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लोकायुक्त ट्रेप में फंसे सेल्स टैक्स के दोनों अफसर और मुनीम बरी

न्यायालय ने कहा, बंद नोट बैंक नहीं ले तो आवेदक को रिश्वत की राशि दोषी इंस्पेक्टर से दिलाएं, दोनों अधिकारियों को षड़यंत्रपूर्वक फंसाना साबित, पूर्व डीसी की भूमिका संदिग्ध!

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सागर। सेल्स टैक्स विभाग के दो अफसर, तत्कालीन संभागीय उपायुक्त और सहायक आयुक्त रिश्वत मांगने के आरोप से बरी हो गए हैं। विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम आलोक मिश्रा के कोर्ट ने इस मामले में 9 साल पहले फंसे तत्कालीन उपायुक्त एचएस ठाकुर, सहायक आयुक्त जलज रावत और मुनीम पंकज कुकरेजा को बरी कर दिया है। इन तीनों पर एक तथाकथित पिपरमिंट व्यवसायी सुरेश यादव से अपने सरकारी निवास पर रिश्वत के रूप में 3 लाख रुपए लेने का आरोप लगा था। मामले के विचारण के दौरान बचाव पक्ष के वकील राहुल नामदेव व अन्य यह तथ्य साबित करने में सफल रहे कि अफसर ठाकुर व मिश्रा को सेल्स टैक्स के ही एक रिटायर्ड उपायुक्त के इशारे पर षड़यंत्रपूर्वक इस ट्रेप में फंसाया गया। वहीं न्यायालय ने ये भी माना कि अभियोजन ने इस मामले में कई त्रुटियां की। जिससे प्रतीत होता है कि वह अफसर समेत तीनों को बेवजह फंसाने की कोशिश कर रहे थे।

10 करोड़ रुपए की सरकारी वसूली निकालने पर रचा गया षड़यंत्र !

विचारण के दौरान बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि यह सारा षड़यंत्र इन दोनों अफसरों के खिलाफ एक पुरानी रिकवरी निकालने के चक्कर में रचा गया है। वकील राहुल नामदेव ने कोर्ट को बताया कि छतरपुर में पेप्टेक नाम की हाउसिंग कंपनी रजिस्टर्ड थी। जिस पर सेल्स विभाग सागर का 10.34 करोड़ रुपए बकाया निकलता था। लेकिन विभाग के कतिपय अफसरों ने इस वसूली को लगभग शून्य कर दिया। इसी दौरान मेरे पक्षकार डिप्टी कमिश्नर ठाकुर को आरटीआई का एक आवेदन मिला। तब उन्होंने इस वसूली की फाइल को खोजा तो वह नहीं मिली। जानकारी लगी कि उक्त फाइल इंदौर स्थित मुख्यालय में है लेकिन फाइल वहां से भी गायब थी। इसके बाद मेेरे पक्षकार ने अपनी पदीय दायित्वों को निभाते हुए पूरा प्रकरण उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर तैयार किया और संबंधित हाउसिंग कंपनी को उक्त राशि को जमा करने नोटिस भेज दिया। इधर इस कंपनी के लीगल एडवाइजर का काम विभाग के रिटायर्ड अपर आयुक्त जेएस गुप्ता देख रहे थे। उन्होंने भी इस रिकवरी को रुकवाने की कोशिश की। लेकिन मेरा पक्षकार व उसका अधीनस्थ स्टाफ नहीं माना। जिसके बाद अचानक यह ट्रेप का षड़यंत्र रच दोनों अधिकारियों को फंसा दिया गया।

बचाव पक्ष ने शिकायतकर्ता को पेप्टेक का कर्मचारी साबित किया

विचारण के दौरान बचाव पक्ष के वकीलों ने बताया कि हमारे पक्षकार निर्दोष हैं। उनमें से मुनीम पंकज कुकरेजा की भूमिका को बिल्कुल की शून्य है। वह तो अपने परिवार में अगले दिन होने वाली सगाई के कार्ड देने डिप्टी कमिश्नर ठाकुर व सहायक आयुक्त रावत के सरकारी निवास पर गया था। तभी उसे लोकायुक्त के ट्रेप दल ने पकड़ लिया। वकीलों ने बताया कि हमारे पक्षकारों के हाथ भी नहीं रंगाए। पंकज ने औपचारिकतावश नोट केवल छुए थे, इसलिए धुलवाने पर उसका रंग भी हल्का गुलाबी हुआ। बहस के दौरान बचाव पक्ष ने यह भी बताया कि जिस शिकायतकर्ता सुरेश यादव को लोकायुक्त की जांच टीम पिपरमेंट व्यवसायी बता रही है। उसकी तथाकथित कंपनी की व्यवसायिक टर्न ओवर इतना है ही नहीं कि वह 3 लाख रु. महीना की रिश्वत देने तैयार हो जाए। सच्चाई ये है कि सुरेश यादव, असल मेें पेप्टेक हाउसिंग कंपनी का कर्मचारी है। जिसका सुबूत उसके बैंक का स्टेटमेंट है। जिसमें पेप्टेक द्वारा उसे हर महीने 5 -7 हजार रुपए देना साबित हो रहा है।

कमजोर विवेचना को संदिग्ध माना, इंस्पेक्टर से वसूली का विकल्प

इस मामले में लोकायुक्त पुलिस की विवेचना भी सवालों के घेरे में रही। बचाव पक्ष न्यायालय में यह साबित करने में सफल रहा कि चालान पेश करने से पूर्व इस प्रकरण की फाइल अलग-अलग विवेचनाधिकारियों के पास रही। बीच मेें पूरी फाइल इंदौर स्थित लोकायुक्त कार्यालय भी भेजी गई। बचाव पक्ष ने यह भी साबित किया कि इस केस को तत्कालीन लोकायुक्त इंस्पेक्टर उपमासिंह को हैंडओवर करने के बावजूद, पूर्व विवेचक निरीक्षक संतोषकुमार जामरा दखलंदाजी होती रही। अभियोजन की कहानी में कई झोल थे, जिसकी पुष्टिï सरकारी गवाहों से भी हुई। बहरहाल इस मामले में, विशेष न्यायाधीश मिश्रा ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि रिश्वत में दिए गए 1000 रु., जो 300 नोट दिए गए थे। वे बंद हो चुके हैं। इसलिए लोकायुक्त पुलिस उन्हें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से बदलवाकर शिकायतकर्ता सुरेश यादव को वापस करे। अगर ऐसा संभव नहीं है तो इस राशि का भुगतान लोकायुक्त पुलिस करे। वह चाहे तो इस राशि की वसूली संबंधित दोषी विवेचना अधिकारी से भी कर सकती है।

10/03/2024

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