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आचार्यश्री की कसम खाने वाले रानू सिंघई ने आदिवासियों की जमीन तो ठीक उनके बर्तन-भांडे तक हड़प लिए!

सागरवाणी के सामने पीड़ित आदिवासियों ने रानू सिंघई के जमीन हड़पने की मोडेस आपरेंडी बताई

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सागर। मालथौन के आदिवासियों की जमीन हड़पने का मामला चर्चा में है। आरोप स्थानीय निवासी रानू सिंघई पर है।जो फिलहाल जेल में की हवा खा रहा है। गिरफ्तारी से पहले उसने यू-ट्यूब बेस्ड एक न्यूज चैनल पर समाधिस्थ पूज्य आचार्य श्री की कसमें खा-खाकर खुद निर्दोष बताया था। उसका कहना था कि उसे राजनीति के चलते झूठा फंसाया गया है। उसके इस दावे की पड़ताल के लिए ही यह ग्राउंड रिपोर्ट की गई। जिसमें रानू का जो सच सामने आया। वह किसी भी राजनैतिक दल, सरकार, उनके नुमाइंदे और अफसरों की आंखे खोलने के लिए काफी है।

पीड़ित आदिवासियों के बताए अनुसार, रानू सिंघई का सच ये है कि वह उनकी जमीन तो ठीक, उनके चांदी के साधारण पुश्तैनी जेवरात से लेकर एल्यूमीनियम-पीतल के बर्तन तक हड़प लेता था। उसका टारगेट था अलग-अलग आदिवासियों की जमीन को इकट्ठा कर 100 एकड़ का एक प्लाट बना लेना। जिसमें वह करीब-करीब कामयाब हो गया था। लेकिन इस बीच अजा वर्ग के कुछ लोगों ने हिम्मत जुटाई और उसकी काली करतूत उजागर हो गई। पीड़ित आदिवासियों का कहना है कि वह स्थानीय पटवारी-आरआई पर अक्सर दबाव बनाता था कि वे अलग-अलग आदिवासियों की जमीनों की मेड़ें समाप्त कर दें।

आरोप तो उस पर ये भी है कि उसने एक आदिवासी बुजुर्ग महिला की जमीन पर बने किसान क्रेडिट कार्ड के आधार पर ट्रैक्टर फाइनेंस करा लिया। वहीं एक बुजुर्ग महिला को मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत मिली पहली किस्त के 25 हजार रु. दो साल पहले ऐसे झपटे कि आज तक वापस नहीं किए। सिंघई जेल में भले है लेकिन उसके शातिरपना की दहशत अभी भी पीड़ित आदिवासियों में है। हालात ये हैं कि आरआई- पटवारी उन्हें मौके पर बुलाकर उनकी जमीन का कब्जा दिलाना चाह रहे तो वे खेत पर आने से डर रहे है। उन्हें जमीन राजसात होने का झूठा डर बताकर जमीनों का कब्जा दिया जा रहा है। आदिवासियों को डर है कि जेल से छूटने के बाद उनके साथ बदसलूकी और मारपीट कर सकता है। बहरहाल, रानू सिंघई कौन और कहां का है।  इस बारे में स्थानीय निवासी ज्यादा कुछ बताने की स्थिति में नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि वह मप्र-यूपी के सीमावर्ती जिले ललितपुर का रहने वाला है। कुछ साल से वह मालथौन में सक्रिय था। जब जिस राजनैतिक दल की सरकार बनी। वह उनके साथ हो लिया। लेकिन एक बात तय है कि उसका अधिकांश समय कांगे्रस की नेतागिरी करते गुजरा। राजनीति के अलंबरदारों की करीबी का फायदा उसने आदिवासियों की जमीन हड़पने के रूप में उठाया।

मां-बेटे बोले एक साल के लिए बटाई पर लेकर कब्जा कर लिया

अपनी ही जमीन के पास टपरिया बनाकर रह रहे वयोवृद्ध मां-बेटे, सुहागरानी और भागचंद आदिवासी ने बताया कि कुछ साल पहले हमें कुछ पैसो की जरूरत थी। हम लोगों के संपर्क में रानू आया। उसने कहा कि अपनी जमीन एक साल के लिए बटाई पर दे दो। उसने हमें फुटकर-फुटकर मात्र २ हजार रु. दिए और हमारी ५ एकड़ जमीन पर खेती करने लगा। इसके बाद उसने जमीन पर कब्जा ही कर लिया। जब भी उससे जमीन वापस मांगो तो अनाप-शनाप ब्याज मांगने लगता। एक दफा तो वह मेरे घर के बर्तन तक उठा ले गया।

 

दिक्कत बताकर २५ हजार रुपए झटक लिए

सुहागरानी के ही बाजू में खड़ी एक और वृद्धा सियारानी ने बताया कि दो साल पहले कुटीर के लिए सरकार से 25 हजार रु. मिले थे। यह खबर रानू सिंघई को मिल गई। वह शाम को ही हमारी टपरिया पर आ धमका। बोला, मुझे कुछ परेशानी है। दो दिन के लिए यह रकम दे दो। मैं हजार-दो हजार रुपए ज्यादा वापस करूंगा। मुझे लोभ आ गया और उसे रकम दे दी। उस दिन का दिन और आज का दिन है। रानू ने फूटी कौंड़ी नहीं लौटाई। मांगो तो आजकल, अगले महीने की बोलकर टाल देता है। 

 

सरकारी जमीन पर भी टपरिया नहीं बनाने देेता है

एक और महिला जमना आदिवासी ने बताया कि रानू सिंघई हम लोगों को अपना गुलाम सरीखा समझता है। उसने कई परिवारों की जमीनें कब्जा लीं। हम लोग अगर रहवास के लिए भी उसके खेतों के आसपास सरकारी जमीन पर टपरिया बनाना शुरु कर दें तो वह आ धमकता था। वह बोलता था उठाओ अपने ये बांस-पन्नी। यहां दूर-दूर तक नजर मत आना वरना वन विभाग के अमले को बुलाकर तुम्हारी इस टपरिया पर जेसीबी चलवा दूंगा।

रेलवे गार्ड को उल्लू बनाया, अनाथ युवतियां आज भी भटक रहीं

भारतीय जनता पार्टी के मंडल अध्यक्ष अरविंद लोधी, अजित राय, पुष्पेंद्र परिहार, हीरू राजपूत आदि का कहना है कि, रानू सिंघई एक बेहद ही शातिर किस्म का आदमी है। उसने दर्जनों की संख्या में लोगों को चेक देकर उनसे नकद पैसे उधार लिए। जो उसने कभी वापस नहीं किए। अब ये लोग चेक लिए कभी उसके घर तो कभी पुलिस थाने में भटकते दिखाई देते हैं। उसका एक ही काम रहता था कि वह आदिवासियों की जमीन हड़पे और फिर उन्हें किसी दूसरे तबके के व्यक्ति को बेच दे। वह खरीदार को कलेक्टर से जमीन की बिक्री परमिशन कराने का भी वायदा करता था। लेकिन ऐसा होता ही नहीं था। कुछ समय पहले उसने एक आदिवासी तबके के एक रेलवे गार्ड से लाखों रुपए ले लिए लेकिन उसे जमीन ही नहीं दी। वहीं दो युवतियां ऐसी भी हैं, जिनके माता-पिता ने जरूरत के लिहाज से अपनी जमीन रानू के पास गिरवी रख दी। जब इस दंपती की मौत हो गई तो रानू ने येन-केन-प्रकारेण जमीन किसी दूसरे व्यक्ति को बेच दी। लेकिन उसने जमीन के बदले मिली रकम में से एक रुपया भी इस आदिवासी दंपती की पुत्रियों के लिए नहीं दिया। ये दोनों युवतियां आज भी अपनी जमीन के पैसों के लिए दर-बदर भटक रहीं हैें।

21/06/2025

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