भाग एक : मिस्ट्री बन चुके दुबे तालाब का इतिहास
इसमें ऐसी शख्सियत की कहानी है जो संभवत: देश के हीरा उद्योग का आदि पुरूष साबित हो सकता है।

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सागर Iयह एक गुजराती हीरा व्यापारी की कहानी है जो सीधे पन्ना और बाजीराव पेशवा से जुड़ती है। एक ऐसी शख्सियत की कहानी जो संभवत: देश के हीरा उद्योग का आदि पुरूष साबित हो सकता है। मराठा साम्राज्य की आर्थिक इमारत को जिसने हीरों से चमका दिया। गंगादत्त दवे नामक इस शख्स ने सागर व पन्ना में अपनी पूंजी से तालाब बनवाए। जिसने पन्ना व सागर के राजदरबारों को आर्थिक संकटों से उबारा। सिंधिया राजपरिवार पर साढ़े चार लाख रूपयों की वसूली के दस्तावेज बीते दो सौ सालों से छुपाए जिस शख्स का परिवार आज गुमनामी में चला गया। सागर के धर्मश्री क्षेत्र में इन्हीं गंगादत्त दवे के वंशजों का समाधिस्थल है जिसे अब दवे तालाब के बजाए दुबे तालाब कहा जाने लगा है। इसका संबंध खेड़ावाल गुजराती समाज के दवे परिवार से है न कि सागर के दुबे मालगुजार परिवार से। प्रथमत: यह ऐतिहासिक तथ्य जान लीजिए कि महाराज छत्रसाल की वसीयत के मुताबिक उनके राज्य का जो तीसरा हिस्सा पेशवा बाजीराव को मिला था उसके बटवारे का आधार राज्य की आमदनी थी। उस वक्त सन 1733 में तंैतीस लाख रु. की आमदनी के अनुसार इलाके बंटे उनमें पन्ना और हीरापुर की हीरा खदानों के भी तीन हिस्से हुए थे। एक हिस्सा पेशवा को मिला जिनके द्वारा नियुक्त किए गये कमावीसदार(कलेक्टर के समतुल्य) गोविंद पंत बुंदेले के साथ एक अनुभवी और प्रसिद्ध हीरा व्यापारी और साहूकार गंगादत्त दुबे को भी भेजा गया। गोविंद पंत बुंदेले ने सागर के रानगिर में अपना पहला आवास बनाया क्योंकि सागर का किला कुरवाई के नवाब दलेर खां के कब्जे में था।गंगादत्त को हीरा खदानों के खनन और अधीक्षण का काम सौंप कर पन्ना भेज दिया गया। वहां गंगादत्त के अपने खनन इलाके और भंडारगृह थे।भट्ट दवे परिवार के दस्तावेजों के आधार पर यह तथ्य सामने आया है कि 1740 से 1743 के बीच गंगादत्त ने 27 ऊंट गाड़ियों पर लादकर पन्ना से पेशवा का हीरा भंडार सागर खजाने में ट्रांसफर किया था। 1743 में 72 साल की आयु में गंगादत्त दवे का निधन सागर में हुआ तब तक उनके बेटे परमानंद ने पन्ना की हीरा खदानों का कार्यभार संभाल लिया था और मराठों और बुंदेला दरबारों से उसके मधुर संबंध थे। 1740 के आसपास कुरवाई के नवाब से सागर फोर्ट को खाली कराने में पेशवा दरबार को हस्तक्षेप करना पड़ा। गोविंदपंत को बुंदेलखंड का मुआमलतदार नियुक्त कर सागर का कच्चा किला दे दिया गया। वे रानगिर से सागर किले में रहने आ गये। इसके बाद ही पन्ना से हीरा भंडार सागर तबादलित हुआ था। लेकिन अब गोविंद पंत के सामने सागर नामक परकोटा गांव को एक व्यवस्थित नगर का रूप देना था। मराठा शासन के अनुरूप प्रशासनिक प्रणाली निर्मित करना थी। किले का कोट पक्का कराना था कई इमारतें और मंदिर बनवाना थे। साहूकार गंगादत्त ने अपने जीवनकाल में ही इस काम के लिए कर्ज देना शुरू किया। आगे परमानंद ने भी यह सहयोग जारी रखा। 1743 से 1760 तक चले इन निर्माणकार्यों में 60 लाख रू खर्च हो चुके थे जिन्हें गंगादत्त परमानंद दवे के परिवार ने दिया । हालांकि यह तथ्य अभी स्थापित होना बाकी है कि यह कर्ज पन्ना खदानों से आऐ हीरों के विक्रय से ही चुकाया गया होगा और बाकायदा पेशवा दफ्तर में भी इसको दर्शाया जाता होगा। गुजरात में दुबे दवे कहलाते हैं। गंगादत्त जी ने गुजरात और राजस्थान से जो कारोबारी रिश्ते बनाए थे उसमें बहुत से गुजराती और मारवाड़ी परिवार सागर शिफ्ट हुए थे। इनमें बहुत से बाजखेड़ावाल गुजराती ब्राह्मण परिवार थे जिनका मल्लीमाता मंदिर सागर के चकराघाट इलाके में आज भी है।परमानंद की तरफ बुंदेला राजा धोकलसिंह और गोविंद पंत बुंदेले के पोते रघुनाथ खेर की ओर से बकाया रकम निकलने के दस्तावेज भट्ट दवे परिवार में थे।
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12/06/2024



