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सुप्रीम कोर्ट से चर्चा पर निर्भर करेगी सागर के वकीलों की हड़ताल की अवधि
बुधवार-गुरुवार को सरकारी छुट्टी होने के कारण न्यायालय में नहीं होगा कामकाज शुक्रवार से शुरु होगा या नहीं यह तय नहीं
सागर। मप्र राज्य अधिवक्ता परिषद के बैनर तले चल रही वकीलों की राज्यव्यापी हड़ताल मंगलवार दोपहर भले स्थगित हो गई। लेकिन सागर में हड़ताल जारी रहेगी या नहीं। यह बुधवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट व परिषद के बीच होने वाली चर्चा के बाद देरशाम तय होगा। इधर आज व कल गुुरुवार का सरकारी छुट्टी घोषित हो गई है। इसके चलते इन दो दिन भी कोर्ट में कोई कामकाज नहीं होगा। जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष एड. अंकलेश्वर दुबे का कहना है कि आसन्न हड़ताल, मप्र राज्य अधिवक्ता परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद स्थगित की है। लेकिन जिला अधिवक्ता संघ की हड़ताल इसके पहले से चल रही है। इसलिए हम लोगों की हड़ताल स्थगित नहीं है।

वकीलों के खिलाफ मप्र हाईकोर्ट दर्ज करा चुका है अवमानना का केस
एड. दुबे के अनुसार पूरे मप्र में न्यायालयीन कामकाज ठप होनेके बाद मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मल्ली मट्ठ ने तीन दिन पहले हाईकोर्ट की ग्वालियर बैंच में न्यायालयीन अवमानना का केस रजिस्टर्ड कराया था। इसके बाद मप्र की हड़ताल पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया। उन्होंने परिषद के समक्ष प्रस्ताव रखा कि पहले आप अपनी हड़ताल स्थगित करें। इसके बाद आप अपनी बात रखेंगे। बुधवार को परिषद के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट में वकीलों व पक्षकारों को होने वाली समस्याएं बताएंगे। उनकी चर्चा के बाद जो निर्णय आएगा। उस पर हमारा संघ देरशाम विचार करेगा। इसके बाद ही तय होगा कि सागर में हड़ताल शुक्रवार को जारी रहे या खत्म की जाए।
हर तीन महीने में पुराने 25 केस निपटाने पर है विवाद
वकीलों की यह राज्य व्यापी हड़ताल मप्र हाईकोर्ट के उस आदेश के विरोध में की जा रही है। जिसमें अधीनस्थ कोर्ट्स को कहा गया है कि वे ५ साल या उससे अधिक पुराने केस के 25-25 के ग्रुप बनाएं और उन्हें रोजाना सुनवाई कर निराकृत करें। जबकि वकीलों का कहना है कि न्यायालयीन कामकाज में इस तरह समय-सीमा तय करना ठीक नहीं है। कई वकीलों के अलग-अलग कोर्ट में एक ही दिन में केस लग रहे हैं। वे उनमें गुणवत्तापूर्ण पैरवी नहीं कर पा रहे हैं। इससे पक्षकारों का नुकसान हो रहा है। बेहतर होगा कि हाईकोर्ट इस आदेश पर पुर्नविचार करे। केसों को समय-सीमा में खत्म करने का लक्ष्य तो रखा जाए लेकिन सुनवाई रोज की बजाए निश्चित दिनों के अंतराल से की जाए।



