसे न पूछिए। सारा शहर उन्हें ( ——- ) के नाम से जानता है। मुझे अपने शहर में से ही शहर की खोज करने दीजिए।
12/06/2024



