चैत्र प्रतिपदा पर सागर निवासी डीआईजी(जेल) गोपाल ताम्रकार दुनिया भर के लिए करते थे विक्रम संवत् का ऐलान

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सागर। मंगलवार से चैत्र प्रतिपदा यानी विक्रम संवत्सर(संवत्)2081 आधारित हिंदु नववर्ष की शुरुआत हो रही है। विक्रम संवत की शुरुआत 57 वर्ष ईसा पूर्व, उज्जैन से हुई थी। विक्रम संवत के बारे में एक खास बात ये है कि उज्जैन के भैरवगढ़ जेल से हर वर्ष इस सनातनी कैलेण्डर के बदलने यानी नए साल की शुरुआत का ऐलान किया जाता है। हाल-फिलहाल यह जिम्मेदारी केंद्रीय जेल उज्जैन के अधीक्षक निभा रहे हैं। इसी कड़ी में सागर निवासी रिटायर्ड डीआईजी गोपाल ताम्रकार को भी यह ऐतिहासिक दायित्व निभाने का सुअवसर मिल चुका है। www.sagarvani.com से चर्चा में उन्होंने बताया कि मैं वर्ष 1999 व 2000 में इस जेल में अधीक्षक के पद पर तैनात था। तब मुझे चैत्र प्रतिपदा के दिन जेल की एक प्राचीर से विक्रम संवत के शुरु होने के ऐलान करने का अवसर मिला। मैं, सूर्योदय के साथ ही जेलकर्मियों के साथ जेल की ऊंचाई वाले एक हिस्से पर पहुंचता था। वहां मैं प्रतीकात्मक रूप से सफेद पताका फहराते हुए बुलंद आवाज में ऐलान करता था कि, आज से विक्रम संवत 2055 शुरु होता है…..आज से विक्रम संवत 2056….। उन्होंने बताया कि भैरवगढ़ महल के प्रबंधक की जवाबदेही थी कि वह भैरव बाबा की सालाना सवारी का सर्वप्रथम पूजन करे और वह हर चैत्र प्रतिपदा पर नए विक्रम संवत का ऐलान करे। चूंकि अब भैरवगढ़ महल जेल में तब्दील हो चुका है। इसलिए वहां के मुख्य जेलर को यह जिम्मेदारी सौंप दी गई। जिसका पालन अभी भी किया जा रहा है।
सरकारी कामकाज में शक संवत का उपयोग किया जाता है
शक संवत और विक्रम संवत दो प्रसिद्ध भारतीय कैलेंडर हैं। शक संवत 78 ईस्वी में अस्तित्व में आया, जबकि विक्रम संवत 57 ईसा पूर्व से मौजूद था। शक और विक्रम संवत के महीनों के नाम समान हैं, और दोनों संवतों में शुक्ल और कृष्ण पक्ष हैं। विक्रम संवत में नया मास कृष्ण पक्ष से शुरू होता है, जो पूर्णिमा के बाद आता है, जबकि शक संवत में नया महीना शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। इसलिए, महीने की शुरुआत में तिथियां भिन्न हो सकती हैं। चैत्र के दौरान शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहला दिन) शक कैलेंडर में पहला दिन माना जाता है, जबकि विक्रम संवत इसे महीने का सोलहवां दिन मानता है। भारत में ग्रेगेरियन आधारित कैलेंडर सरकारी कामकाज में उपयोग किया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर की तिथियों की गणना शक संवत् के आधार पर होती है। विक्रम संवत और शक संवत के महीनों की अवधि के बीच 15 दिन का अंतर होता है।विक्रम संवत में एक साल में कुल 354 दिन माने गए हैं।बचे हुए जो 10 दिन है उसको अधिक मास या चंद्रमास के रूप में माना जाता है।
इन दोनों कैलेंडर के महीनों के नाम इस प्रकार हैं-
चैत्र: यह हिंदु कैलेंडर के महीने का पहला महीना है, जो ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल के बीच आता है। यह वसंत की शुरुआत और होली, राम नवमी और हनुमान जयंती जैसे त्योहारों से जुड़ा है।
वैशाख: ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार वैशाख अप्रैल और मई के बीच आता है। इस महीने के दौरान वैशाखी, वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा मनाते हैं।
ज्येष्ठ: ज्येष्ठ को हिंदू कैलेंडर महीने की पूर्णिमा के दिन (15 वें) को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत मई से होती है।
आषाढ़: आषाढ़ मास आमतौर पर जून या जुलाई के महीने के बीच आता है। इस हिंदू महीने के दौरान, हम गुरु पूर्णिमा मनाते हैं और देवशयनी एकादशी मनाई जाती है।
श्रावण: अधिकांश हिंदू त्योहार श्रावण यानी सावन में होते हैं, जो जुलाई या अगस्त में आता है। इस मास में कृष्ण जन्माष्टमी, रक्षा बंधन, नाग पंचमी और श्रावणी मेला, कांवर यात्रा जैसे प्रमुख त्योहार होते हैं।
भाद्रपद: भाद्रपद अगस्त या सितंबर के दौरान आता है। इस दौरान अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है।
अश्विन: हिंदू कैलेंडर का 7वां महीना अश्विन है, जो सितंबर या अक्टूबर के महीने में आता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू महीना है,क्योंकि इसमें भारत के लोग दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली का त्योहार मनाते हैं
कार्तिक: कार्तिक सबसे शुभ महीना माना जाता है, क्योंकि इन महीनों में दीपावली और छोटी दीपावली मनाते हैं।गुरु नानक जयंती और जैन तीर्थंकर महावीर का निर्वाण दिवस भी इसी मास में मनाया जाता है।
मार्गशीर्ष या अगहन: मार्गशीर्ष नौवां हिंदु महीना है, और यह नवंबर या दिसंबर के महीने में आता है। हिंदू इसे अग्रहयान भी कहते हैं। इस महीने में देव उठनी एकादशी मनाते हैं।
पौष: पौष का महीना दिसंबर या जनवरी के महीने के बीच होता है। यह पोंगल या मकर संक्रांति त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है।
माघ: सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी माघ महीने के दौरान मनाए जाने वाले दो शुभ दिन हैं।
फाल्गुन: फाल्गुन महीना हिंदू महीना है, जो फरवरी या मार्च के महीने के बीच आता है। होली के त्योहार वाला यह महीना सर्दियों के मौसम के अंत का भी प्रतीक है।
इसलिए महाराजा विक्रमादित्य के नाम इस संवत का नाम
उज्जैयनी के महाराज विक्रमादित्य बहुत ही न्यायप्रिय और अपनी प्रजा का हित चाहने वाले राजा थे। उन्होंने शकों के अत्याचार से कई राज्यों को मुक्त कराया था और अपना शासन स्थापित किया था। इसी विजय की स्मृति के रूप में राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत पंचांग का निर्माण करवाया था। विक्रम संवत उस दिन पर आधारित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराया, उज्जैन पर आक्रमण किया और एक नए युग का आह्वान किया। ऐसा कहा जाता था कि राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य विक्रम संवत के पहले दिन अपनी प्रजा का सारा कर्ज माफ कर देते थे जो उनकी प्रजा नही दे पाती थी. उनके शासन काल को चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भारत के स्वर्णकाल के रूप में वर्णित किया है। विक्रम संवत को नेपाल में भी मान्यता दी जाती है। विक्रम संवत के लागू होने के 78 साल बाद शक संवत का आरम्भ हुआ। विक्रम संवत से पहले युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत और सप्तर्षि संवत भी प्रचलित रहे हैं।
जेलों में सुधार कार्य के लिए जाने जाते हैं श्री ताम्रकार
विक्रम संवत के ऐलान के बारे यह महत्वपूर्ण जानकारी देने वाले रिटा. डीआईजी ताम्रकार को उत्कृष्ट सेवाओं लिए राष्टï्पति पदक से सम्मानित हो चुके हैं। उन्होंने जबलपुर केन्द्रीय कारागार में भी नवाचार के ऐसे कई कार्य किए हैं, जिन्हें कई अधिकारी खुद मिसाल मानते हैं। वर्ष 1999 में भारत सरकार के द्वारा श्री ताम्रकार का चयन लंदन ट्रेनिंग के लिए हुआ था। वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने जेल में आधुनिक तरीके की मुलाकात का खाका बनाया और उस पर अमल किया गया। उनकी इस पहल को देश की अन्य जेलों में भी लागू किया गया है। इसी तरह उन्होंने जेल में इग्नू का नि:शुल्क अध्ययन केंद्र की शुरुआत कराई थी। बाद में इस केंद्र की स्थापना देश की अन्य जेलों में भी की गई थी। उन्होंने बंदियों को ऐसी शिक्षा व प्रशिक्षण से जोडऩे का काम किया, जिससे बाहर जाते ही वे अपना खुद का रोजगार स्थापित करके मुख्य धारा से जुड़ सकें।
08/04/2024



