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36 साल बाद सागर लौटे अपर कलेक्टर की शहरवासियों को “पाती “

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सागर के नए अपर कलेक्टर श्री रूपेश कुमार उपाध्याय की फेसबुक वाल से साभार …….

3 दिसम्बर 1988 की सुबह मुझे आज भी याद है जब भिण्ड – दमोह बस से प्रातः 3 बजे मैं सागर बस स्टैंड पर उतारा था। सागर के निर्माणाधीन बस स्टैंड पर लगी स्ट्रीट लाइट के प्रतिबिम्ब तालाब में टिमटिमा रहे थे । कुछ देर में ही हम परकोटा पर स्थित अग्रवाल लॉज में जा पहुँचे । यह हमारी ज़िंदगी का महत्वपूर्ण दिन था , आज हम राजस्व सेवा की शुरुआत करने जा रहे थे। आँखों मे नीँद का नामोनिशान नही था। हमारा कलेक्ट्रेट , तहसील कैसी होगी ? सोचते सोचते सुबह के छह बज गये। लॉज से बाहर निकल कर सड़क पर चल पड़े और चलते चलते तीन बत्ती होते हुए कोतवाली के पास पदमाकर घाट जा पहुँचे ।वहाँ से मुड़कर मैं कटरा मस्जिद जा पहुँचा । हम इस अनजान शहर की अनजान सड़को पर भटकते हुये इनसे पहिचान जोड़ने की कोशिश कर रहे थे ।कार्यालय का समय होते ही कलेक्ट्रेट जा पहुँचे और ज्योनिंग रिपोर्ट दी । उसके बाद तहसील सागर जाकर तहसीलदार सागर श्री शीलचंद्र जैन को भी अपनी उपस्थिति दी। बुन्देलखण्ड के इस बड़े और बीड़ी बालो के नगर साग से हमारा पहिला परिचय था। इसके बाद लगभग पौने दो साल हम सागर रहे । इस दौरान कई लोगो से रिश्ते बने , कुछ अच्छी किताबे पढ़ी। कुछ अच्छी फिल्में देखी । कुछ बेहतर सीखने की कोशिश की। तीन बत्ती की चिरौंजी की बर्फी , अप्सरा टॉकीज , वंदना होटल , नेपाल पेलेश , दीपक होटल , काँची रेस्टोरेंट , शुभम रेस्टोरेंट हमे अब भी याद है। पहिले हम गोपालगंज और फिर दो शेर बंगले पर रहते थे। तब सिविल लाइन नई नई बन रही थी। सिविल लाइन की शाम बड़ी मनभावन लगती । मकरोनिया में मॉडल टाउन की यह शुरुआत थी। हम इसकी निर्माण प्रक्रिया के हिस्सा रहे । उस समय हमारे कलेक्टर पीएस तोमर , सत्यप्रकाश , होशियार सिंह तथा एसडीएम आर एन शुक्ला और बी एम शर्मा थे। उस समय सागर में प्रोवेशनर के रूप में आर पी मण्डल तथा अनुराग जैन आईएएस असिस्टेन्ट कलेक्टर एवं अल्का जयसवाल प्रोवेशनर डिप्टी कलेक्टर थी। हमारी सब ट्रेजरी की ट्रेनिंग बंडा तहसील में हुई थी।पटवारी की ट्रेनिंग रामसेवक श्रीवास्तव और महेश चौबे ने दी थी। सत्कार व्यवस्था हम सर्किट हाउस सागर से ही सीखे है।https://www.facebook.com/share/p/5Zs3r2EiitDSJU9k/?mibextid=oFDknk

 सागर नगर के सुरक्षा प्रहरी गढ़ पहरा पर हमारा अक्सर जाना होता था वहाँ मन्दिर दर्शन के साथ साथ सरसराती हवा का अहसास अब भी हमारे साथ जुड़ा है।यद्यपि सागर छोड़े हुए एक लम्बा अरसा लगभग एक युग बीत गया है पर इस नगर से जुड़े अहसास अब भी गहरे और ताज़े है। जहाँ आप जन्मे हो या जहाँ आप कुछ सीखे हो उस जगह को कभी भूल नही पाते । सागर में हमने राजस्व सेवा की शिक्षा और संस्कार सीखे है इस लिए हम सागर को कभी भूल नही पाते । नौकरी के आरम्भ में इस नगर से एक रिश्ता जुड़ा था, नौकरी की ढलान पर शासन ने फिर एक बार सेवा का अवसर दिया है।  पीताम्बरा माई , स्वामी जी महाराज एवं गुरुदेव महाराज से यही प्रार्थना है कि ग्वालियर चम्बल की भूमि से दूर सेवा करने का अवसर दिया है तो हमे कुछ अलग , कुछ बेहतर और कुछ सार्थक करने की बुद्धि , विवेक और शक्ति देना।

10/03/2024

 

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