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ओबीसी की आरक्षण याचिका का दो सप्ताह में जवाब दे राज्य सरकार, वरना जुर्माना: हाईकोर्ट

वकीलों के संगठन ने हाईकोर्ट में ओबीसी की संख्या के अनुपात में आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर दायर की है याचिका, हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, मप्र में ओबीसी की 51 प्रतिशत आबादी को उचित प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया

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सागर। एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एन्ड सोशल जस्टिस नामक संस्था ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राज्य में ओबीसी को संख्या के अनुपात में आरक्षण दिए की याचिका दाखिल की है। इस याचिका को लेकर 11 बार सुनवाई हो चुकी है लेकिन राज्य सरकार ने इस संबंध में जवाब नहीं दिया है। इस संबंध में एक दफा फिर मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं विवेक जैन की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। खंडपीठ ने इस मामले में आदेश पारित किया है कि राज्य सरकार इस बारे में 14 दिन में जवाब दे। अन्यथा उसके खिलाफ 15 हजार रु. की कास्ट यानी जुर्माना लगाया जाएगा। इससे पहले संस्था की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वरसिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार इस याचिका का जवाब देने से बच रही है। उलटा इसे सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कराने के लिए याचिका दाखिल कर दी है। ताकि वह ओबीसी विरोधी चेहरा दिखाने से बच जाए।

मप्र में ओबीसी की आबादी 51 प्रतिशत, आरक्षण महज 14  फीसदी

इससे पहले वकीलद्वय ने कोर्ट को बताया कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश एससी की आबादी 15.6  प्रतिशत,एसटी की 21.6 प्रतिशत, ओबीसी की 50.9 प्रतिशत तथा मुस्लिमों की 3.7 प्रतिशत आबादी है। इस तरह से आरक्षित वर्ग से आने वाली आबादी मप्र में 91.34 प्रतिशत है। शेष 8.66 प्रतिशत आबादी अनारक्षित वर्ग से आती है। लेकिन प्रदेश में एससी को 16 प्रतिशत, एसटी को 20 प्रतिशत, ओबीसी को 14 प्रतिशत (13प्रतिशत विवादित) सवर्ण या अनारक्षित वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। जो सरासर ओबीसी के साथ अन्याय है। प्रदेश में ओबीसी की आबादी 51 प्रतिशत से अधिक है। सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए सरकार को ओबीसी की संख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना आवश्यक है। वकील ने कोर्ट को यह भी बताया गया कि, इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट समस्त राज्यों को निर्देशित कर चुका है कि ओबीसी निर्धारित मापदंडो के आधार पर आइडेंटिफाई करके उनकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थितियों का नियमित रूप से परीक्षण करने के लिए स्थाई रूप से आयोग गठित किया जाए।

रामजी महाजन आयोग के बाद ओबीसी में रुचि नहीं ली

एड. रामेश्वरसिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश में रामजी महाजन आयोग के बाद से आज दिनांक तक सरकारों ने ओबीसी की स्थिति सुधारने में कोई रूचि नहीं ली। यहां तक कि आयोग के कार्यालय के पास स्वयं का भवन तक नहीं है। एक किराए के भवन में नाम के लिए ऐसे आयोग का संचालन किया जाता है। जिसका अब तक विधिवत गठन तक नहीं किया गया। सरकार के उक्त असंवैधानिक कृत्य से ओबीसी के युवा सरकार द्वारा उत्पन्न किए गए इस कृत्रिम भेदभाव के कारण बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। हालात को इतने से समझा जा सकता है कि प्रदेश में सभी वर्गों को संख्या के अनुपात से भी ज्यादा आरक्षण लागू किया गया। सिर्फ ओबीसी के हितों के खिलाफ पूरा सरकारी सिस्टम सक्रिय है। इस याचिका को ही देख लीजिए लगभग एक दर्जन सुनवाई हो चुकी हैं लेकिन सरकार जवाब दाखिल करने से कतरा रही है। वकीलद्वय ने बताया कि देश में मात्र तमिलनाडू ही एक मात्र राज्य है जो ओबीसी की संख्या के अनुपात में उन्हें 50  प्रतिशत आरक्षण दे रहा है। उक्त राज्य में 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है। जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमति प्राप्त है। लेकिन मप्र में ऐसा नहीं कर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की गलत व्याख्या कर ओबीसी के साथ अन्याय कर रहा है।

03/04/2025

 

 

 

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