……. और पूर्व मंत्री भार्गव कॉन्क्लेव छोड़ पोते को स्कूल लेने पहुंच गए !
सोशल मीडिया पर पोते को स्कूल लेने जाने की अनुभूति का किया मर्मस्पर्शी उल्लेख

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सागर। बुंदेलखंड की राजनीति के वन मेन शो कैरेक्टर पूर्व मंत्री और वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव कब क्या कर गुजरें। ये शायद वो खुद भी नहीं जानते हैं। शुक्रवार को बुंदेलखंड इंडस्ट्री कॉन्क्लेव से वे अचानक उठकर निकल गए। वे ऐसा पहले भी कर चुके हैं। लेकिन इस दफा वे उठकर कहां गए थे। ये उन्होंने जाहिर भी किया। उन्हीं के सोशल मीडिया एकाउन्ट से पता चला कि वे शहर के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे अपने पोते को लेने गए थे। दिलचस्प बात ये है कि जब भार्गव जी अपने पोते को लेकर गढ़ाकोटा पहुंच गए थे। तब सीएम डॉ. मोहन यादव उन्हें मंच के आसपास कहीं मौजूद मान रहे थे। जिसका जिक्र उन्होंने अपने संबोधन में भी किया। इधर चर्चा है कि भार्गव जी भले ही कह रहे हैं कि वे पोते के प्रति वात्सल्य जताने कॉन्क्लेव से निकल गए थे। लेकिन सच वह भी और उनके समर्थक, फॉलोअर्स भी जानते हैं। बता दें कि पूर्व मंत्री भार्गव को कॉन्क्लेव के मंच पर संयुक्त रूप से केवल दीप प्रज्ज्वलन का अवसर भर मिला था। इसके बाद उनमें और मंच के नीचे बैठे देश-प्रदेश से आए उद्यमी, निवेशक में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया था। जो शायद उन्हें सहन नहीं हुआ और वे निकल लिए। बहरहाल पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव की नीचे दी गई पोस्ट को पढ़िए। जिसमें वे पोते को स्कूल से लेने के लिए पहुंचने का बड़ा ही मर्मस्पर्शी अनुभव पेश कर रहे हैं…….
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” भौर होते ही बच्चों को तैयार कर स्कूल छोड़ने तथा बाद में वापिस लाने का आनंद और अनुभव बहुत ही अलग होता है, जिसका आज मुझे पहली बार एहसास हुआ। आज सागर में मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में मुझे सम्मिलित होना था, सागर के ही एक स्कूल में मेरा नाति आशुतोष पहली कक्षा में पढ़ता है, सुबह स्कूल जाते समय उसने मुझसे कहा “दादू आप सागर जा रहें हैं ?
लौटते समय मुझे स्कूल से लेते आना, मैंने कहा ठीक है, समय मिला तो तुम्हे साथ ले आऊंगा, कार्यक्रम से फुर्सत होते ही जीवन में पहली बार बच्चे को लेने स्कूल पहुंचा, स्कूल की छुट्टी होते ही बाहर निकलते मुझे देख आशुतोष मुझसे आकर लिपट गया।
मेरे 71 साल के जीवन में यह पहला अनुभव था, क्योंकि मैं कभी अपने पुत्र अभिषेक और तीनो बेटियों को बचपन में एक बार भी कभी स्कूल भेजनें या लेने नहीं गया, न ही कभी साथ घुमाने ले गया, अवकाश या जन्मदिन उस समय कोई जानता ही नहीं था !!राजनीति के कठोर धरातल पर चलते हुए परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं लगभग शून्य हो चुकी थी, इस बीच आज एक हल्का सा पारिवारिक एहसास हुआ। मैं सन 1974 में जय प्रकाश जी के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के माध्यम से राजनीती में आया था तथा इस वर्ष सक्रिय राजीनीति में मुझे पूरे 50 वर्ष हो चुके है। यह भी सही है कि राजनीति और पद यदि आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा देते है तो आपसे उससे कई गुना ज्यादा छीन भी लेते हैं।”
27/09/2024



