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कैन्ट एरिया: पंचर बनाने वालों ने अंग्रेजी में मिले अतिक्रमण के नोटिस को लीज समझ लिया !

वात्सल्य स्कूल के दूसरी तरफ DEO ने जारी किए हैं मेकेनिकों को नोटिस

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सागर। देश से अंग्रेजों को निकले 75 साल से अधिक हो गए हैं। लेकिन कैन्टोमेंट बोर्ड ऑफिस और डिफेन्स एस्टेट ऑफिस भोपाल का अंग्रेजी भाषा प्रेम खत्म ही नहीं हो रहा। फिर चाहे इस कामकाजी अंग्रेजियत के कारण स्वयं या दूसरों को फजीहत ही क्यों न उठाना पड़े। मामला पीली कोठी स्थित वात्सल्य स्कूल के बाजू में बने मेकेनिकल कॉम्पलेक्स का है। जहां के पंक्चर बनाने वाले, वेल्डर, वाहन मेकेनिक, डेन्टिंग- पेटिंग आदि करने वालों को भोपाल स्थित डिफेंस एस्टेट ऑफिस (DEO) से अंग्रेजी में लिखे पत्र पहुंचे। नाम, पता से लेकर इबारत तक सब अंग्रेजी में लिखे होने के कारण इन लोगों को कुछ समझ नहीं आया। इस बीच किसी ने अफवाह उड़ा दी कि रक्षा संपदा विभाग इस जमीन की लीज देने तैयार हो गया है। जिसकी औपचारिक तैयारियां शुरु हो गई। इस पत्र के जरिए सेना, हम लोगों से जमीन देने के पूर्व सहमति मांग रही है। बस फिर क्या ! कुछ उत्साही दुकानदार, कैण्ट ऑफिस में लीज डीड, प्रीमियम मनी आदि के बारे में जानने पहुंच गए। लेकिन जब उन्होंने ये पत्र वहां के एक क्लर्क को पढ़वाया तो पता चला कि ये लीज का नहीं जमीन खाली करने का नोटिस है। दुकानदार माथा पीटते हुए बैरंग लौट आए।

मनमानी करने अंग्रेजी की आड़ 

कैन्ट व डीईओ की वर्किंग के बारे में बारीक जानकारी रखने वाले कैन्ट बोर्ड के पूर्व पार्षद एवं नेता प्रतिपक्ष वीरेंद्र पटेल का कहना है कि ये केवल सागर की नहीं देश के सभी 60-62 कैण्ट की कहानी है। असल में सैन्य और भारतीय रक्षा संपदा सेवा के अफसर अपनी मनमानी करने के लिए जानबूझकर पूरा कामकाज और पत्राचार अंग्रेजी में करते हैं। ये बात और है कि यही लोग हर साल 10 जनवरी और 14 सितंबर को हिंदी एवं  राजभाषा दिवस पर तरह – तरह के आयोजन कर इस मातृ भाषा के प्रति दिखावटी प्रेम दर्शाने में कतई नहीं च चूकते। पूर्व पार्षद पटेल का कहना है कि कैन्ट की बोर्डिंग मीटिंग्स में हमेशा अंग्रेजी में एजेण्डा रखा जाता था। जबकि इस मीटिंग में अंग्रेजी के नाम पर केवल यस और नो जानने वाले पार्षद शामिल होते थे। तत्कालीन उपाध्यक्ष पूनम वीरेंद्र पटेल एवं मेरे द्वारा इस बारे में कई बार आवाज उठाई गई। लेकिन यह व्यवस्था बंद नहीं हुई। इसी का नतीजा है कि कैण्ट में टैक्स, लीज खत्म करने, स्थानीय मतदाता सूची से नाम काटने जैसे निर्णय पारित होते रहे और छावनी परिषद के पार्षद और जनता को इसके बारे में जानकारी तब लगी, जब हाथ से सब कुछ निकल चुका था।

22/05/2024

 

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