सागर विवि के पूर्व कुलपति की रावतपुरा मेडिकल कॉलेज रिश्वतकांड में संदिग्ध भूमिका
रावतपुरा सरकार मान्यता के लिए स्वयं कर रहे थे रिश्वत का सौदा

सागर। श्री रावतपुरा सरकार मेडिकल कालेज की मान्यता के लिए रिश्वत प्रकरण की प्रारंभिक सीबीआइ जांच में साफ हुआ है कि रविशंकर महाराज (रावतपुरा सरकार) टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस (टीआइएसएस) के चेयरमैन डीपी सिंह से सीधे रिश्वत की सौदेबाजी कर रहे थे। यह दावा देश के नामचीन अखबार दैनिक नवदुनिया ( रायपुर) ने किया है। अखबार के मुताबिक राजनेताओं के अलावा मंत्रालय व राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के अधिकारियों तक मजबूत संबंध रखने वाले डीपी सिंह यूजीसी के पूर्व चेयरमैन के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शिक्षा सलाहकार और बीएचयू, देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय इंदौर और सागर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं। मामले के आरोपितों में छत्तीसगढ़ के सेवानिवृत्त आइएफएस अफसर और रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) के अध्यक्ष संजय शुक्ला भी हैं। वे रावतपुरा कालेज से भी जुड़े हैं। अब तक केवल कालेज के निदेशक अतुल तिवारी की गिरफ्तारी हुई है, जबकि रविशंकर महाराज, संजय शुक्ला, लेखापाल लक्ष्मीनारायण तिवारी और डा. अतिन कुंडू गिरफ्त से बाहर हैं। सीबीआइ जांच में यह सामने आया है कि एनएमसी में यूजी-पीजी बोर्ड के भीतर एक सुनियोजित रैकेट चल रहा है। इसमें अधिकारियों की मिलीभगत भी है। इस रैकेट ने मोटी रिश्वत के बदले कई निजी मेडिकल कालेजों को मान्यता दिलाई है, जबकि वे मान्यता के मानक पूरा नहीं कर रहे थे। मान्यता मानकों के संबंध में रविशंकर महाराज ने टीआइएसएस के चेयरमैन डीपी सिंह से सौदेबाजी की। इसके बाद अतुल तिवारी ने रायपुर के होटल में ठहरी एनएमसी निरीक्षण दल की प्रमुख और मांड्या इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस बेंगलुरु में आर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट की एचओडी डा. मंजप्पा सीएन को सीधे 55 लाख रुपये का आफर किया।



