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विवि: अब साहित्यिक चोरी के आरोप की आड़ में एक और प्रोफेसर ने कुलपति- प्रशासन पर उठाए सवाल

सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि की कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता, जितना सूचना- शिकायतों को सेंसर्ड कर रही हैं। अधीनस्थ शिक्षक, कर्मचारी व अधिकारी उतना ही मुखर होकर नए- पुराने कांड उजागर कर रहे हैं। वे कभी खुलकर तो कभी आड़ लेकर विवि प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। चंद दिन पहले एमबीए के प्रो. श्री भागवत ने कुलपति डॉ. गुप्ता पर अतिथि शिक्षकों की भर्ती में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उसी तर्ज पर अब मानव शास्त्र विभाग के प्रो. राजेशकुमार गौतम सामने आए हैं। प्रो गौतम का कहना है कि ऐसा लगता है कि विवि में कोई बड़ा भ्रष्टाचार चल रहा है। जिसे जिम्मेदार अधिकारी छिपाना चाहते हैं। इसलिए वे एक-दूसरे की गड़बड़ियों को दबा रहे हैं। वरना क्या यह संभव है कि एक- दो नहीं छः बार साहित्यिक चोरी में फंसे मानव विज्ञान के हेड प्रो. अजीत जायसवाल पर कार्रवाई नहीं हो। उलटा उन्हें शिक्षकों की नियुक्ति जैसे संवेदनशील व महत्वपूर्ण काम की जिम्मेदारी दे दी जाए। तमाम पुख्ता आरोपों के बावजूद प्रो. जायसवाल की नियुक्ति को कन्फर्म कर दिया जाए। प्रो. गौतम ने ये शिकायती पत्र कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता के अलावा प्रभारी रजिस्ट्रार समेत एसपी सागर को भी भेजा है। पत्र में प्रो. गौतम का मुख्य आरोप है कि, एचओडी प्रो. जायसवाल ने साहित्यिक चोरी (प्लेगेरिज्म) कर अपना शोध कार्य  बिना उचित उद्धरण/अनुमति के विदेशी जर्नल में प्रकाशित कराया। एक ही शोध और प्रकाशित सामग्री का शीर्षक बदलकर दोबारा प्रकाशित कराया। ऐसा उन्होंने पांडिचेरी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रहते हुए 2015-2023 के दरम्यान एवं 2024 में डॉक्टर हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर पद पर रहते हुए भी किया। प्रो. गौतम का कहना है कि प्रमाणत समेत शिकायत के बावजूद एक वर्ष से उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही न किए जाने से स्पष्ट संदेश जाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनको एवं उनके द्वारा किए जा रहे अनैतिक एवं अवैधानिक कार्यों को संरक्षण प्रदान कर रहा है, इससे यह भी संदेश जाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन में कुछ गंभीर अनियमिताएं एवं भ्रष्टाचार चल रहा है, अन्यथा यह कैसे संभव है कि एक प्रोफेसर जिसके विरुद्ध साहित्यिक चोरी जैसे एक-दो नहीं, 6 शोध पत्र सामने आने के बावजूद कोई कार्यवाही ना हो। प्रोफेसर अजीत जायसवाल की पूरी कार्यप्रणाली संदिग्ध है एवं ऐसे व्यक्ति का प्रशासन में होने से विश्वविद्यालय की समूची कार्य प्रणाली भी संदेहास्पद हो गई है।  समूचे विश्वविद्यालय की साख को बट्टा लगा है। शिक्षकों एवं शोधार्थियों के मध्य एक गलत संदेश गया है कि डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में प्लेगेरिज्म आम बात है और यहां ऐसा करने वालों को प्रोत्साहित किया जाता है। जो की अत्यंत ही खेदपूर्ण एवं विश्वविद्यालय के अकादमिक उन्नयन में बाधक है। ये सब देख आखिर में ऐसा लग रहा है कि कुछ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की मंडली एक-दूसरे के भ्रष्टाचार व गड़बड़ियों को दबाकर आपसी बचाव कर रहे हैं। प्रोफेसर अजीत जायसवाल के विरुद्ध तमाम शिकायतों के बावजूद ना तो उन्हें किसी पद से हटाया गया और ना ही उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही की गई, उल्टा उनका कन्फर्मेशन कर दिया गया। साहित्यिक चोरी के मामले के सामने आने के बाद विभिन्न विद्यार्थी संगठन इसको लेकर संजीदा एवं सक्रिय हो गए हैं एवं हाल ही में विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन सौंप कर कार्यवाही की मांग की है। प्रो. अजीत जायसवाल के विरुद्ध गंभीर आरोपों में साहित्यिक चोरी (Plagiarism), जालसाजी (Forgery), धोखाधड़ी (Cheating) एवं कॉपीराइट उल्लंघन शामिल हैं। उन्होंने जानबूझकर दूसरों के मौलिक शैक्षणिक कार्यों को अपने नाम से प्रस्तुत/ प्रकाशित कराया है।, जिससे न केवल शैक्षणिक नैतिकता का उल्लंघन हुआ है, बल्कि यह कृत्य विधिसम्मत अपराध की श्रेणी में भी आता है। जो कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 336 (1) (जालसाजी) धारा 336 (2) धारा 336(3), धारा 338, धारा 318(4) के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।इसके अतिरिक्त मौलिक शैक्षणिक सामग्री का बिना अनुमति पुनरुत्पादन कर कॉपीराइट अधिनियम का उल्लंघन है।

16/05/2025

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