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कुंभ: स्वामी जी का आश्रम बना लॉज- होटल और चाय बेच रहा है पत्रकारिता का विद्यार्थी

इस मेले के कई रंग हैं। भीड़ और दान इसकी रीढ़ है। जिसका सब अपने - अपने तई फायदा उठाना चाह रहे हैं।

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सागर। रपट का शीर्षक कुछ मिसमैच सा लग सकता है। समयाभाव और शायद कन्टेंट की कमी इसकी वजह हो। अब जल्दी से मुद्दे पर आते हैं। 2 दिन पहले श्री प्रयागराज कुंभ में जाने का अवसर मिला। तनिक कठिनाई के बाद पाप धोवन डुबकी लगाई। इस दौरान प्रयागराज के इस ब्रह्मांड स्तरीय मेले पर नजर की। अधिकांश पत्रकारिता धांधली- खामियां ढूंढने में गुजरी है। सो यहां भी वही किया।

वे आश्रम को लॉज बना बैठे हैं मेले में एक स्थानीय संत जिन्होंने अपना नाम स्वामी अभिरामाचार्य घोषित किया हुआ है। तंबू से बने कथा स्थल का नाम पंचवटी आश्रम है। यहां वे कुंभ में आने वाले लोगों को ठहरने की सशुल्क सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। बहरहाल यह आश्रम उर्फ धर्मशाला उर्फ लॉज वगैरह स्नानघाट से कुछ दूर था। सो अपन वहां तक नहीं गए। लेकिन मेले में जगह- जगह लगे पंचवटी आश्रम के विज्ञापनी फ्लेक्स से बहुत कुछ ब्योरा मय ऑडियो रिकॉर्डिंग के हासिल कर लिया। जिसका डिटेल ये है कि स्वामी जी के इस टेंट रूपी आश्रम में 2 हजार लोगों के ठहरने के इंतजामात् हैं। एक व्यक्ति के एक दिन के रुकने का भाड़ा 500 या 1 हजार रु. है। दो रेट की कहानी यूं है कि एक मोबाइल नंबर पर 1 हजार रु. और एक वक्त का मुफ्त भोजन बताया गया था। दूसरे नंबर पर 500 रु. किराया और 100 रु. थाली भोजन प्रति व्यक्ति बोला गया। आश्रम के बुकिंग क्लर्क के अनुसार अगले दिन रुकना है तो  इतनी ही रकम- रोकड़ फिर ढीला करना होगी। वैसे यह मोटी-मोटी जानकारी फ्लेक्स में दिए गए मोबाइल नंबर से आप भी ले सकते हैं। पता तो उसमें स्पष्ट लिखा ही है। खैर….. और मालूमात् किया तो सामने आया कि इस व्यवस्था के मुख्य सूत्रधार गोल-मटोल काया वाले स्वामी अभिरामाचार्य जी हैं। जो इस सेट- अप के चलते फिलहाल कथा- प्रवचन से दूरी बनाए हैं। वे प्रयागराज में ही रहते हैं और मेला स्थल पर आते – जाते बने रहते हैं। एक बात बताना भूल गया कि उनके इस टेंट में 18 हजार रु. प्रति दिन की कुटीरें भी हैं। जिनमें दो लोग मय भोजन- पानी के रुक सकते हैं। चूंकि  स्वामी जी का जिकर एक बार फिर निकला है तो उनके बारे में बता दें कि अभिरामाचार्य जी के इन्स्टाग्राम एकाउन्ट में 2800+ फॉलोअर दिख रहे हैं। वे आम भक्तों से थोड़ा ऊपर से प्रतीत होते हैं क्योंकि कि वे एक पोस्ट में श्री बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर श्री धीरेंद्र स्वामी जी की आरती करते दिख रहे हैं। बाकी दिग्गज संत-महंत के प्रति भी उनका यही व्यवहार है। कुछ पोस्टें हवाई यात्राओं की भी हैं। माने स्वामी जी लक्जुरियस लाइफ को बुरा नहीं मानते। और मानना भी काहे को जब कुंभ जैसा तीर्थ है। रोजाना यहां आते हजारों-लाख भक्त हैं। उन्हें ठहराने के लिए उनका ” पंचवटी आश्रम” है।

पत्रकारिता के प्रशिक्षु चाय बेच रहे हैं !

अब अपनी जात माने पत्रकारिता की बात कर लें। स्नान के लिए जाते वक्त रास्ते में एक जगह चाय की केतली डिजाइन का टी स्टॉल खुला था। जिसे एक शक्ल से ही पढ़ा-लिखा दिखने वाला नौजवान चला रहा था। बातचीत का सिलसिला बढ़ा तो उसने बताया कि वह इलाहाबाद विवि के मास कम्युनिकेशन डिपार्ट. यानी पत्रकारिता का विद्यार्थी है। इस साल डिग्री पूरी हो जाएगी। युवक ने बताया कि परिवार की एक दुकान शहर में भी है। अपन ठहरे डॉ. हरीसिंह गौर विवि के पत्रकारिता के विद्यार्थी सो उसे मशविरा दिया कि भाई….  जरा एक बार इसमेले में ढंग से घूम लो। पता नहीं तुम्हें जाने दूसरी मोनालिसा, दूसरा आईआईटियन बाबा या एक नई हीरोइन महामंडलेश्वर बनती सबसे पहले मिल जाए।

मेले में एक- दूसरे से बिछड़ नहीं जाएं इसलिए लोगों के समूह अपनी – अपनी रस्सी को पकड़ के चलते हैं।                                  पतला करके समझाऊं तो यहां देश-दुनिया की पचासों कहानियां भी मिल सकती हैं। बोलते फोटो-वीडियो भी मिलेंगे। डिग्री से पहले ही तुम्हारी पत्रकारिता की गाड़ी दौड़ पड़ेगी। नौजवान ने चाय को कुल्हड़ में डालते हुए मुझे एक आंख छोटी कर देखा और काम में लग गया। अपन भी चलते बने। दिमाग लगाया कि शायद वह देश में डूबती-उतराती और फिर गोद में खेलती पत्रकारिता का भविष्य कुछ ज्यादा जल्दी भांप गया। फिर दिमाग में आया कि लेकिन ये काम तो अखबार- चैनल की खाक छानने के बाद भी किया जा सकता था….।

शहीदों के नाम पर 1-1 रु. के दान का रहस्य!

कुंभ के मेले में स्नान घाट के करीब आई सपोर्ट फाउंडेशन नाम के NGO के वालंटियर्स भी मिले। ये लोग शहीद स्मारक की रेप्लिका रूपी दान पेटी में 1-1 रु. का दान ले रहे थे। बोले, हम लोग दबोली कतर ग्राम सूरत (गुजरात) से हैं। लोगों में शहीदों को 365 दिन याद रखने की भावना जागृत करना चाहते हैं। इसलिए लोगों से शहीदों के परिजन के नाम पर रोजान 1 रु का दान करने की अपील करते हैं। दान राशि से अब तक 100 से अधिक शहीदों के परिवार को 51 हजार से 1 लाख रु. की मदद कर चुके हैं। लेकिन जैसे ही इन वालंटियर से शहीदों के परिवारों का ब्योरा और दान की राशि का डिटेल लेना चाहा तो वे कुछ अन्कम्फर्ट से हो गए। बोले, आप ये कार्ड ( विजिटिन्ग) रख लें। शाम को कॉल करें। अपने वरिष्ठ कार्यकर्ता से मिला दूंगा। फिर भी अपन ने एक वीडियो बना लिया था। जो यहां अपलोड किया है। इसके बाद मैं  सागर वापसी के लिए भीड़ को धकियाता- धक्का खाता निकला। मन में ख्याल आया कि यहां 40 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। अगर एक प्रतिशत लोगों ने भी 1रु., 2, और 5 रु. भी दान किए तो लेने वाला तो करोड़पति बन ही जाएगा !

27/01/2025

 

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