चर्चितचौपाल/चौराहा

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की “दिव्यांग सोच”

सागर वाणी डेस्क. सागर

सागर। इसे मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की पहलवानी सोच या संगत का असर कहें कि वे दिव्यांगों को सरकारी तंत्र में शामिल करने लायक नहीं मानते। और अपने इस सिद्धांत को वे हिंदू संस्कृति के सिद्धांत की तरह प्रस्तुत करने से भी नहीं चूकते। यकीन न हो तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का सोमवार को सागर जिले के बिलहरा में महिलाओं के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में दिए गए भाषण का यह हिस्सा सुन लीजिए। केबिनेट मंत्री गोविंदसिंह राजपूत को मंचीय साझेदारी देते हुए उन्होंने बड़े स्पष्ट रूप से कहा कि “हमारे यहां कटे फटे हाथ की कोई पूछ नहीं होती। पूरा शरीर बेकार हो जाता है। हमारे यहां तो राजा बनाने की नौबत आ जाए और किसी की जरा सी अंगुली भी कटी हो तो उसे एक तरफ पटक देते हैं।” कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर टाउंट करते मुख्यमंत्री डॉ. यादव के इस कथन का भावार्थ यह है कि अंग कटा होने पर व्यक्ति राजा बनने योग्य नहीं होता। अर्थात दिव्यांग होने वाले मनुष्यों को शासकीय दायित्व,पद,ओहदा, सिंहासन नहीं दिया जाता।

और उधर पीएम मोदी उन्हें दिव्यांग बोलते नहीं थकते

सीएम यादव शायद भूल गए कि प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी जी ने विकलांगों से समानता और सम्मान का व्यवहार करने के लिए उन्हें विकलांग की बजाए “दिव्यांग” नाम दिया है। वे उनसे जुड़े विषयों में खास संवेदनशीलता जाहिर करते है। केंद्र व राज्य की सरकारों ने भी शासकीय पदों में दिव्यांगों को प्राथमिकता देने के लिए नियुक्ति का कोटा रिजर्व कर रखा है। यह बात है और कि पढ़े लिखे और योग्य दिव्यांगों के लिए आरक्षित पदों पर विशेष भर्ती अभियान जैसी अवधारणाओं को सरकार दरकिनार किए हैं इसलिए उनके आरक्षित पद या तो रिक्त पड़े हैं या गैर दिव्यांग अभ्यर्थियों से भरे जा रहे हैं।

सीएम क्या इसलिए विवि के मामले में नहीं बोले?

 दिव्यांगों के प्रति सीएम जैसी इस मानसिकता को हमारे डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के छात्र लंबे समय से भुगत रहे थे। चंद रोज पहले इन विद्यार्थियों की तकलीफ को महसूस कर उनके सामान्य शारीरिक अवस्था वाले सहपाठी आंदोलन करने मजबूर हो गए। नतीजे में कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता और उनके मशविराकारों ने बड़ी ढीठता दिखा पहले तो इन दिव्यांगों को माटी- कूरा(कचरा) समझ उनसे मिलने से मना कर दिया। बात बढ़ी तो संगी-साथियों पर आपराधिक षड़यंत्र, बलवा का केस लदवा दिया। इस कांड पर पक्ष-विपक्ष थोड़ा-बहुत बोला लेकिन मुख्यमंत्री एक दम से सुट्ट बने रहे। शायद वे अपनी इसी सोच से मजबूर रहे हों। अब उन विद्यार्थियों को मुख्यमंत्री के दिव्यांगों पर इतने उद्भट विचार सुन कर गौर करना चाहिए। और जान जाना चाहिए कि वे क्यों चुप रहे।

पार्टी प्रवक्ता अग्रवाल फिजूल ही परेशान हो रहे थे

देश की आबादी के 2 करोड़ 64 लाख दिव्यांगों , जिनमें 1.15 करोड़ पुरुष और 1.18 करोड़ महिला दिव्यांग शामिल हैं इस पूरी आबादी को उज्जैन के विद्वान, शोध उपाधिधारी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दिव्यांगों के प्रति ये विचार जरूर सुन लेना चाहिए। जो उन्होंने सागर के बिलहरा में नारी शक्ति की सभा में व्यक्त किए हैं। डॉ. यादव के विचारों पर दुनिया चले तो एक भी दिव्यांग संसद और किसी विधानसभा में दिखाई न दे। मुख्यमंत्री उन्हें शासन करने के लिए अयोग्य जो मानते हैं। भाजपा के प्रखर प्रदेश प्रवक्ता भाई रजनीश अग्रवाल व्यर्थ में ही सागर लोकसभा सीट से टिकट मांग रहे थे। प्रकृति ने उन्हें भी दिव्यांग बना कर अन्याय किया है। बावजूद अपनी शारीरिक दुर्बलता के दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी रजनीश अग्रवाल जी किसी नार्मल भाजपा नेता से अधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम करते हुए भाजपा के लिए बड़ा योगदान देते हैं, लेकिन डा मोहन यादव के क्राइटेरिया के अनुसार वे टिकट के लिए योग्य नहीं हैं। स्व. यमुना प्रसाद शास्त्री, कुमार मंगलम जैसे शानदार नेता और राणा सांगा जैसे वीर शासक इतिहास ने देखे हैं। यदि सत्य कहा जाए तो ये वे नाम हैं जिनकी विद्वता के आगे डॉ. यादव पासंग भी नहीं। मुख्यमंत्री जैसे ओहदे पर बैठ कर दिव्यांगों का दर्द कम करने के उद्यम नहीं कर सकते तो कम से कम इतना वाणी संयम तो रखा ही जा सकता है कि दिव्यांगों की भावना को ठेस न लगे।

नोट.: कंटेन्ट व वीडियो, गूगल एवं सोशल मीडिया प्लेटफार्मस से साभार।

27/03/2024

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