सेकंड और थर्ड डिविजन के फेर में नियुक्ति नहीं देने पर अफसरों के खिलाफ अवमानना नोटिस
शिक्षकों की भर्ती में नंबर भले ही 45+ प्रतिशत थे, मार्कशीट पर थर्ड डिविजन लिखा था तो थर्ड डिविजन ही मान लिया

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सागर। नियमों की विसंगति के चलते हाई स्कूल टीचर नहीं बनाए जाने के मामले में मप्र हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरों को अवमानना नोटिस दिए हैं। मामला विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा स्नातकोत्तर कोर्स की मार्कशीट में दर्ज नंबरों की अलग-अलग स्केलिंग से जुड़ा है। इस मामले में प्रभावित युवाओं की तरफ से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वरप्रतापसिंह ने बताया कि मप्र सरकार ने वर्ष 2018 में शिक्षकों की भर्ती संबंधी नियम बनाया था। इसके अनुसार हाई स्कूल शिक्षक बनने के लिए संबंधित विषय में स्नात्तकोत्तर की डिग्री द्वितीय श्रेणी और बीएड उत्तीर्ण होना आवश्यक था। वर्ष 2018 में हाईस्कूल शिक्षक के लिए पात्रता परीक्षा हुई। जिसके लिए अक्टूबर 2021 से चयन प्रक्रिया शुरु हुई। दस्तावेज सत्यापन में जिन अभ्यर्थियों की अंकसूची में द्वितीय श्रेणी लिखा था उन्हें चयनित कर दिया गया जब कि उनके कुल प्राप्त अंको का जोड़ 45 प्रतिशत था। वहीं जिन अभ्यर्थियों की अंकसूची में तृतीय श्रेणी लिखा था, लेकिन उनके अंक 45 से 49.9 प्रतिशत थे, उनका सिलेक्शन नहीं किया।
इसके बाद सागर समेत अलग-अलग जिलों के वंचित अभ्यर्थियों ने इस चयन प्रक्रिया को हाईकोर्ट, जबलपुर में चुनौती दी। कोर्ट को बताया गया कि प्रदेश तथा देश के अलग-अलग विवि में अंकों की स्केलिंग अलग-अलग है। कुछ विवि 45 से 59.9 प्रतिशत को द्वितीय श्रेणी मान्य करते है तथा कुछ विश्वविद्यालय 45 से 50 प्रतिशत को तृतीय श्रेणी मान्य करते है। जो संविधान के अनुच्छेद 14 के विरूद्ध असमानता जाहिर करता है।
इससे याचिकाकर्ताओ को संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रदत्त नियोजन में समानता के अधिकार से वंचित किया गया। एनसीटीई जो शिक्षा के क्षेत्र में देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था है, उक्त संस्था द्वारा प्रकाशित नियमों में श्रेणी का लेख न करके 50 प्रतिशत का लेख है। याचिका की सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश शासन ने हाईकोर्ट में नियमों में भविष्यलक्षी प्रभाव से सुधार करने की सहमति दी गई थी, लेकिन कोर्ट ने शासन की उक्त सहमति को ख़ारिज कर स्पष्ट निर्देश दिए कि पूर्व की नियुक्ति को डिस्टर्ब किए बिना, याचिकाकर्ताओ को दो माह के अन्दर नियुक्ति प्रदान करे।
उन सभी अभ्यर्थियों को जिन्हें उक्त असंवैधानिक नियम के आधार पर अयोग्य किया गया है, उन सभी की पूरक भर्ती प्रक्रिया अपनाकर 6 माह के अन्दर भर्ती कम्प्लीट की जाए। लेकिन मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.संजय गोयल तथा डी.पी.आई. कमिश्नर शिल्पा गुप्ता ने कोई कार्यवाही नही की। तब दोनों के विरुद्ध अलग-अलग अवमानना याचिकाएं दाखिल की गई। जिनकी प्रारंभिक सुनवाई पर डॉ.संजय गोयल तथा शिल्पा गुप्ता को न्यायालय के आदेश की अवमाना का नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने कहा है।
08/07/2025



