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मुर्शिदाबाद हिंसा इफेक्ट: बुंदेलखंड के बीड़ी निर्माताओं का झारखंड पलायन!

स्थानीय कारोबारियों ने मप्र की तेंदुपत्ता नीति के कारण करीब दो दशक पहले किया था पश्चिम बंगाल का रुख

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सागर। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में सांप्रदायिक हिंसा और आगजनी का असर बुंदेलखंड सहित जबलपुर के बीड़ी कारोबार पर भी देखने मिला है। जानकारी के मुताबिक यहां के नामचीन बीड़ी निर्माता, पश्चिम बंगाल के इसी शहर में अपने-अपने कारखाने लगाए थे। जो हिंसा व आगजनी के कारण बंद हो चुके हैं। बता दें कि मप्र के ट्रेडर्स यहां से बीड़ी बनवाकर देश के अलग-अलग क्षेत्र में सप्लाई करते रहे हैं। इस पूरे मामले में ताजा अपडेट ये है कि दमोह के मशहूर प्रभुदास-किशोरदास की टेलीफोन बीड़ी, गणेश बीड़ी, जबलपुर स्थित सेंट्रल इंडिया टोबेको कंपनी की शेर बीड़ी समेत कई अन्य नामचीन बीड़ी मार्का की निर्माण यूनिट फिलहाल बंद हैं। एक नामचीन बीड़ी कारोबारी ने बताया कि अधिकांश यूनिट को बीते 10 दिन में पहले टेम्परेरी बंद किया गया। लेकिन अब हालात को भांपते हुए अधिकांश यूनिट्स को पड़ोसी राज्य झारखंड के देवगढ़ के झाझा में स्थाई रूप से शिफ्ट किया जा रहा है। हालांकि यहां एक समस्या ये है कि यहां बीड़ी मजदूरी दर सस्ती है लेकिन यहां के लोग पतली बीड़ी बनाने में सिद्धहस्त नहीं हैं। जबकि मुर्शिदाबाद के मजदूर बताए गए फार्मूला के अनुसार बीड़ी बनाने में पारंगत हैं। बीड़ी कारोबारी के अनुसार, मुर्शिदाबाद में बुंदेलखंड व जबलपुर की अधिकांश बीड़ी निर्माता फर्म ने अपने-अपने शहर का गैर-मुस्लिम स्टाफ रखा था। लेकिन जैसे ही यहां हिंसा बेकाबू हुई तो वे एक के बाद एक मप्र और झारखंड की तरफ चले गए।

मप्र की तेंदुपत्ता नीति के कारण पश्चिम बंगाल का किया था रुख

मप्र के बीड़ी कारोबारी पश्चिम बंगाल क्यों गए। इसकी मुख्य वजह मप्र राज्य सरकार की तेंदूपत्ता नीति है। जो कुछ इस ऐसी है कि जिससे मप्र का बीड़ी उद्योग करीब दो दशक पहले धाराशायी चुका है। दरअसल तेंदू पत्ता नीति का राष्ट्रीयकरण करने के कारण मप्र का तेंदू पत्ता जो दुनियाभर में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उसे नीलामी प्रक्रिया में पश्चिम बंगाल के तेंदू पत्ता आढ़तिया-व्यापारी व बीड़ी निर्माता महंगी उच्चतम बोली लगाकर खरीद लेते हैं। उन्हें यह महंगा पत्ता, बीड़ी बनवाने के लिए बाद में सस्ता पड़ जाता है क्योंकि उन्हें वहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों के रूप में सस्ते मजदूर मिल जाते हैं। इस तथ्य की पुष्टि बीते साल मप्र सरकार के केबिनेट मंत्री और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव प्रभारी रहे कैलाश विजयवर्गीय भी कर चुके हैं। इसके अलावा यहां बीड़ी निर्माण को लेकर स्थानीय प्रशासन व लेबर यूनियन की अपनी एक अलग हिडेन पॉलिसी है। जिसके चलते स्थानीय बीड़ी निर्माता को ऑन पेपर भले सरकारी मजदूरी दर पर लेबर उपलब्ध रहती है लेकिन बाद में उन्हें सस्ती मजदूरी दर और सरकारी दर के अंतर की राशि अलग-अलग रास्तों से वापस मिल जाती है। इसके उलट मप्र, गुजरात, महाराष्ट्र के बीड़ी कारोबारियों को सरकारी दर पर ही लेबर मिलती है। जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए स्थानीय बीड़ी निर्माताओं को 100-120 रु. प्रति हजार की दर से बीड़ी मजदूर उपलब्ध रहते हैं। जबकि मप्र व अन्य राज्यों के बाहरी बीड़ी निर्माताओं को यही लेबर 147 रु. प्रति हजार बीड़ी की दर से मिलते हैं। विभिन्न स्रोतों के अनुसार मप्र के तेंदू पत्ते से पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों समेत रोहिंग्या मुसलमानों की एक बड़ी आबादी रोजगार पा रही है। बताया जा रहा है कि अब इसी आबादी के कतिपय शरारती व राष्ट्रविरोधी तत्व वक्फ बिल की आड़ में मुर्शिदाबाद में हिंसा को अंजाम दे रहे हैं। 

20/04/2025

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